For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िंदगी का हिसाब हो जाऊँ - ग़ज़ल - बसंत

मापनी 2122 1212 22/112

गर कहो तो जनाब हो जाऊँ

तुम जो देखो वो ख़्वाब हो जाऊँ

 

रोज पढ़ने का गर करो वादा

प्रेम की मैं क़िताब हो जाऊँ 

 

मुझको काँटों से डर नहीं लगता 

चाहता हूँ गुलाब हो जाऊँ 

 

गर ज़रूरत पड़े उजालों की

जल के ख़ुद आफ़ताब हो जाऊँ

 

डायरी में अगर मुझे लिख लो 

ज़िंदगी का हिसाब हो जाऊँ 

 

तुम मेरे वास्ते सवाल बनो 

मैं सरल सा जवाब हो जाऊँ 

 

जाने कब से यही तमन्ना है 

इश्क़ में क़ामयाब हो जाऊँ

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

Views: 394

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 5, 2020 at 8:25pm

आदरणीय Samar kabeer जी सादर नमस्कार, जी कर दिया, आपकी हौसलाअफजाई का दिल का शुक्रिया 

Comment by Samar kabeer on May 3, 2020 at 6:20pm

//गर कहो तो जनाब हो जाऊँ

तुम जो देखो वो ख़्वाब हो जाऊँ//

जी,ठीक है ।

अरकान भी एडिट कर दें ।

 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 3, 2020 at 5:45pm

आदरणीय Samar kabeer जी सादर नमस्कार, आपकी तरमीम का मुझे हमेशा इंतज़ार रहता है, दिल से शुक्रिया आपका 

मैंने इसमें कुछ और किया देखें शायद आपको पसंद आये 

गर कहो तो जनाब हो जाऊँ

तुम जो देखो वो ख़्वाब हो जाऊँ

 

रोज पढ़ने का गर करो वादा

प्रेम की मैं क़िताब हो जाऊँ 

 

मुझको काँटों से डर नहीं लगता 

चाहता हूँ गुलाब हो जाऊँ 

 

गर ज़रूरत पड़े उजालों की

जल के ख़ुद आफ़ताब हो जाऊँ

 

डायरी में अगर मुझे लिख लो 

ज़िंदगी का हिसाब हो जाऊँ 

 

तुम मेरे वास्ते सवाल बनो 

मैं सरल सा जवाब हो जाऊँ 

 

जाने कब से यही तमन्ना है 

इश्क़ में क़ामयाब हो जाऊँ

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 3, 2020 at 5:43pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी सादर नमस्कार, आपकी हौसला अफजाई  का दिल से शुक्रिया 

Comment by Samar kabeer on May 3, 2020 at 12:48pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'तुम कहो तो जनाब हो जाऊँ

तुम पियो वो शराब हो जाऊँ'

मतले के दोनों मिसरों में 'तुम' शब्द खटक रहा है,ऊला में 'तुम' की जगह "गर" कर सकते हैं ।

अरकान इस तरह लिखें:-

2122 1212 22/112

Comment by नाथ सोनांचली on May 3, 2020 at 11:28am

बसन्त कुमार शर्मा जी सादर अभिवादन। मतला मजेदार है। डायरी में मुझे लिख लो.... हरेक शेर में कुछ खास है। तरूणाई की बहार आ गयी ग़ज़ल पढ़कर। बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल पर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आसमाँ को तू देखता क्या है अपने हाथों में देख क्या क्या है /1 देख कर पत्थरों को हाथों मेंझूठ बोले…"
1 minute ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बेवफ़ाई ये मसअला क्या है रोज़ होता यही नया क्या है हादसे होते ज़िन्दगी गुज़री आदमी…"
20 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"धरा पर का फ़ासला? वाक्य स्पष्ट नहीं हुआ "
32 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। हर तरफ शोर है मुक़दमे…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"एक शेर छूट गया इसे भी देखिएगा- मिट गयी जब ये दूरियाँ दिल कीतब धरा पर का फासला क्या है।९।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब।  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बात करते नहीं हुआ क्या है हमसे बोलो हुई ख़ता क्या है 1 मूसलाधार आज बारिश है बादलों से…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"खुद को चाहा तो जग बुरा क्या है ये बुरा है  तो  फिर  भला क्या है।१। * इस सियासत को…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
5 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
9 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
9 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service