For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फर्क है ग़ज़ल  और छंद के मात्रिक विधान में     :: डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव

 \जब से हिन्दी में ‘ग़ज़ल ’ लिखना शरू हुआ तब से हिन्दी के वर्णिक गण ‘नगण’ को हिन्दी के कवियों ने भी लगभग नकार दिया है I इससे हिन्दी की छंद रचना कुछ आसान तो हुई है,  पर यह छंदों  की वैज्ञानिकता पर एक बड़ा संकट है I हिन्दी छंदों में तमाम संस्कृत से ग्रहीत छंद है और संस्कृत का छान्दसिक  व्याकरण कितना वैज्ञानिक और पुराना है,  यह बताने की आवश्यकता नहीं है I आज हिन्दी छंद के वैयाकरण, जिनकी साहित्य जगत में प्रतिष्ठा भी है, वे भी कमल को ‘नगण’ नहीं मानते , क्योंकि उर्दू में  कमल को क+म+ल (111   ) न मानकर  क+मल  (1+2 )माना जाता है I उर्दू में कमल  शब्द के उच्चारण में ‘क’ के बाद मल पढ़ा जाता है I अगर बात पढने की ही है तो फिर उर्दू में असमय को 2+2 क्यों नहीं माना जाता ? क्यों उर्दू व्याकरण (उरूज) में असमय  को 1+1+2 माना जाता है ?  

         इसका मुख्य कारण यह है कि ग़ज़ल  के व्याकरण में गणों के स्थान पर रुक्न हैं , जिनमे एक भी रुक्न ऐसा नहीं  है जिसमे 1+1+1 की व्यवस्था हो I ऐसा केवल हिन्दी में ही है I उर्दू में दो किस्म के रुक्न है  -  एक सालिम रुक्न अर्थात मूल रुक्न और दूसरा मुजाहिफ रुक्न अर्थात उप रुक्न I

सालिम रुक्न इस प्रकार है -

 रुक्न

 रुक्न का नाम

मात्रा

फ़ईलुन         

मुतक़ारिब      

122

फ़ाइलुन        

मुतदारिक

212

मुफ़ाईलुन     

हजज़               

1222

फ़ाइलातुन     

रमल  

2122

मुस्तफ़्यलुन  

रजज़               

2212

मुतफ़ाइलुन   

कामिल  

11212

मफ़इलतुन   

वाफ़िर              

12112

फाईलातु

-----

2221

मुजाहिफ रुक्न वे रुक्न है जो मूल रुक्न को तोड़कर या उसमे कुछ जोड़कर बनाये गए हैं  I  इनके कोई नाम नहीं  हैं , और न  इनकी संख्या निश्चित है  I मुख्य मुजाहिफ रुक्न  इस प्रकार हैं   -

फा

2

फेल

21

फ़अल

12

फैलुन

22

फ़ऊल

121

फ़इलुन

112

मफऊल

221

फाइलुन

222

फ़इलातुन

1122

मुफ़ाइलुन

1212  वगैरह , वगैरह

            इन रुक्नों में कहीं भी मात्रा 111 की व्यवस्था नहीं  है अर्थात  हिन्दी का ‘नगण ‘ उर्दू के उरूज में नहीं   है I  अब इसे विडंबना ही कहेंगे कि ग़ज़ल का व्याकरण, हिन्दी में गजलों के अभ्युदय के कारण आ जाने से  हिन्दी के अध्येता और अनन्य अनुरागी भी भ्रमित होकर अपना मूल व्याकरण भूल रहे हैं I

ग़ज़लकार वीनस केसरी ने अपनी पुस्तक ‘ग़ज़ल  की बाबत’ के पृष्ठ सं० 86 में बड़ा ही प्रांजल  मंतव्य दिया है कि – ‘याद रखें , यह मात्रा गणना के नियम ग़ज़ल विधा के लिए लिखे गए हैं और हिदी छंद की मात्रा गणना से इसमें पर्याप्त भिन्नता होती है , यदि हिन्दी छंद की मात्रा गणना करनी है तो उसके लिए अलग नियम मान्य होंगे I’

  इसी पृष्ठ पर कुछ पहले वीनस बिलकुल स्पष्ट कर देते है कि –‘छंद शास्त्र  की मात्रा गणना के अनुसार  कमल – क/म/ल  111 होता है  मगर ग़ज़ल  विधा में  इस तरह मात्रा  गणना नहीं  करते , बल्कि उच्चारण के अनुसार गणना करते हैं  I  उच्चारण  करते समय  हम ‘क ‘ उच्चारण  के बाद ‘मल’ बोलते हैं , इसलिए उर्दू में ‘कमल ‘ – 12 होता है I यहाँ पर ध्यान देने की बात यह है कि ग़ज़ल  में कमल का ‘मल’ शाश्वत दीर्घ है अर्थात जरूरत के अनुसार  ‘ग़ज़ल’ में कमल शब्द की मात्रा को  111 नहीं माना जा सकता I

                  यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि  उर्दू में सम, दम ,चल, घर , पल , कल, भव, जय जैसे शब्द भी शाश्वत द्विमात्रिक हैं  जबकि हिन्दी में ऐसा नहीं है I हिन्दी व्याकरण के अनुसार इनकी मात्राएँ 11 हैं I उदाहरणस्वरुप हिन्दी /संस्कृत का प्रसिद्द छंद ‘तोटक ’ यहाँ प्रस्तुत है I यह चार सगण के योग से बना वर्णवृत्त है , जिसमे बारह  वर्ण की अनिवार्यता है  I यथा-

              धर रूप मनोहर आज उगा।
              रवि पूरब से नव प्रीत जगा।।
              सब ताप हरे नव जीवन दे।
              तम घोर हरे हरि की धुन दे।।

          उक्त उदाहरणों में  कर, मणि, गज, मम, धर, रवि नव, सब, तम , हरि  आदि  की मात्रा (11) है  I  ग़ज़ल  के व्याकरण में ये शाश्वत द्विमात्रिक अर्थात दीर्घमात्रिक है I हिन्दी छंदों में जहाँ सगण , भगण  और नगण का उपयोग होता है वहां ऐसे शब्दों का प्रचुर उपयोग होता है I 

         अब हम फिर ‘नगण’ की ओर लौटते हैं I हिदी में मुख्य रूप से अमृतगति , इंदिरावृत्त , द्रुतविलम्बित, और मालिनी आदि वर्णवृत्त ऐसे है जिनका आरम्भ ही ‘नगण’ से होता है  I इनके उदाहरण प्रस्तुत हैं -

अमृतगति –  इसे त्वरितगति छंद भी कहते हैं I  इसमें नगण  , जगण . नगण  के बाद एक गुरु होता है I

                  अर्थात मात्रिक विन्यास 111-121-111-2 होगा I इस वर्णवृत्त में दस वर्णों की अनिवार्यता है I

                  इससे संबंधित कवि केशव का एक छंद इस प्रकार है -

                  निपट  पतिव्रत   धरिणी  I

                  जन-जन के दुःख हरिणी II

                  निगम  सदा गति सुनिये  I

                 अगति   महापति  गुनिये  II

I   दिरावृत्त - इसमें नगण , रगण . रगण  के बाद एक लघु और एक गुरु होता है I अर्थात  मात्रिक विन्यास     

                 111-212-212-12 होगा I इस वर्ण वृत्त में ग्यारह वर्णों की  अनिवार्यता है I  इससे संबंधित राष्ट्र    

                 कवि मैथिलीशरण गुप्त का एक छंद इस प्रकार है -

                 सुखद है नहीं यों कहीं छटा I

                 सरस छा रही व्योम में घटा II

                 मुदित हो रहे,  मोर थे भले  I

                अहह जानकी के बिना खले II

द्रुतविलंबित - इसमें नगण , भगण . भगण  के बाद रगण  होता है I अर्थात  मात्रिक विन्यास  111-211 -211      

                 -212 होगा I इस वर्ण वृत्त में बारह वर्णों की अनिवार्यता है I  इससे संबंधित पं० अयोध्या प्रसाद ‘                     

                  हरिऔध ‘ का एक छंद इस प्रकार है -

                   दिवस का अवसान समीप था

                  गगन था कुछ लोहित हो चला

                 तरुशिखा  पर  अवराजती  थी

                कमलिनी-कुल-वल्लभ की प्रभा II

            उक्त तीनों छन्दों का आरंभ ‘नगण’ से हुआ है और उसमे निपट, निगम, अगति , सुखद , सरस, मुदित, अहह , दिवस और गगन जैसे शब्दों का उपयोग 111 मात्रा के रूप में हुआ है I गजलों में इनकी मात्रा निर्विवाद रूप से 12 होगी I इस बात में किंचित मात्र भी संदेह नहीं  है और  इस अंतर को रेखांकित करना ही इस लेख का मुख्य प्रतिपाद्य भी रहा है  I इसमें कोई दो राय नहीं है  कि हिन्दी में जब भी ग़ज़ल  लिखी जाए तो उरूज के  नियमों का ईमानदारी से पालन हो किन्तु  यही ईमानदारी हिन्दी के छंदों  के साथ भी  लाजिमी है,  ताकि हिन्दी के छंदों की अस्मिता सुरक्षित रहे I दोनों के नियमों का घालमेल होना दोनों ही विधाओं के लिए समान रूप से अहितकर है  I अतः इसके लिए जितनी भी सावधानी और जागरूकता अपेक्षित है उससे कहीं अधिक प्रयास की आवश्यकता है  I

(मौलिक /अप्रकाशित )

Views: 1536

Replies to This Discussion

बहुत सुन्दर आलेख के लिए आपको बधाई | निश्चय ही हिंदी छंदों को उनके मूल रूप में ही रहने देना चाहिए | लेकिन समस्या यही है कि परिश्रम कौन करे | आजकल वाचिक एक नया नाम रख दिया गया है ,जब कि छंद तो केवल दो प्रकार के ही रहे हैं वर्णिक और मात्रिक | लेकिन वाचिक में आसानी हो गई है  १११ को १२ ले लेने में ,इससे गुरू की जगह दो लघु लेने का रास्ता खुल गया है | चूँकि इस तरह गुरू लेने से लय में कोई रूकावट नहीं आती है ,इसलिए अधिकांश कवियों के लिए यह आसान तरीका हो गया है | अब तो सभी इसी राह पर चल पड़े हैं | वैसे भी छंदों में लोगों का रुझान कम हैं अतुकांत की और ज्यादा है | जबकि यह जगज़ाहिर है अतुकांत को याद करने में कठिनाई होती है यानि उसकी उम्र नहीं होती | 

आ० गहलौत जी, आपका सदर आभार I 

आदरणीय गोपाल नारायण जी, 

आपके कठोर, गहन तथा अनवरत अध्यवसाय के प्रति मन सदैव नत रहता है. इसका हम जैसे अभ्यासी अपनी क्षमतानुसार चर्चा भी करते रहते हैं. किन्तु, प्रस्तुत आलेख का उद्येश्य बिन्दुवत होते हुए भी मूलभूत तथ्यों की बिसात पर न होने के कारण तार्किक रूप से संप्रेषश्य नहीं रह पा रहा है. 

// हिन्दी छंद के वैयाकरण, जिनकी साहित्य जगत में प्रतिष्ठा भी है, वे भी कमल को ‘नगण’ नहीं मानते //

किस उद्भट्ट विद्वान को छंद का वैयाकरण  की संज्ञा दी जा रही है, आदरणीय ? कोई छंदशास्त्री यदि कमल को नगण न माने तो क्या वह शिक्षित भी है ? उसकी छंदशास्त्रीयता तो बहुत बाद की बात होगी.

वस्तुतः, कोई वैयाकरण नहीं, बल्कि छंदशास्त्री या छंद-ऋषि ही छंदवेत्ता होता है. कोई वैयाकरण भी छंदशास्त्री या छंद-ऋषि हो सकता है, किन्तु, वह वैयाकरण होने के कारण उपर्युक्त शास्त्रज्ञ नहीं हो जाता. पतंजलि वैयाकरण थे तो योगशास्त्री, वैद्य तथा महान मानववादी भी थे. ऐसा वर्णित प्रति विभाग के उच्च निकष पर स्वयं ही मानक हो जाने के कारण स्थापित हुआ था. किन्तु उन्हें छंद शास्त्री कभी नहीं कहा गया. जबकि योग, छंद, संगीत, इन सभी का उत्स स्वयं शिवशंकर ही थे.    

 

//क्योंकि उर्दू में  कमल को क+म+ल (111   ) न मानकर  क+मल  (1+2 )माना जाता है I उर्दू में कमल शब्द के उच्चारण में ‘क’ के बाद ’मल’ पढ़ा जाता है I अगर बात पढने की ही है तो फिर उर्दू में असमय को 2+2 क्यों नहीं माना जाता ? क्यों उर्दू व्याकरण (उरूज) में असमय  को 1+1+2 माना जाता है ?//

आखिर प्रश्न क्या है ? उच्चारण के कारण ही कमल एक भाषा में क+मल उच्चारित होता है तो दूसरी भाषा में क+म+ल उच्चारित होता है. किन्तु इसमें छंदशास्त्र या अरूज़ का कुछ भी लेना-देना नहीं है. न कोई अरूज़ी या छंदशास्त्री कुछ बता ही सकता है. 

बाकी आगे के विस्तार पर कुछ नहीं कहना. क्योंकि आगे के तथ्य इसी पाराग्राफ के कथ्य के संपोषक हैं> 

शुभातिशुभ

सौरभ

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service