एक स्त्री हो तुम
पत्नि नाम है तुम्हारा
लेकिन कभी कभी
खुद से अधिक
मेरी चिन्ता में डूब जाती हो
तुम्हारा इतना चिन्तित होना
मेरे अन्तर्मन में भ्रम पैदा करता है
कि तुम मेरी अर्धांगिनी होकर
माँ जैसा व्यवहार करती हो
कैसा बिचित्र संयोजन हो तुम
ईश्वर का
जीवन के उस समय में
जब कोई नहीं था सहारे के लिये
दूर दूर तक
तब एक भाई की तरह
मेरे साथ खडे होकर
भाई बन गयी थीं तुम
उस दिन मुझे आश्चर्य हुआ था
कि स्त्री होकर भी तुमने
एक पुरुष की तरह साथ निभाया था मेरा
अलग अलग रूपों में पाया है
तुमको हरबार मैंने
पता नहीं कौन हो तुम
मैं पुरुष होकर सिर्फ और सिर्फ पुरुष ही रहा
पर तुमने कई बार बदला है अपने रूप को
हे स्त्री ! तुम्हें पाकर पुरुष धन्य हो गया
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
Mohan Sethi 'इंतज़ार' जी आपने रचना को पसन्द किया तहेदिल से आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय umesh जी बहुत सुन्दर भाव ...मैं पुरुष होकर सिर्फ और सिर्फ पुरुष ही रहा....सच है स्त्री सब कुछ है पुरुष के लिये ...काश ये समाज की समझ में भी आ जाये ......सादर
Hari Prakash Dubey जी आपने रचना को पसन्द किया तहेदिल से आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय उमेश कटारा जी ,सुन्दर भाव ,सुन्दर रचना बधाई आपको ! सादर
मिथिलेश वामनकर जी आपने रचना को पसन्द किया तहेदिल से आपका बहुत बहुत शुक्रिया
rajesh kumari जी आपने रचना को पसन्द किया तहेदिल से आपका बहुत शुक्रिया
Usha Choudhary Sawhney जी आपने रचना को पसन्द किया तहेदिल से आपका बहुत शुक्रिया
आदरणीय उमेश कटारा जी , आपने जिस खूबसूरती से पत्नी के एकमात्र रिश्ते में संसार के अनेको रिश्तो का एहसास दर्शाया है , वो अत्यधिक प्रशंसनीय है। आपको बहुत बहुत बधाई सर।
वाह्ह्ह्हह..... बहुत -बहुत बधाई इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आ० उमेश कटारा जी.
आदरणीय उमेश भाई जी, आपकी कविता पर मुग्ध हो गया हूँ, पत्नी के रूप में नारी के त्याग और तपस्या को आपने बहुत ही भावपूर्ण शब्द दिए है. ये कविता आपकी उत्कृष्ट रचनाओं में से एक है. ये विचार कई बार सुने और पढ़े है पर इतने सटीक ढंग से शब्द आपने दिए इन विचारों को. आपकी कविता का ही नहीं, आपके विचारों का भी कायल हो गया हूँ. ये पंक्ति तो जैसे दिल में उतर गई-
तुम्हारा इतना चिन्तित होना
मेरे अन्तर्मन में भ्रम पैदा करता है
कि तुम मेरी अर्धांगिनी होकर
माँ जैसा व्यवहार करती हो
कैसा बिचित्र संयोजन हो तुम
ईश्वर का ................................................................... बहुत भावपूर्ण सुन्दर पंक्तियाँ
आपकी कविता के हवाले से आपकी कलम को नमन करते हुए, अपनी अर्धांगिनी और बिटिया के नाम लिखी पंक्तिया समर्पित कर रहा हूँ -
मेरे धरती आकाश बन गए तुम दोनों
अंतर्मन की प्यास बन गए तुम दोनों
लगता है दिन रात हमें अब इतना ही
जीने का अहसास बन गए तुम दोनों
जीवन का उल्लास, बन गए तुम दोनों
साँसों का विश्वास बन गए तुम दोनों
घर लगता पावन तीर्थ तुम्हारें होने से
मेरे काबा - कैलाश बन गए तुम दोनों
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