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गजल (रहनुमा)

2122 2122 2122 2122

इस शहर मैं रस्मे-आमद लोग इस तरह निभाते हैं
हाथों मैं गुल होते नहीं और पत्थर लिए नजर आते हैं

तेरी सूरत मेरी सूरत से हसीं नहीं बताने को ये
आने वाले हर शख्स को वो आईना दिखलाते हैं

वो भी देख लें कभी गिरेवां मैं अपने झांककर यारों
दूसरों पे जो यूँ ही अक्सर उँगलियाँ ऊठाते हैं

मैं जो निकला हूँ सफर पे तो मंजिल पा ही लूँगा कभी
फिर क्यूँ मुझे मेरी मंजिल का पता बतलाते हैं

जाने किस भेष मैं सामने आ जाये कातिल कोई तेरा
बचके रहना कातिल भी यहाँ रहनुमा नजर आते हैं

( मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by Sachin Dev on March 28, 2014 at 12:41pm

आदरणीय सौरभ जी, आपके सुझाव और शुभेक्षाओं का हार्दिक आभार ........ रचनाओं मैं  उत्तरोत्तर सुधार हेतु सतत प्रयास जारी रहेगा ...... आप सभी गुणीजनो के आपेक्षित सहयोग से सध्न्य्बाद ! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 28, 2014 at 2:01am

भाई सचिन जी, आपको उचित सुझाव देते हुए सुधीजनों ने आपकी प्रस्तुति को समुचित मान दिया है. आपका सतत प्रयास ही आगे काम करेगा.

शुभेच्छाएँ.

Comment by Sachin Dev on March 26, 2014 at 1:17pm

भाई लछमन धामी जी... आपकी दुआओं और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद आपका ! 

Comment by Sachin Dev on March 26, 2014 at 1:16pm

भाई मुकेश वर्मा जी, बहुत ही अच्छी बातें लिखी आपने आपकी इन शुभेक्षाओ के लिए हार्दिक आभार आपका... ऐसे ही उत्साहवर्धन करते रहिये धन्यवाद ! 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 24, 2014 at 9:17pm

भाई सचिन जी ,हर्दिक बधाई , प्रयास जारी रखें .हमारी तरह प्रबुद्ध जनों से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा और धर पैनी हो जायेगी .यही दुआ है .

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on March 24, 2014 at 7:33pm

इस जीवन में प्रयास की असीम संभावनाएँ हैं. हमारा बचपन ही गिरते पड़ते शुरू होता है और हम चलना सीखते हैं. बस लिखना और लिखना ही एक उपाय है मेरी नज़र में. कामयाबी एक दिन ज़रूर आपके क़दम चूमेगी..
बहुत बढ़िया

Comment by Sachin Dev on March 24, 2014 at 3:58pm
आदरणीय गिर्रिराज सी सादर नमस्कार, गजल लिखने के प्रयास पर आपके हौसला प्रद शब्द और मार्गदर्शन के लिए आपका हार्दिक आभार ..... ऐसे ही स्नेह बनाए रखिये धन्यवाद आपका
Comment by Sachin Dev on March 24, 2014 at 3:55pm
आदरणीय भाई वीनस जी प्रयास पर आपने नजर डाली और उत्साहवर्धक शब्द कहे उसके लिए बहुत बहुत आभार आपका ... आपने बिल्कुल सही कहा बहर मैं अभी भी कुछ नही बल्कि काफी उलझन है किन्तु गजल मैं अपने भाव रख सका आपकी सराहना मिली इससे आगे अच्छा लिखने मैं और मदद मिलेगी ......
Comment by Sachin Dev on March 24, 2014 at 3:52pm
सादर प्रणाम आदरणीया राजेश कुमारी जी...... ध्यानाकर्षण और हौसला अफजाई के लिए हार्दिक आभार आपका ......... त्रुटियों को आप गुणीजनों के मार्गदर्शन से दूर करने का प्रयास रहेगा !
Comment by Sachin Dev on March 24, 2014 at 3:44pm
सादर नमस्कार बृजेश जी..... आपने बिल्कुल दुरुस्त फरमाया बहर के हिसाब से अशआर सही नही बैठ रहा है ..... चूँकि अभी मैं गजल सीखने की प्रक्रिया मैं हूँ इसलिए इस प्रकार की चूक होना स्वाभाविक ही है, किन्तु मंच के सुधीजनो के मार्गदर्शन से जल्द ही त्रुटियों को दूर करने का प्रयास रहेगा ... फिलहाल आपके द्वारा चिन्हित अशआर को संशोधित किया है कृपया इस पर दृष्टि डालें और मार्गदर्शन करें ...... धन्यबाद
---------------------------------------------------------------------------------------------------
/इस शहर मैं रस्मे-आमद लोग इस तरह निभाते हैं
हाथों मैं गुल की बजाये पत्थर साथ नजर आते हैं/

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