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१~
बदलता अब कौन अपना आचरण है,
मधुर-स्मिति दर्द का ही आवरण है,

अनकहे शब्दों ने ढूँढी राह है ये 

बादलों के बीच मे कोई किरण है !

२~
कोई छोटे हैं तो कोई बड़े हैं न,

हम सभी मुखौटे लिए खड़े हैं न,

असली चेहरा न तलाशिये हुज़ूर 

एक चेहरे पर कई चेहरे जड़े हैं न !

३~
एक अनबुझी प्यास लिए हम गहरे कुएं हुए,

कभी लगी जो आग मित्र,हम उठते धुंएं हुए,
सजे हुए हैं हम शीशों मे बिकने को आतुर 
परखो, निरखो दूर दूर हम तो अनछुए हुए !

__________________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ 

(मौलिक और अप्रकाशित )

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Comment by वेदिका on July 6, 2013 at 6:06am

२~
कोई छोटे हैं तो कोई बड़े हैं न,

हम सभी मुखौटे लिए खड़े हैं न,

असली चेहरा न तलाशिये हुज़ूर 

एक चेहरे पर कई चेहरे जड़े हैं न !// ये मुक्तक बहुत भाया मुझे . 

रचना पर बधाई! 

Comment by ajay sharma on July 5, 2013 at 11:16pm

कोई छोटे हैं तो कोई बड़े हैं न,

हम सभी मुखौटे लिए खड़े हैं न,

असली चेहरा न तलाशिये हुज़ूर 

एक चेहरे पर कई चेहरे जड़े हैं न !  really catching ....sir  ji 

Comment by रविकर on July 5, 2013 at 8:34pm

बढ़िया प्रस्तुति है आदरणीय-
आभार आपका-

Comment by Sumit Naithani on July 5, 2013 at 2:39pm

सुंदर प्रस्तुति 

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