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घुटन के इन दयारों में तनिक परिहास बढ़ जाये - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

छलकते देख कर आँसू ग़मों की प्यास बढ़ जाये
कभी ऐसा भी मौसम हो चुभन की आस बढ़ जाये।१।


लगे ठोकर किसी को भी न चाहे घाव खुद को हो
मगर देखें तो दिल में दर्द का अहसास बढ़ जाये।२।


भला कब चाहते  हैं  ये  जिन्हें  हम  शूल कहते हैं
मिटे पतझड़ चमन का साथ ही मधुमास बढ़ जाये।३।


लगाई नफरतों  ने  है  यहाँ  हर सिम्त ही बंदिश
घुटन के इन दयारों में तनिक परिहास बढ़ जाये।४।


रखो ये ज्ञान भी यारो जो चाहत घुड़सवारी की
नहीं घोड़ा सँभलता है अगर जो रास बढ़ जाये।५।


चलो माना तनिक बारिश जरूरी तो है सागर को
मगर तपते मरुस्थल भी कभी चौमास बढ़ जाये।६।


मौलिक अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
१२ दिसम्बर १८
****

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 14, 2018 at 5:26am

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार ।

Comment by Samar kabeer on December 13, 2018 at 10:40pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 13, 2018 at 8:13pm

आ. भाई फूल सिंह जी, सादर आभार ।

Comment by PHOOL SINGH on December 13, 2018 at 4:50pm

सुंदर ग़ज़ल की प्रस्तुति, बधाई स्वीकारे 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 12, 2018 at 8:05pm

आ. भाई राज नवादवी जी, गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार ।

Comment by राज़ नवादवी on December 12, 2018 at 8:01pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आदाब। सुंदर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे दाद के साथ मुबारकबाद। सादर। 

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