For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उलझी हुयी प्रेमकहानी

मैं एक कवि हूँ 
मुझे प्रेम है 
पहाडों से 
नदी से
सागर में उठती हुयी लहरों से
गिरते हुये झरनों से
सुन्दर सुन्दर फूलों 
की महक से
मीठी मीठी 
पंछियों की चहक से
मैं एक कवि हूँ 
मुझे प्रेम है 
बंजड हुये उस पेड से
जिसने कभी छाया दी थी 
फल दिये 
मुझे प्रेम है
उन तेज नुकीले काँटे से
जिसने खुद को सुखाकर 
फूल को खिलाया 
मुझे जितना सुख से प्रेम है 
उतना ही प्रेम दुख से है
तुम कहती हो 
मैं प्रेमी नहीं हो सकता 
क्योंकि मैं कवि हूँ
ये कैसी व्याख्या है 
तुम्हारी प्रेम की
एक कवि जो प्रकृति की 
बनायी हुयी हरेक रचना में 
प्रेम की तलाश करता है
प्रकृति की हर रचना से
प्रेम करता है
वो प्रेमी नहीं हो सकता है
बडी ही उलझी हुयी है
तुम्हारी प्रेम की परिभाषा
या फिर
उलझी हुयी है मेरी प्रेम कहानी

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 632

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by umesh katara on March 1, 2015 at 10:16pm

आदरणीय  khursheed khairadi जी बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by khursheed khairadi on March 1, 2015 at 8:19pm

मैं एक कवि हूँ 
मुझे प्रेम है 
बंजड हुये उस पेड से
जिसने कभी छाया दी थी 
फल दिये 
मुझे प्रेम है 
उन तेज नुकीले काँटे से
जिसने खुद को सुखाकर 
फूल को खिलाया 

आदरणीय उमेश जी बहुत सुन्दर भाव है |सादर अभिनन्दन |

Comment by umesh katara on March 1, 2015 at 5:52pm

गिरिराज भंडारी जी बहुत बहुत शु्क्रिया आपका


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 1, 2015 at 4:42pm

बहुत सुन्दर !! आदरणीय उमेश भाई , बधाई आपको रचना के लिये ॥

Comment by umesh katara on March 1, 2015 at 3:54pm

जितेन्द्र पस्टारिया जी बहुत बहुत शु्क्रिया आपका

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 1, 2015 at 2:17pm

बहुत सुंदर लिखा. उम्दा भाव, बधाई आदरणीय उमेश जी

Comment by umesh katara on March 1, 2015 at 1:26pm

somesh kumar जी बहुत बहुत शु्क्रिया आपका

Comment by somesh kumar on March 1, 2015 at 11:46am

तुम कहती हो 
मैं प्रेमी नहीं हो सकता 
क्योंकि मैं कवि हूँ
ये कैसी व्याख्या है 
तुम्हारी प्रेम की
एक कवि जो प्रकृति की 
बनायी हुयी हरेक रचना में 
प्रेम की तलाश करता है
प्रकृति की हर रचना से 
प्रेम करता है 
वो प्रेमी नहीं हो सकता है
बडी ही उलझी हुयी है 
तुम्हारी प्रेम की परिभाषा 
या फिर 
उलझी हुयी है मेरी प्रेम कहानी

कितने खुबसुरत और सुंदर भावरंजित है इन पंक्तियों में शायद हर उस प्रेमी का सत्य जो एक कवि भी रहे हों |बधाई नही गले लगाने का मन है इन भावों पर |

Comment by umesh katara on March 1, 2015 at 8:43am

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 1, 2015 at 7:29am
आदरणीय उमेश जी बड़ी सुन्दर कविता हुई है बधाई स्वीकार करे।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
3 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
4 hours ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
5 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
7 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
16 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service