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वो शख़्स मुनाफिक़ लगता है...

दुश्मन से मिलकर रहता है,
बस मीठी बातें करता है,
वो शख़्स मुनाफिक़* लगता है।

माने तो दिलजोई करना,
रूठे तो मनमानी करना,
है लाज़िम झगड़ा भी करना।

मन में जो आये कह देना,
दिल में पर मैल नहीं रखना,
ये ही मोमिन# का है गहना।

छल, पाप, कपट, मक्कारी है,
माना हर सू बदकारी है,
पर नेकी सब से भारी है।

*पाखंडी

#आस्तिक


(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 6, 2014 at 8:31pm

ये त्रिवेणी विधा है मेरे ख्याल से ...बहुत अच्छी लगी हार्दिक बधाई इमरान जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 6, 2014 at 8:34am

आ. इमरान भाई , आपको इस प्रस्तुति ले लिये बधाइयाँ । एक निवेदन -- शिल्प और विधा अगर बता दें तो रचना समझ्ने  सीखने में आसानी होगी ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2014 at 7:24pm

ये क्या है भाई ?

Comment by ram shiromani pathak on August 4, 2014 at 9:15pm

रचना तो बहुत प्यारी लगी मुझे। ।बहुत बहुत बधाई आपको
कृपा कर बताएं यह कौन सी विधा में है। । सादर

कृपया ध्यान दे...

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