For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक स्त्री हो तुम
पत्नि नाम है तुम्हारा 
लेकिन कभी कभी 
खुद से अधिक
मेरी चिन्ता में डूब जाती हो
तुम्हारा इतना चिन्तित होना
मेरे अन्तर्मन में भ्रम पैदा करता है
कि तुम मेरी अर्धांगिनी होकर
माँ जैसा व्यवहार करती हो
कैसा बिचित्र संयोजन हो तुम
ईश्वर का 

जीवन के उस समय में 

जब कोई नहीं था सहारे के लिये 
दूर दूर तक
तब एक भाई की तरह 
मेरे साथ खडे होकर 
भाई बन गयी थीं तुम
उस दिन मुझे आश्चर्य हुआ था 
कि स्त्री होकर भी तुमने
एक पुरुष की तरह साथ निभाया था मेरा

अलग अलग रूपों में पाया है
तुमको हरबार मैंने 
पता नहीं कौन हो तुम 
मैं पुरुष होकर सिर्फ और सिर्फ पुरुष ही रहा
पर तुमने कई बार बदला है अपने रूप को 
हे स्त्री ! तुम्हें पाकर पुरुष धन्य हो गया 

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित




Views: 689

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by umesh katara on February 27, 2015 at 7:18am

Mohan Sethi 'इंतज़ार'  जी आपने रचना को पसन्द किया तहेदिल से आपका बहुत  बहुत शुक्रिया

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on February 27, 2015 at 4:35am

आदरणीय umesh जी बहुत सुन्दर भाव ...मैं पुरुष होकर सिर्फ और सिर्फ पुरुष ही रहा....सच है स्त्री सब कुछ है पुरुष के लिये ...काश ये समाज की समझ में भी आ जाये ......सादर  

Comment by umesh katara on February 26, 2015 at 9:14pm

Hari Prakash Dubey जी आपने रचना को पसन्द किया तहेदिल से आपका बहुत  बहुत शुक्रिया

Comment by Hari Prakash Dubey on February 26, 2015 at 9:08pm

आदरणीय उमेश कटारा जी ,सुन्दर भाव ,सुन्दर  रचना बधाई आपको ! सादर 

Comment by umesh katara on February 26, 2015 at 8:27pm

मिथिलेश वामनकर जी आपने रचना को पसन्द किया तहेदिल से आपका बहुत  बहुत शुक्रिया

Comment by umesh katara on February 26, 2015 at 8:26pm

rajesh kumari जी आपने रचना को पसन्द किया तहेदिल से आपका बहुत शुक्रिया

Comment by umesh katara on February 26, 2015 at 8:26pm

Usha Choudhary Sawhney जी आपने रचना को पसन्द किया तहेदिल से आपका बहुत शुक्रिया

Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 26, 2015 at 8:09pm

आदरणीय उमेश कटारा जी , आपने जिस खूबसूरती से पत्नी के एकमात्र रिश्ते में संसार के अनेको रिश्तो का एहसास दर्शाया है , वो अत्यधिक प्रशंसनीय है। आपको बहुत बहुत बधाई सर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 26, 2015 at 7:56pm

वाह्ह्ह्हह..... बहुत -बहुत बधाई इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आ० उमेश कटारा जी. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 26, 2015 at 7:45pm

आदरणीय उमेश भाई जी, आपकी कविता पर मुग्ध हो गया हूँ, पत्नी के रूप में नारी के त्याग और तपस्या को आपने बहुत ही भावपूर्ण शब्द दिए है. ये कविता आपकी उत्कृष्ट रचनाओं में से एक है. ये विचार कई बार सुने और पढ़े है पर इतने सटीक ढंग से शब्द आपने दिए इन विचारों को. आपकी कविता का ही नहीं, आपके विचारों का भी कायल हो गया हूँ. ये पंक्ति तो जैसे दिल में उतर गई-

तुम्हारा इतना चिन्तित होना
मेरे अन्तर्मन में भ्रम पैदा करता है
कि तुम मेरी अर्धांगिनी होकर
माँ जैसा व्यवहार करती हो
कैसा बिचित्र संयोजन हो तुम
ईश्वर का ................................................................... बहुत भावपूर्ण सुन्दर पंक्तियाँ 

आपकी कविता के हवाले से आपकी कलम को नमन करते हुए, अपनी अर्धांगिनी और बिटिया के नाम लिखी पंक्तिया समर्पित कर रहा हूँ -

मेरे धरती आकाश बन गए तुम दोनों
अंतर्मन की प्यास बन गए तुम दोनों 
लगता है दिन रात हमें अब इतना ही 
जीने का अहसास बन गए तुम दोनों

जीवन का उल्लास, बन गए तुम दोनों 
साँसों का विश्वास बन गए तुम दोनों 
घर लगता पावन तीर्थ तुम्हारें होने से 
मेरे काबा - कैलाश बन गए तुम दोनों 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service