For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उससे नज़रें मिलीं हादसा हो गया (तरही)

212 212 212 212

****************

उससे नज़रें मिलीं हादसा हो गया,
एक पल में यहाँ क्या से क्या हो गया ।

ख़त दिया था जो कासिद ने उसका मुझे,
"बिन अदालत लगे फ़ैसला हो गया" ।

दरमियाँ ही रहा दूर होकर भी गर,
जाने फिर क्यूँ वो मुझसे ख़फ़ा हो गया ।

गर निभाने की फ़ुर्सत नहीं थी उसे,
खुद ही कह देता वो बेवफ़ा हो गया।

दर्द सीने में ऱख राज़ उगला जो वो,
यूँ लगा मैं तो बे-आसरा हो गया ।

****

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 802

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on April 30, 2018 at 12:01pm

आदरणीय समर कबीर जी मेरी इस ग़ज़ल पर अपना इतना कीमती समय देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया एवं आभार ।

सादर !

Comment by Samar kabeer on April 30, 2018 at 10:27am

दूसरा मतला रख लें,बाक़ी अशआर अब ठीक हैं ।

Comment by Harash Mahajan on April 29, 2018 at 11:24pm

आदरणीय समर कबीर सर आदाब । विषय वस्तु फिर से सफर कर आपके समक्ष प्रस्तुत कर हूँ । सर सुधार के चलते जो मतला बना था उसमें शुतुरबुर्गा दोष आ रहा था इसलिए थोड़ा बदलने की कोशिश की है । मतला दो तरह से कहा है ज़रा देखिएगा ।

दूसरे जो कासिद वाले मुजरे में ईता दोष बन रहा था सर इसलिये दूसरी तरह काने की कोशिश की है । 

कृति आपकी इंतज़ार में सर ।

सादर

उससे नज़रें मिलीं हादसा हो गया,
पल में जाने मुझे क्या नशा हो गया
Or
उससे नज़रें मिलीं हादसा हो गया,
एक पल में यहाँ क्या से क्या हो गया ।

ख़त दिया था जो कासिद ने उसका मुझे,
"बिन अदालत लगे फ़ैसला हो गया" ।

दरमियाँ ही रहा दूर होकर भी गर,
जाने फिर क्यूँ वो मुझसे ख़फ़ा हो गया ।

गर निभाने की फ़ुर्सत नहीं थी उसे,
खुद ही कह देता वो बेवफ़ा हो गया।

दर्द सीने में ऱख राज़ उगला जो वो,
यूँ लगा मैं तो बे-आसरा हो गया ।


***

Comment by Harash Mahajan on April 29, 2018 at 8:39pm

आदरणीय समर कबीर जी आदाब ।

सबसे पहले दिली शुक्रिया । सर आपकी आमद और

बेशकीमती राय के अनुरूप इस पेशकश में जो खामियाँ

आपने चिन्हित की हैं उनमें सुधार कर इसे फिर से पेश करता हूँ

सर । 

सादर। 

Comment by Harash Mahajan on April 29, 2018 at 8:34pm

आ. बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आपकी आमद

और पसंदगी का बहुत बहुत शुक्रिया ।

सादर ।

Comment by Samar kabeer on April 29, 2018 at 7:56pm

जनाब हर्ष महाजन साहिब आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

मतला बे रब्त है, और 'ज़लज़ला' होता नहीं आता है, संशोधित मतला यूँ कर सकते हैं:-

'उनसे नज़रें मिलीं हादसा हो गया

एक पल में यहाँ क्या से क्या हो गया'

दूसरे शैर के ऊला में "क़ासिदों" बहुवचन है, क्या बहुत सारे क़ासिद आये थे ख़त देने? इसे यूँ कर सकते हैं:-

'ख़त जो क़ासिद ने उस बेवफ़ा का दिया'

तीसरा शैर भर्ती का है, हटा दें,कुछ और कहें ।

चौथे शैर में जनाब निलेश जी का सुझाव उत्तम है।

पांचवें शैर में कौन बे आसरा हो गया? भाव स्पष्ट नहीं ।

संशोधित मत

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 29, 2018 at 7:47pm

आदरणीय महाजन जी आपका प्रयास बहुत ही उम्दा है..

Comment by Harash Mahajan on April 29, 2018 at 4:11pm

नीलेश जी गुणीजनों की अदालत में ग़ज़ल के मतले को और शुतुरगुर्बा दोष को दुरुस्त कर दुबारा भेज रहा हूँ । वक़्त मिले तो ज़रा नज़र भर देखिएगा ।

सादर ।

जब निग़ाहें मिलीं ज़लज़ला हो गया,

ज़ह्र ये मेरे दर पे दवा हो गया ।

कासिदों ने दिया बेवफ़ा का जो ख़त,
"बिन अदालत लगे फ़ैसला हो गया" ।

जब सुनाया सफ़र मुफ़लिसी का मुझे
वो उबलते जिगर से रिहा हो गया ।

गर निभाने की फ़ुर्सत नहीं थी उसे,
खुद ही कह देता वो बेवफ़ा हो गया।

दर्द सीने में ऱख राज़ कहता रहा,
अर लगा मुझको बे-आसरा हो गया ।

***

Comment by Harash Mahajan on April 29, 2018 at 11:52am

आदरनीय नीलेश जी , सर एक बात तो रह ही गयी ।

जिस शेर में दोष है उसे हम यूँ भी कह सकते हैं जैसे

आपने मिसरा ठीक किया उसके साथ...काफी पसंद आया

है सर ।

गर निभाने की फ़ुर्सत नहीं थी उसे,

खुद ही कह देता वो बेवफा हो गया।

सर देखिएगा ।

Comment by Harash Mahajan on April 29, 2018 at 10:57am

आदरणीय नीलेश जी आदाब ।

आपकी ग़ज़ल पर उत्साहवर्धक टिप्पणी देखकर

कोशिशों में इज़ाफ़ा होता है ।

ग़ज़ल में जहां कमी नज़र आती है जब बताते हो तो हर बार एक नई बात 

ओर सुधार लिए आगे बढ़ने का मौक़ा मिलता है ।

आपकी इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।

सादर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
8 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
yesterday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
yesterday
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service