दो मुक्तक (मात्रा आधारित )......
शराबों में शबाबों में ख़्वाबों में किताबों में।
ज़िंदगी उलझी रही सवालों और जवाबों में।
.कैद हूँ मुद्दत से मैं आरज़ूओं के शहर में -
उम्र भर ज़िन्दा रहे वो दर्द के सैलाबों में।
.........................................................
पूछो ज़रा चाँद से .क्यों रात भर हम सोये नहीं।
यूँ बहुत सताया याद ने .फिर भी हम रोये नहीं।
सबा भी ग़मगीन हो गयी तन्हा हमको देख के-
कह न सके दर्द अश्क से ज़ख्म हम ने धोये नहीं।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन पर आपकी महत्वपूर्ण जानकारी का दिल से आभार। सर यहां मैं वर्ण आधारित गणना की है मसलन पलीं पंक्ति में अगर २७ वर्ण हैं तो आगे वाली पंक्तियों में भी २७ ही होंगे। मैंने १२२२ के आधार पर इसका गठन नहीं किया। आपका मार्गदर्शन अमूल्य है। अपना स्नेह बनाएं रखें सर। सादर ...
.//पहले मुक्तक की २७ और दूसरे की २८ है मात्रा भार। //
27,28 इनका मात्रा भार ग़लत मापनी है,मिसाल के तौर पर पहले मुक्तक की पहली पंक्ति देखिये:-
'शराबों में शबाबों में ख़्वाबों में किताबों में'
इसकी मापनी है,1222 1222 1222 1222, लेकिन इसमें भी कमी है 'ख़्वाबों' शब्द इसे बेबह्र है,क्योंकि आपने 'ख़्वाबों' शब्द को 122 पर लिया है,जबकि इसकी मात्रा 22 होती है ।
इसी तरह बाक़ी की पंक्तियां भी दुरुस्त नहीं हैं,देखियेगा ।
आदरणीय narendrasinh chauhan जी, सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर जी, आदाब ....पहले मुक्तक की २७ और दूसरे की २८ है मात्रा भार। विलम्ब के लिए क्षमा।
बहोत सुन्दर सर। .........
जनाब सुशील सरना जी आदाब,मात्रा भार क्या लिया है ये भी लिखें,ताकि कुछ कहने में आसानी हो ।
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