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ग़ज़ल - जो दिल तुझसे वो तेरा मांगता है

1222 1222 122


निगाहों से हुई कोई ख़ता है ।
जो दिल तुझसे वो तेरा मांगता है ।।

रवानी जिस मे होती है समंदर ।
उसी दरिया से रिश्ता जोड़ता है ।।

हमारी ज़िन्दगी को रफ्ता रफ्ता ।
कोई सांचे में अपने ढालता है ।।

तुम्हारे हुस्न के दीदार ख़ातिर ।
यहाँ शब भर ज़माना जागता है ।।

कभी तुम हिचकियों से पूछ तो लो ।
तुम्हे अब कौन इतना चाहता है ।।

ठहर जाती हैं नज़रें बस वहीँ पर ।
दरीचे से वो जब भी झांकता है ।।

बरसने की जवां होती है ख्वाहिश ।
ये बादल जब ज़मीं को देखता है ।

नहीं सँभलेगा उससे दिल हमारा ।
जो डोरे रोज़ हम पर डालता है ।।

यकीनन वाम पे उतरेगा चंदा ।
वो हाले दिल हमारा जानता है ।।

न जाने कैसी है ये कहकशां भी।
सितारा हो के रुस्वा टूटता है ।।

मुक़द्दर जब बुरा होता है यारो ।
कोई अपना कहाँ पहचानता है ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी

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Comment by सालिक गणवीर on April 28, 2020 at 8:49am
बरसने की जवां होती है ख्वाहिश... वाह !शानदार मिसरा. बढ़िया ग़ज़ल हुई ह नवीन भाई.बधाइयां.
Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 27, 2020 at 7:59pm
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 27, 2020 at 9:59am

आ. भाई नवीन जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Shyam Narain Verma on April 26, 2020 at 5:04am
नमस्ते जी, बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर

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