For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भूख और पेट / लघुकथा / कान्ता राॅय

आज फिर सुबह - सुबह वह सलाम बजाने पहुँच गया उनके घर । साथ में ब्रेड - अंडे का पैकेट भी ले आया था । खाली हाथ कैसे आता भला ! वे अफसर जो ठहरे ! सुना था कि उनको भूख बहुत लगती है ।
लेकिन भूखा तो वह भी था । उसके पेट में भी दिनों दिन भूख की आग बढ़ रही थी ।
लेकिन क्या करें ! नित नये पैंतरे बदलता ,जाने कब किस बात पर वे खुश हो जाये और उसका काम बन जायें !
सरकारी अफसरों का मिजाज़ और उनकी भूख , तो वह जानता था , पर मिटाने का तरीका अभी सीख रहा था ।

शुरू - शुरू में तो काजू की बरफी भी पहुँचाई , लेकिन उसका निर्वाह तंग जेब के कारण कायम नहीं रह पाया ।
बाद में तो फल और सूखे मेवों पर आया , भूख बढ़ती गई और टालमटोल चलती रही ।
कोशिश तो नहीं छोड़ सकता है । उसकी मजबूरी है । बिल्डिंग बनाने का ख़्वाब भी उसके पेट की भूख से जुड़ा हुआ था । कहीं वह भूख से बिलबिला कर मर ना जाये , कृशकाय , लम्बा सा लटकते चेहरे पर चिंता की लकीरों को समेटे हुए वह जैसे ही बाहर आया कि सेक्रेटरी ने टोक दिया ।

" क्या सुरेश जी , आप कब तक यूँ चक्कर लगाते रहेंगे , आपके वश में नहीं है यहाँ से काम करवाना । "

" क्यों ? काम तो ...! बस साहब , पास कर दे पेपर " वह मायूस था ।

" पेपर वर्क की बात कर रहा हूँ मै , समझते क्यों नहीं ,कि भूख सिर्फ अफसर को ही नहीं ,उनके नामुइंदो को भी लगती है "

" भूख ! आपको भी लगती है क्या ? बडी़ मेहरबानी होगी , कृपया अपनी भूख शांत कर मेरा काम देख लीजिये "

" काम तो हो जायेगा लेकिन इन ब्रेड अंडों से नहीं , कुछ गर्म-माँस, मदिरा की व्यवस्था कीजिये "

" मदिरा तो ठीक ,लेकिन यह गर्म-माँस क्या मतलब हुआ इसका "

" अपना काम करवाना है तो इन सबका मतलब समझना होगा " उसके कंधे पर हाथ रख आधे झड़ते से पीले दाँत निपोड़ वह खिखिया उठा ।

उसने अपने पैरों में पहने जूते की तरफ़ देखा । घिसी हुई सोल से तलुवा झाँक रहा था ।
" काम तो किसी भी हाल में करवाना हैै , जल्दी बताईये " भविष्य में जूते के अधिक उघड़ने से , वह सहसा डर गया । भूख और पेट दोनों का आकार अब सुरसा के मुँह जैसा बढ़ता जा रहा था ।


मौलिक और अप्रकाशित

Views: 737

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 10:18am

आदरणीय  लक्ष्मण रामानुज  जी , आपने  कथा  के  विषय की  गंभीरता  को  समझा ये  मुझे  प्रोस्त्साहित  कर  गया  . दिल  से  आभार  व्यक्त  करती  हूँ 

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 10:16am

कथा का  आपके  मन  तक  पहुँच  जाना मेरे  लिए सुखद  एहसास  है  आदरणीय समर  कबीर  जी . तहेदिल  आभारी  हूँ 

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 10:15am

आदरणीय सुशील सरना  जी , आप  जैसे साहित्य  के  मर्मज्ञ से कथा  पर  इतना  वितार्पूर्ण  प्रतिक्रया  पाना  मेरे  लिए  " पदक " के  सामान  हुआ  है  . ह्रदय  से  आभार  आपको 

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 10:13am

कथा पर अपनी  सकारात्मक प्रतिक्रया से मेरा  उत्साह  बढाने  के  लिए  बहुत  बहुत  आभार  आपको  आदरणीय राहिला  जी  

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 24, 2016 at 10:40am

लघु कथा का अच्छा विषय चुना है | सामयिक समस्या पर लघुकथा रचने के लिए बधाई 

Comment by Samar kabeer on February 23, 2016 at 3:26pm
मोहतरमा कांता रॉय जी आदाब,शानदा विषय,शानदार लेखन,मन को छू गई आपकी लघुकथा,दिल से बधाई स्वीकार करें !
Comment by Sushil Sarna on February 23, 2016 at 1:48pm

" अपना काम करवाना है तो इन सबका मतलब समझना होगा " उसके कंधे पर हाथ रख आधे झड़ते से पीले दाँत निपोड़ वह खिखिया उठा ।

उसने अपने पैरों में पहने जूते की तरफ़ देखा । घिसी हुई सोल से तलुवा झाँक रहा था ।
" काम तो किसी भी हाल में करवाना हैै , जल्दी बताईये " भविष्य में जूते के अधिक उघड़ने से , वह सहसा डर गया । भूख और पेट दोनों का आकार अब सुरसा के मुँह जैसा बढ़ता जा रहा था ।

आ. कान्ता रॉय जी अपने प्रस्तुत लघु कथा के माध्यम से समाज व्याप्त इस अवांछित कृत्य को दर्शा कर एक साहसिक मानसिकता का परिचय दिया है। ये भूख वास्तव में सुरसा के मुख की तरह बढ़कर समाज और देश को दीमक की तरह चाट रही है। इस श्रेष्ठ प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by Rahila on February 23, 2016 at 11:22am
जिस काम के लिये अफसर दफ्तर में बैठे हैं और तन्खाह पा रहे है । उस काम को बिना दक्षिणा लिये आज की तारीख में कोई नहीं करता ।इस सिस्टम का ना चाह कर भी आप हिस्सा तब बन जाते हो जब कोई काम किसी भी हालत में कराना आवश्यक हो जाय ।बहुत बधाई आपको आदरणीया कांता दी !इस मुद्दे को अपनी लेखनी से उठाने के लिये । सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद,  आज़ाद तमाम भाई ग़ज़ल को समय देने हेतु !"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलक राज कपूर साहब,  आपका तह- ए- दिल आभारी हूँ कि आपने अपना अमूल्य समय देकर मेरी ग़ज़ल…"
5 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"जी आदरणीय गजेंद्र जी बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीया ऋचा जी ग़ज़ल पर आने और हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
6 hours ago
Chetan Prakash commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी । "छिपी है ज़िन्दगी मैं मौत हरदम वो छू लेगी अगर (…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service