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अस्थिशेष (अतुकांत)

श्रम में तन्मय
अस्थिशेष
बस एक लक्ष्य
बस एक ध्येय
अपना काम
स्वप्न वैभव से दूर
मन तरंग पर हो सवार
कर्म को कर अवधार्य
लघुता का नहीं भार l
कहने को गगनचुंबी अट्टालीकाएँ
अनमोल झरोखे
रंग रोगन रूवाब
झिलमिलाती बत्तियां
मीठे ख्वाब
कंचन सी चमक दमक
ऐसो आराम
बेफिक्र मन प्रमन l
क्या पता ?
सुदूर विजन में
अम्बर तले
एक अदना सा
बेरूप बेनाम
सुखाता चाम
तापता घाम अनवरुद्ध
धूसर बदन ,अव्यक्त व्यथित मन
क्षुधा पिपासा क्षीण आशा
वक्त झंझा से टकराता
सुबह से शाम
दे रहा पैगाम
बस एक लक्ष्य, बस एक ध्येय
अपना काम ll

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on May 8, 2018 at 9:04pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी आपके उत्साह वर्धन से मन प्रसन्न हुआ बहुत बहुत आभार 

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on May 8, 2018 at 9:02pm

आदरणीय मिहित जी आपने मार्ग दर्शन किया उत्साह बढ़ाया इसके लिए बहुत बहुत आभार

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on May 8, 2018 at 9:01pm

भाई सुरेन्द्र जी आपने उत्साह वर्धन किया मन प्रसन्न हुआ बहुत बहुत आभार प्रकट करता हूं

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on May 8, 2018 at 8:59pm

आदरणीय समर साहब जी आपके उत्साह वर्धन से सीना चौड़ा हो जाता है दिल में उमंग बढ़ जाता है आपकी हौसलाफजाई औषधि का काम करती है ,आपका बहुत बहुत आभार

Comment by नाथ सोनांचली on May 7, 2018 at 5:51pm

आद0 डॉ भैया सादर अभिवादन। बढिया अतुकांत लिखा आपने। इस प्रस्तुति पर मेरी बधाई स्वीकार कीजिये।

Comment by Samar kabeer on May 6, 2018 at 11:22am

जनाब डॉ.छोटेलाल जी आदाब,बढ़िया अतुकान्त कविता हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on May 5, 2018 at 6:09pm

दिल से आभार आपका सादर आदरणीय

Comment by Shyam Narain Verma on May 5, 2018 at 11:33am
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई सादर

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