For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सावन
सूखी रह गई,
सूखे भादो मास

विरहन प्यासी धरती कब से,
पथ तक कर हार गई
पनघट पूछे बाँह पसारे,
बदरा क्यों मार गई

पनिहारिन
भी पोछती
अपनी अंजन-सार

रक्त तप्त अभिसप्त गगन यह,
निगल रहे फसलों को
बूँद-बूँद कर जल को निगले,
क्या दें हम नसलों को

धूँ-धूँ कर
अब जल रही
हम सबकी अँकवार

कब तक रूठी रहेगी हमसे,
अपना मुँह यूॅं फेरे
हम तो तेरे द्वार खड़े हैं
हृदय हाथ में हेरे


तू जननी
हर जीव की
अखिल जगत आधार ।

-रमेश चौहान
........................................
मौलिक अप्रकाशित

Views: 552

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रमेश कुमार चौहान on September 15, 2016 at 8:27pm

आदरणीय सौरभ पाण्ड़ेयजी, आपके इस विश्लेषण से मुझे आत्म अवलोकन का अवसर प्राप्त हुआ । आपके प्रेरणा से ही मैं सतत् अभ्यास कर्म में लगा हुआ हूँ । जी,, मैं व्याकरणीय दोष के निवारण हेतु संघर्षरत हूँ । आपके सुझाव अनुसार अब अध्ययन में बल देने का प्रयास करूंगा । इसी प्रकार मार्गदर्शन करते रहियेगा ।
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 4:30pm

सावन 
सूखी रह गई,................................ सावन स्त्रीलिंग कबसे हो गया ? 
सूखे भादो मास

विरहन प्यासी धरती कब से,
पथ तक कर हार गई ................... शब्द-स्वर से उच्चारण दोष हो रहा है. ऐसे टंग-ट्विस्टर संयोजन न रख अकरें आदरणीय
पनघट पूछे बाँह पसारे,  |
बदरा क्यों मार गई       | ............. दोनों पंक्तियों को मिला कर देखिये तो प्रश्न किससे पूछा जा रहा है ? ’बदरा कौन मार’ गयी ?

पनिहारिन 
भी पोछती
अपनी अंजन-सार....................... सार का अर्थ क्या है ? यदि सार अवशेष है जोकि सही अर्थ है तो वह पुल्लिंग शब्द है.

रक्त तप्त अभिसप्त गगन यह,
निगल रहे फसलों को....................... गगन एकवचन है तो इसकी क्रिया बहुवचन की कैसे हो गयी ? 
बूँद-बूँद कर जल को निगले,  |
क्या दें हम नसलों को         | ........... इन दोनों पंक्तियों की तारतम्यता सही नहीं बनी है. 

धूँ-धूँ कर..................................... धू-धू  
अब जल रही
हम सबकी अँकवार.. 

 

कब तक रूठी रहेगी हमसे,
अपना मुँह यूॅं फेरे 
हम तो तेरे द्वार खड़े हैं
हृदय हाथ में हेरे........................... किससे पूछा जा रहा है ?


तू जननी 
हर जीव की
अखिल जगत आधार ।................... कौन ? 

आदरणीय रमेश जी, उपर्युक्त टिप्प्णी से यह अवश्य स्पष्ट हो रहा होगा कि भावाभिव्यक्ति में स्पष्टत बहुत अधिक आवश्यक है. आपकी कोशिश आश्वस्त तो करती है लेकिन यह आवश्यक अभ्यासकर्म ही नहीं गहन अध्ययन भी मांग रही है. 

प्रस्तुति हेतु सादर धन्यवाद

 

Comment by Samar kabeer on September 15, 2016 at 4:05pm
जनाब रमेश चौहान साहिब आदाब,बहुत सुंदर लगी आपकी कविता,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
2 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
yesterday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service