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काश! 

आरजू मै करु मिलने की, और वो रुबरु हो जाये ।

काश ! मेरी मोहब्बत की, ऐसी तासीर हो जाये ।।

न शिकवा ना शिकायत हो कोई भी खुदा से ।

काश!  ऐसा हर कोई खुश नसीब हो जाये ।।

 

बेखौफ चूमते है भँवरे, गाल कलियो के ।

काश ! तेरी भी हमको इजाजत हो जाये ॥

बेशक ! माना की गहना है तेरा ये परदा ।

काश ! आज थोडी सी तू बेशर्म हो जाये ॥

मिले यूँ ही कई लोग, चलते चलते मुझको ।

काश ! आज उनसे भी  मुलाक़ात हो जाए ।।

बहुत गुजारे है सफर, मैने यूँ ही तन्हा

काश ! आज वो मेरा भी , हमसफर हो जाये॥

 

वो आये तो उनको जाने का, ख्याल न हो ।

काश ! आज फिर वही, पहली रात हो जाए 

हो जाए बंद वो सब राहे जो लौटे इधर से

काश ! आज फिर जोर से, बरसात हो जाये ॥

 

न आये कोई  भी अब दर्मिया हमारे   

काश ! वो मेरे इतना करीब हो जाये ।।

भूल जाए जमाने को हम हो कर तुम्हारे  

काश! वो अब मेरे रकीब  हो  जाए  ।।

 

अब तक तो रखा है, दर्द को दिल मे दबा के ।

काश !  मेरा भी कोई हमदर्द हो जाये ॥

कब तक रोयेंगे हम खुद, को खुद मे छिपा के ।

काश! आज काँधा तेरा मेरे  सिराने हो जाये ॥ 

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2013 at 3:04pm

इतनी मेहनत कर सकते हैं तोफिर विधासम्मत एवं संयत प्रयास क्यों नहीं करते वसंत भाई जी.

शुभेच्छाएँ.

Comment by बसंत नेमा on July 30, 2013 at 12:01pm

आदरणीय अरुन जी  आप का मुझपे विशवास मेरे लिये सौभाग्य की बात है ....हाँ इस रचना मे थोडी जल्दबाजी हो गई थी ...अब समय का ध्यान रखुंगा ..और आप को अगली बार निराश नही करुंगा ....... धन्यवाद आप ने समय दिया रचना को ..बहुत बहुत शुक्रिया ....

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 30, 2013 at 11:23am

आदरणीय बसंत भाई जी आपसे उम्मीदें तनिक अधिक बढ़ गई हैं आपके द्वारा कहीं अधिक सुन्दर रचना पढ़ चुका हूँ, थोड़ी जल्दबाजी प्रतीत होती है इस रचना में, बहरहाल प्रयास पर ढेरों बधाई स्वीकारें.

Comment by बसंत नेमा on July 29, 2013 at 10:24am

आ0 जितेन्द्र जी  रचना आप को पसन्द आई उसके लिये तहे दिल से शुक्रिया ..आभार धन्यवाद 

Comment by बसंत नेमा on July 29, 2013 at 10:23am

आदरणीया लता जी रचना आप को पसन्द आई उसके लिये तहे दिल से शुक्रिया ..आभार धन्यवाद 

Comment by Lata tejeswar on July 28, 2013 at 6:03pm

भूल जाए जमाने को हम हो कर तुम्हारे  

काश! वो अब मेरे रकीब  हो  जाए  ।।

bahut khub

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 27, 2013 at 8:10pm

"बेखौफ चूमते है भँवरेगाल कलियो के ।

काश ! तेरी भी हमको इजाजत हो जाये ॥

बेशक ! माना की गहना है तेरा ये परदा ।

काश ! आज थोडी सी तू बेशर्म हो जाये ॥"................आपकी  रचना  में यह पंक्ति बहुत  ही शानदार है , आदरणीय ..बसंत जी सुंदर रचना  पर ढेरों बधाई ....

 

 

Comment by बसंत नेमा on July 27, 2013 at 10:42am

आ0 राम जी धन्यवाद आप को रचना पसन्द आई शुक्रिया .... शायद थोडा समय और देना था रचना को ...

Comment by ram shiromani pathak on July 26, 2013 at 8:46pm

आदरणीय बसंत जी  बहुत सुन्दर भाव हैं रचना के  //हार्दिक बधाई आपको 

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