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"सर, मैं मुंबई वाले प्राॅजेक्ट पर आपके साथ नहीं चल पाऊँगी।"- कहते हुए निशा ने फोन रख दिया।
"क्या हुआ निशा?"- अपनी बहन को परेशान देखकर नीरज ने पूछा।
"भैया हमारी कम्पनी एक नया प्राॅजेक्ट शुरू कर रही है। बाॅस मुझे मुंबई साथ में चलने की जिद्द कर रहे हैं और मैं वहाँ अकेले उनके साथ जाना नहीं चाहती। बाॅस कह रहे हैं अगर साथ नहीं चली तो समझो जाॅब गई। भैया फिर घर का खर्चा कैसे चलेगा?"
पढाई पूरी करने के बाद बेरोजगार घुम रहे नीरज का सपना बहुत बड़ा आदमी बनने का था लेकिन आज अपनी बहन को दुविधा में देखकर उससे आँखें नहीं मिला पा रहा था।
"निशा तुम्हें किसी के साथ कहीं जाने की जरूरत नहीं है अगर जाॅब जाती है तो जाए। तुम कोई और जाॅब ढूंढ लेना।"
अगले दिन नीरज एक ठेला किराये पर ले आया और उसमें चने-नमकीन वगैरह भरकर बेचने शुरू कर दिये। आज उसे अपना सपना बहन की इज्जत के सामने बहुत बौना नजर आ रहा था।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by vijay nikore on December 16, 2014 at 9:28pm

इस सुन्दर लघु कथा के लिए बधाई

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 15, 2014 at 9:22pm

अच्छी सीख देनेवाली लघुकथा....      

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 15, 2014 at 12:07pm

अच्छी सन्देश प्रद कथा i

Comment by विनोद खनगवाल on December 13, 2014 at 10:14pm
आदरणीय मिथिलेश जी आपका भी धन्यवाद।
Comment by विनोद खनगवाल on December 13, 2014 at 10:13pm
आलोक जी उत्साह बढाने के लिए आभार।
Comment by विनोद खनगवाल on December 13, 2014 at 10:12pm
आदरणीय श्याम नारायण जी धन्यवाद
Comment by विनोद खनगवाल on December 13, 2014 at 10:11pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी टिप्पणी के लिए आभारी हूँ। बहुत बहुत धन्यवाद।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 13, 2014 at 7:19pm

बहुत अच्छी कहानी है ..बहुत बहुत बधाई 

Comment by Alok Mittal on December 13, 2014 at 1:30pm

भाई बहुत अच्छी कहानी है ...शानदार

Comment by Shyam Narain Verma on December 13, 2014 at 10:15am

इस सुंदर संदेशप्रद लघु कथा के लिए तहे दिल बधाई सादर

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