For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दाइज ऐसा देना बाबुल

दाइज ऐसा देना बाबुल

जिससे तन-मन जले नहीं

दर्द-वेदना के सिक्‍कों से

जो बेबस हो तुले नहीं

ना गुलाब की कलियां न्‍यारी

स्‍वर्णहार ना चूड़मणि

नहीं मुलायम गद्दी, सोफे

नहीं रेशमी लाश बुनी

देना बाबुल ऐसा ताला

जो बुद्धि पर लगे नहीं

अम्‍लान रूढि़यों की ठोकर से

जो बेदम हो खुले नहीं

लाड़-प्‍यार चाहे ना देना

ना लेना मेरी पोथी

जनमजली ना करना मुझको

शिक्षा बिन सब हैं रोती

देना बाबुल खूब दुआएं

ज्ञान दीप ले सदा चलूं

सुंदरतम है दाइज यह तो

दूध नहाउं पूत फलूं

बिना ज्ञान के विदा ना होऊं

काठ की हांडी बनी जलूं

समय सुहागा उड़ता जाए

यह दाइज अब ना खोऊं

(सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 521

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 14, 2013 at 7:39am

देना बाबुल ऐसा ताला

जो बुद्धि पर लगे नहीं

अम्‍लान रूढि़यों की ठोकर से

जो बेदम हो खुले नहीं

लाड़-प्‍यार चाहे ना देना

ना लेना मेरी पोथी

जनमजली ना करना मुझको

शिक्षा बिन सब हैं रोती..

प्रेरक पंक्तियों के पिए बधाई, आदरणीय राजेश भाई जी. ..

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 5, 2013 at 8:42pm

सादर, बिलकुल सही बेटी को पैत्रक सम्पत्ति मिलना ही चाहिए. वर पक्ष द्वारा विवाह में उड़ाने की बात समझ नहीं आयी.

Comment by राजेश 'मृदु' on April 5, 2013 at 2:47pm

आदरणीय राम शिरोमणि जी, रक्‍ताले जी, वन्‍दना जी, केवल प्रसाद जी, सीमा जी एवं कुंति मुखर्जी जी रचना का संज्ञान लेने के लिए बहुत आभार  । आदरणीय रक्‍ताले साहब मैंने दहेज विरोध को केंद्र में रखना नहीं चाहा है क्‍योंकि मूलत: मैं इसका विरोधी नहीं हूं हां समाज से यह अपेक्षा जरूर रखता हूं कि बहुतेरे ऐसे राज्‍य हैं जहां बेटियों को पैतृक संपत्ति का अधिकार नहीं दिया जाता जो मेरे और कानून दोनों के हिसाब से गलत है, वहां उन्‍हें वह भाग उनके नाम से मिलना चाहिए ना कि वर पक्ष को विवाह में उड़ाने के लिए, सादर

Comment by ram shiromani pathak on April 5, 2013 at 12:03pm

बहुत सुन्दर आदरणीय राजेश झा जी।बहुत मार्मिक  रचना,बधाई स्वीकारें।

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 5, 2013 at 8:45am

लाड़-प्‍यार चाहे ना देना

ना लेना मेरी पोथी.............बिलकुल सही यही समय की मांग है.

आदरणीय राजेश कुमार झा साहब बहुत मार्मिक रचना भावों में बहा ले जा रही है.वाह! मगर कुछ वे लडके भी तो समझें जो स्वयं या दहेज लोभी माता पिता के साथ खड़े होते हैं. सुन्दर भावपूर्ण रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Vindu Babu on April 4, 2013 at 10:34pm
बहुत सुन्दर आदरणीय राजेश झा जी।
शिक्षा जीवन का रत्न है यही एक सर्वोत्तम उपहार हो सकता है जिससे जीवन मे सब कुछ सुलभ है।
सादर
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 4, 2013 at 10:05pm

आदरणीय मित्र राजेश कुमार झा जी,  बहुत सुन्दर भाव। समसामयिक विषय बेहतरीन नजीर, बधाई स्वीकारें।

Comment by seema agrawal on April 4, 2013 at 6:35pm

बहुत सुन्दर विषय चुना राजेश जी स्त्री स्वतन्त्रता के नारों की अपेक्षा स्त्री शिक्षा और जाग्रति के नारों की ज्यादा आवश्यकता है इस देश में बिना विवेक  और शिक्षा ,स्वतन्त्रता किसी ज़ंजीर  से कम नहीं होती ........

Comment by coontee mukerji on April 4, 2013 at 5:28pm

बहुत मार्मिक  रचना .राजेश कुमार जी , दहेज तो समाज का अभिशाप है .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
7 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service