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1. बड़ी बात ना कर, बड़ी ज़ात ना कर, ना बड़ा गुरूर,
ख़ुदा की नजरे-इनायत हुई, तो आजमाएगा ज़रूर।
.
2 . कभी वक्त का हिसाब, कभी बातों का,
ज्यादा ना माँगा करो, हम गणित के कच्चे हैं।
.
3. मेरे हौसलें भी बेअद्बी,
उसकी बेअद्बी भी हौसलें।
ये दुनियादारी का गणित है,
ज़मीर से नहीं हिसाब से चलता है।
.
4. तर्कों के तीर काट नहीं पाते,
तेरी यादों का तिलिस्म।
.
5. चल कुछ और हक़ जताएं,
और थोड़ी सी ज़िद की जाय,
हम मुक्त हो कन्यादान से,
और उनकी विदाई की बात की जाय।
.
6. शिकायतें जब अलफ़ाज़ बन
कागज़ पर उतरती हैं,
ना पूछ कितनी उम्मीदों
और अरमानों का सीना चीरती हैं।
.
“मौलिक व अप्रकाशित”

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Comment by नाथ सोनांचली on May 5, 2020 at 7:39am

आद0 गीता चौधरी जी सादर अभिवादन। बढ़िया क्षणिकाएँ हुई हैं। बधाई लीजिये।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 4, 2020 at 7:02pm

आ. गीता जी, अच्छी क्षणिकाएँ हुई हैं । हार्दिक बधाई । शेष आ. समर जी कह चुके हैं । सादर..

Comment by Dr. Geeta Chaudhary on May 4, 2020 at 3:04pm

नमस्कार सर, हार्दिक आभार । सर वो शब्द मैंने बे -अदबी ही लिखा था, वो मैंने नोटिस भी कर लिया था, पर सर उसमें बाद में संशोधन नहीं हो सका। आगे इस बात का अवश्य ध्यान रखूंगी। पुनः आपके मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on May 4, 2020 at 2:54pm

मुहतरमा डॉ. गीता चौधरी जी आदाब, अच्छी क्षणिकाएँ लिखीं आपने,बधाई स्वीकार करें ।

तीसरी क्षणिका में 'बेअद्बी' ग़लत लिखा है "बे अदबी" ऐसे लिखें,कुछ टंकण त्रुटियाँ देखें,रचना लिखने के बाद ध्यान से पढ़ा भी करें ।

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