For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमने कौरव के हाथों पांचाली दी !

ग़ज़ल -

इस दुनिया ने जब भी कमाई काली दी ,

मेरे अंतरमन ने  मुझ  को   गाली दी   

   

सच्चाई के रस्ते चलता  हूँ दिन भर ,

अक्सर शामो ने है खाली थाली दी । 

 

शुकराना  हर रूखी सूखी  रोटी का ,

लड़ने की इच्छा बेहद बलशाली दी  

 

खूं से हमने सींचा अपनी माटी को ,

तब मालिक ने होली और दिवाली दी ।

 

हम सब दोषी हैं दिल्ली की घटना के ,

हमने कौरव के हाथों पांचाली दी ।

 

निज हित दड़बे  में सोये वीरों जागो ,

तुम शेरों  के मुंह में किसने जाली दी । 

 

आम आदमी से वो खास हुए पल में 

हमने जिनको सत्ता की दोनाली दी ।

 

सिस्टम ने गढ़ डाले सौ भ्रष्टाचारी ,

सहने को ये जनता भोली भाली दी । 

 

ट्वेंटी ट्वेंटी के युग में मौला मेरे ,

क्यों कंसों को इतनी लम्बी पाली दी । 

 

कुछ दोषी हममें भी हैं और हैं बेशक ,

क्यों तेरे झूठे वादों पर ताली दी ।

 

             - अभिनव अरुण 

                [21042013]

 { सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित रचना }

 

Views: 794

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on April 24, 2013 at 9:57am

आदरणीय श्री रक्ताले जी , मेरा मानना है की एक रचनाकार ने पूरे जीवन में एक पंक्ति एक पते की बात कह दी तो वह सफल रहा और स्तुत्य है आपको कुछेक शेर पसंद आये यह मेरा सौभाग्य है , स्नेह बना रहे आदरणीय !! यही कामना है । 

Comment by Abhinav Arun on April 24, 2013 at 9:55am

आदरणीय भावना जी , बहुत आभार रचना के अनुमोदन के लिए !!

Comment by Abhinav Arun on April 24, 2013 at 9:54am

आदरणीय डॉ प्राची जी ! यह वैचारिकता ही मेरे भीतर तक घर कर गयी है मैं ज़माने से नहीं अपने आपसे संघर्ष रत हूँ और उसी के घर्षण से उत्पन्न हैं मेरी रचनाएँ जिनमे शिल्प और व्याकरण शायद कभी अपने पथ से विचलित हो जाए पर मैं अपनी सोच और कलम के हथियार के साथ सदा कुरुक्षेत्र में लड़ता मिलूंगा ... न जीत पाने के संदेह के साथ भी !!

Comment by Abhinav Arun on April 24, 2013 at 9:51am

आदरणीय श्री पाठक जी आभार , आपका स्नेह के लिए !!

Comment by ram shiromani pathak on April 23, 2013 at 9:37pm

खूबसूरत  गज़ल/// हार्दिक बधाई आदरणीय अभिनव  जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 23, 2013 at 9:03pm

सामयिक दौर में जहां उसूल कदम कदम पर दम तोड़ रहे हैं.... वहीं उच्च उच्च वैचारिकता को शब्द देती खूबसूरत सार्थक गज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय अभिनव अरुण जी 

Comment by भावना तिवारी on April 23, 2013 at 6:29pm

कुछ दोषी हममें भी हैं और हैं बेशक ,

क्यों तेरे झूठे वादों पर ताली दी ।.......WAH ..BAHUT SUNDAR KAHAN ...........

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 23, 2013 at 6:15pm

ट्वेंटी ट्वेंटी के युग में मौला मेरे ,

क्यों कंसों को इतनी लम्बी पाली दी । .......क्रिस गेल आपके कहे को सत्य कर ही रहा है.सरजी

बहुत सुन्दर गजल है शुरू के कुछ अशार तो बहुत ही दिल को छूने वाले है.सादर  बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय अभिनव अरुण जी

Comment by Abhinav Arun on April 22, 2013 at 1:51pm

आदरणीय डॉ बाली साहब आपने इतनी व्यस्तता और ऊँचाइयों पर होते हुए भी मुझ अकिंचन की रचना पढ़ी और प्रतिक्रिया दी ये मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है ... साधुवाद आदरणीय !!

Comment by Abhinav Arun on April 22, 2013 at 1:49pm

अपना स्वभाव ही कुछ ऐसा बन पड़ा है आदरणीय कुंती जी , गलत होता देख और कुछ नहीं तो कुछ लिख भर देना थोडा सुकून देता है बस । बहुत शुक्रिया प्रेरक शब्दों के लिए । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
16 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
20 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service