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यूँ तो सावन जाने को है, फिर भी ...

यूँ तो सावन जाने को है, फिर भी ...
आया सावन मास सखी री
हरी हो गई घास सखी री
हरी चूड़ियाँ बिंदी साड़ी
हाथों में मेहँदी रंग गाढ़ी
झूले हो गए खास सखी री
गहराई है आस सखी री
श्वेत श्याम बादल उड़ आते
प्रियतम का संदेशा लाते
भरें कुलाँचे साँस सखी री
आया सावन मास सखी री

रंग गेरुआ घर घर डोले
जिसको देखो बम बम भोले
मन में है उल्लास सखी री
सुंदर वर की आस सखी री
ज्यों ज्यों सावन बीता जाए
मन उछाह से भर भर जाए
रक्षा बंधन पास सखी री
भाई, बहन की आस सखी री
है मन में विश्वास सखी री
आया सावन मास सखी री।।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 6, 2017 at 10:52am

हार्दिक धन्यवाद

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 6, 2017 at 7:56am
सुन्दर रचना...बधाई
Comment by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 5, 2017 at 3:47pm

प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद श्रीमान!

Comment by Gajendra shrotriya on August 5, 2017 at 12:46pm
बहुत सुन्दर और सामयिक गीत रचा है आपने आ० श्यामकिशोर जी। हार्दिक बधाई आपको।

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