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मोहब्बत ...

गलत है कि 
हो जाता है 
सब कुछ फ़ना 
जब ज़िस्म 
ख़ाक नशीं 
हो जाता है 
रूहों के शहर में 
नग़्मगी आरज़ूओं की 
बिखरी होती 
ज़िस्म सोता है मगर 
उल्फ़त में बैचैन 
रूह कहाँ सोती है

मेरे नदीम 
न मैं वहम हूँ 
न तुम वहम हो 
बावज़ूद 
ज़िस्मानी हस्ती के 
खाकनशीं होने पर भी 
वुज़ूद रूह का 
क़ायनात के 
ज़र्रे-ज़र्रे में 
ज़िंदा रहता है
तिश्नगी ज़िन्दा रहती है 
दिल आरज़ू का 
धड़कता रहता है

ज़िंदगी तो 
उन्स का नाम है 
बे-जिस्म होने के बाद भी 
रूहों में 
इश्क का अलाव 
फ़िज़ाओं की धड़कनों में 
ज़िंदा रहता है

लम्हे मोहब्बत के 
इतनी आसानी से 
फ़ना नहीं होते 
वस्ल के लम्हों में 
कुछ भी दरमियाँ नहीं होता 
तू और मैं का फ़र्क 
मिट जाता है 
शर्म-ओ-हया का हिज़ाब 
हट जाता है 
साये ज़िस्म बन जाते हैं 
हकीकत को गुनगुनाते हैं 
रूह से 
जिस्म का मुलम्मा हट जाता है 
हिज़्र का 
डर नहीं होता 
यकीं के बाम पे 
बस इक पाक गौहर सी 
ज़िंदगी होती है 
आसमानों की 
चादर ओढ़कर 
मोहब्बत 
चैन की नींद सोती है
ये हुस्न-ओ-इश्क की हिकायतें 
ज़िंदा रहेंगी 
हमारे बाद भी 
अनफास की कबाओं में रक्स करेंगी 
गर्म साँसों में लिपटी 
साअतें

नदीम =मित्र,सखा ,गोहर=मोती ,उन्स =मोहब्बत ,हिकायतें =कथाएं , अनफास= सांसें ,साअतें =क्षण,पल

सुशील सरना

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on May 1, 2018 at 12:44pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... प्रस्तुति आपकी मधुर प्रशंसा की आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on May 1, 2018 at 12:44pm

आदरणीय नीलम उपाध्याय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on May 1, 2018 at 12:43pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी प्रस्तुति को अपना स्नेह देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on May 1, 2018 at 12:43pm

आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब, सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on May 1, 2018 at 12:43pm

आदरणीय नरेंद्र सिंह चौहान जी सृजन को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Samar kabeer on April 28, 2018 at 10:29pm

जनाब सुशील सरना साहिब आदाब, अच्छी कविता हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Neelam Upadhyaya on April 27, 2018 at 3:44pm

आदरणीय सुशिल सरना जी, अच्छी अतुकांत कविता।  बधाई

Comment by Shyam Narain Verma on April 26, 2018 at 4:10pm
बहुत सुन्दर ॥ अतुकांत रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 26, 2018 at 2:07pm

शीर्षक तहत बेहतरीन सृजन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी।‌‌‌‌ कठिन शब्दार्थ हेतु सादर धन्यवाद।

Comment by narendrasinh chauhan on April 26, 2018 at 10:12am
बहोत खुब

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