For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रथम मिलन की शाम

प्रथम मिलन की शाम

विचारों के जाल में उलझा

माथे पर हलका पसीना पोंछते

घबराहट थी मुझमें  --

मैं कहीं अकबका तो न जाऊँगा

यकीनन सवाल थे उगल रहे तुम में भी

कैसा होगा हमारा यह प्रथम मिलन

अब तक दूरभाष पर करी वह बातें

मेरे खतों में लिखे वह स्नेह के उच्चारण

कहीं राख पर लिखे वह मात्र शब्द तो न थे

जल गए कागज़ पर के अक्षर-मात्र तो न थे

जो हवा का पहला झोंका आते ही बिखर जाएँ

हमारे स्पर्ष कहीं पहली सिहरन से पहले उड़ जाएँ

उफ़ !

प्रथम मिलन से पहले ही  

नाग की तरह रह-रह कर फुफकार मारते

कितने प्राणघातक अग्निमय प्रश्न  !

मैं रहा विचारों के जाल में नित जागता

गलतियाँ करने से डरता

अनिश्चितता के अन्धकार की अग्नि में

थी तुमको खो बैठने की चिंता भी गहरी

इसी द्वंद्व में लिख न सका मैं मन के ताने बाने

इस पर भी उभरता अनजान अनुच्चरित

शीतल विश्वास था तुममें मुझको, मेरी प्रिय

कि मिलते ही देखूँगा मुख पर तुम्हारे

स्नेह की अनमोल तृप्ति की दीप्ति

दूर हो जाएगी तुरंत दोनों के मन पर छाई

अकारण बढ़ती उभरती चिंता की गहराई

कुछ ऐसे ही बस से उतरी थी तू

भागती भीड़ के बीच निडर

और देखते ही मुझको

मेरे हाथ में अपनी उँगलियाँ गूँथती

आँचल में असीम आवेग की आग लिए

तुम्हारी आत्मीए बाहें सीमायों को समेटती

उफ़, वह अग्निमय आलिंगन

कि जैसे आतुर थी तुम्हारी धड़कन

सुनने को बस मेरे हृदय की धड़कन

स्वर में थी हल्की-सी कंपन

संबंध पर संदेह की हलकी-सी छाया 

रिश्ता नया था, पर बहुत  "अपना"  था

मानों स्पर्ष-सुख से भरा वह सपना था

अत: कुछ भी अजनबी न लगा

मुझको, न तुमको

स्वीकार की पूर्णता, हँस दी कोई पुष्पलता

तुम्हारी आँखे मेरी आँखों में कुछ खोजती

मानो टिमटिमाते कितने बल्बों की रोशनी 

जागती जगमगाती रही स्नेह की जिज्ञासा

 यूँ विकसित हुआ हमारा वह प्रथम मिलन 

वह शीत-वेला थी शीतल फुहारों-सी

प्रसन्न-चित्त, स्नेह से गाल पर गाल रखे 

मेरे कानों में तुम्हारा वह भारी प्रश्न अचानक

" मेरे प्यार, मेरे विश्वास, तुम भीड़ में कहीं

  बोलो, मुझसे दूर तो न सरक जाओगे ? "

                  -------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 473

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on January 30, 2020 at 3:06am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, प्रिय भाई समर कबीर जी।

Comment by Samar kabeer on January 29, 2020 at 3:23pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,बहुत उम्द: कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by vijay nikore on January 28, 2020 at 10:45am

सराहना के लिए हार्दिक आभार, मित्र लक्ष्मण जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2020 at 11:59am
  • आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन भावपूर्ण रचना हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service