For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चारो तरफ से पानी..पानी..पानी की आवाज सुनाई दे रही है | जिधर देखो उधर पानी के लिए लम्बी कतारें व पानी के लिए जूझते लोग, पानी ढोते टैंकर से ले कर ट्रेन तक दिखाई दे रहे हैं | हैण्डपम्प, कुँए सूख गए हैं और तालाब अब रहे नहीं, उस पर कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए गए हैं | पानी के लिए चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है | देश का रीढ़ किसान आस भरी नजरों से आसमान की ओर देख रहा है | प्यास से घरती का कलेजा फट रहा है | विकाश के नाम पर वन प्रदेश खत्म होते जा रहे हैं, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई हो रही है क्यों की हम विकाश कर रहे हैं ! हरे-भरे जंगलों, वृक्षों,तालाबों और बावड़ियों को खत्म कर हम रंग-बिरंगे, चमकीले कंक्रीट के जंगल खड़े करते जा रहे हैं क्यों कि हम विकाश कर रहे हैं ! अपने घरों से ले कर शहरों और इंडस्ट्रियों की सारी गंदगी को हमने सीधे नदियों में डाल कर उनका आस्तित्व ही खतरे में डाल दिया है क्यों कि हम विकाश कर रहे हैं !
सब से ज्यादा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ हम मनुष्यों ने ही किया हैं बाकी के जीव-जंतु तो प्रकृति पर ही निर्भर रहते हैं | हमारा जीवन भी प्रकृति पर ही निर्भर है ये बात हम भूल गए हैं और प्रकृति का जितना दोहन हम कर सकते थे उससे कहीं ज्यादा हम कर रहे हैं जिसका नतीजा जल संकट के रूप में हमारे सामने हैं |
जिसे देखो वही केन्द्र सरकार की ओर मुँह किये सूखे या जल संकट से निपटने के लिए मुआवजे की मांग करता दिखाई दे रहा हैं | क्या पैसे (मुआवजे) से पानी की किल्लत दूर की जा सकती हैं और अगर की भी जा सकती है तो कब तक ? तभी तक ना जब तक कहीं भी जल की एक बूँद बची है | इसके बाद क्या होगा ? कहाँ से आएगा जल ? क्या ये सारी जिम्मेदारी सरकार की हैं ? क्या प्रकृति के संसाधनों का उपयोग केवल सरकारें ही करती हैं ? हम नहीं करते ? तो क्या हमारा भी दायित्व  नहीं बनता कि जल संकट को हम गंभीरता से लें ? पानी देने या पानी की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी सरकार की और सुविधाएँ भोगें हम !
हम जल की तलाश में मंगल तक पहुँच गए पर अपनी धरती के जल को संरक्षित नहीं कर पा रहे | विकाश के नाम पर जरूरत से ज्यादा भूगर्भीय जल का दोहन करना, हमारी जीवनदायिनी नदियों को दूषित करते जानाहमारी प्रवृत्ति बन गयी है | प्रकृति की संतान हो कर भी हमने उसके साथ कितने अन्याय किये हैं तो प्रकृति हमें वरदान तो नहीं दे सकती ना ! प्रकृति के इस बदलते स्वरूप के लिए जिम्मेदार हम भी हैं | हम अपने-अपने निजी स्वार्थ हेतु प्रकृति को पूरी तरह से अनदेखा कर देते हैं |
 हमारे देश में हर वर्ष लगभग तीन से चार अरब लीटर पानी बरसता है पर वह ज्यादा से ज्यादा बह जाता है | हम बहुत ही कम मात्र में उसे सहेज पाते हैं | पहले वन प्रदेश, कुंए, तालाब, बावड़ी आदि इसे संरक्षित कर लिया करते थे पर अब कहीं-कहीं ही इनका नामोनिशान नाम मात्र को ही बचा है | देश-प्रदेश की सरकारें, स्थानीय निकायों और पंचायतों तक ने पानी की सुरक्षा के प्रति गंभीरता नहीं दिखाई है | सुविधाएँ और ठाट-बाट सबको चाहिए पर पानी की सुरक्षा नहीं |
एक बात और जो मेरी छोटी सी बुद्धि में आ रही है | पानी सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं है | प्रकृति अपने संसाधन हम सब पर एक समान लुटाती है तो प्रकृति की तरफ जिम्मेदारी भी हम सब की बराबर है | घर-घर, गाँव-गाँव, शहर-शहर हर जगह बढ़ता लगातार जल संकट से यह साफ़ जाहिर हो गया है कि जल से जुड़ी समस्याएँ हम सब की हैं सिर्फ सरकारों की नहीं | हमें अपने आज के लिए, हमें अपने कल के लिए, जल का प्रबंध करना होगा क्यों कि जल है तभी तो कल है |
आज जल कि ये हालत है तो आने वाले वर्षों में क्या हालात होंगे ? अनुमान कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं | इस लिए जल संरक्षण के उपाय और जल के सीमित उपयोग का संकल्प हम सब को मिल कर करना होगा चाहे सरकार हो, सामाजिक संस्थान हो या समाज के लोग | यह हम सभी की जिम्मेदारी है | अगर हम आज भी नहीं चेते तो कल कुछ भी नहीं बचेगा |

मीना पाठक
कानपुर

Views: 611

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on June 29, 2016 at 9:14pm

इतना मान देने के लिए सादर आभार आ० सौरभ सर | क्या कहूँ कोई शब्द नहीं मिल रहा ..पुन: तहेदिल से आभार स्वीकारें ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 13, 2016 at 3:05pm

इतने अच्छे लेख की लेखिका, इतनी सार्थक चर्चा की सूत्रधार ! आप अपनी बुद्धि को ’अल्प बुद्धि’ क्यों लिख गयी, आदरणीया ? ऐसी लेखकीय आदत उस काल की याद दिलाती है, जब हम ग़ुलाम थे और आकाओं के सामने अपनी बात रखते थे - Most humbly, respectfully, I beg to state वाले इश्टाइल में !

ऐसा न लिखा करें, आदरणीया मीना जी. आप समृद्ध मनस की सार्थक अभ्यासकर्म को प्रवृत्त एक सुगढ़ लेखिका हैं. 

सादर

Comment by Meena Pathak on June 13, 2016 at 2:03pm

आदरणीय सौरभ सर ..मैंने अपनी अल्प बुद्धि से यही कहने का प्रयास किया है कि सरकार को कुछ कड़े कदम उठाने होंगे और हम सब को अपने अपने स्तर पर भी प्रयास करना होगा तभी इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है | अगर सभी मिल कर प्रयास करें तो चेन्नै की तरह हमारे शहरों में भी पानी की कमी से निजात पाया जा सकता है |
लेख को समय देने और त्रुटियों की तरफ इंगित करने के लिए सादर आभार सर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 12, 2016 at 2:25pm

मैं तब चन्नै में हुआ करता था. पूरा तमिळनाडु, विशेषकर चेन्नै राजधानी होने के कारण, घोर जल-संकट से गुजरा करता. हर साल गर्मी का मौसम भयानक दिन लेकर आता. मुहल्लों में पानी के टैकर आ जाते तो ऑफ़िस केलिए निकलते लोग रुक कर पहले सपरिवार ’पॉट्स’ में पानी बटोरते. हर मुहल्ले छोड़िये, हर गली का टैंकर हुआ करता था.

फिर २००५ में सरकारिया घोषणा हुई कि हर घर को पानी-संरक्षण या ’वाटर-हार्वेस्टिङ’ का इंतज़ाम करना ही करना होगा. यानी अनिवार्य तौर पर. अन्यथा मुआयना करने पर लापरवाही बरतने वालों पर भारी दण्ड का प्रावधान था. जो परिवार इस मद में पैसा खर्चने में कमज़ोर थे उनको सरलतम क़िश्तों में सरकारी कर्ज़ मिला था. मात्र नौ महीनों में चेन्नै शहर का हर घर-बिल्डिंग-मकान-संस्थान ’वाटर-हार्वेस्टिङ’ के इंतज़ाम से लैस था. अगले नवम्बर-दिसम्बर की बारिस में (वहाँ नवम्बर-दिसम्बर में बारिश होती है), धरती का वाटर लेवेल पचास से पचपन फीट पर था, जो मात्र एक साल पहले तीन सौ से चार सौ फीट पर हुआ करता था. चैन्नै शहर को २००५ से पानी की कमी फिर कभी नहीं झेलनी पड़ी. कहने का तात्पर्य है कि हम कितने जागरुक हैं ! चेन्नै का ही प्रयास् अपने शहर में हम क्यों नहीं कर सकते ? तालाबों की खुदाई-सफ़ाई का काम होना शुरु हुआ है. लेकिन कितना दिखावा और कितनी हकीकत है इसे तो परिणाम के आने के बाद ही समझा जा सकेगा. 

आजकी सबसे बड़ी समस्या पर कलन चलाने केलिए हार्दिक धन्यवाद मीनाजी. 

एक बात : 

विकाश को विकास लिखा करें.  और, एक-दो जगह टंकण त्रुटियो के प्रति ध्यान दीजिये. 

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
11 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
11 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
16 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
18 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Nov 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service