For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल(शायरी अब क्या रूठेगी...)

2122 2122 2122 212

शायरी अब क्या रूठेगी,सोचता हूं आजकल,

हो रही बुझती अंगीठी,सोचता हूं आजकल।1

शेर मुंहफट हो गए हैं,हर्फ लज्जित हो रहे,
शायरों की सांस फूली,सोचता हूं आजकल।2

मुंह चिढ़ातीं आज बहरें,खुल रहे हैं राज कुछ,
पिट रही कैसी मुनादी? सोचता हूं आजकल।3

राह अब अंधे दिखाते,झूठ ताना दे रहा,
हो रही सच की गवाही, सोचता हूं आजकल।4

शब्द सारे मौन लगते,अर्थ होता गौण है,
चल रही हैं गाली ' - ताली, सोचता हूं आजकल।5

बांटते फिरते नदी को,जो बहुत गुणवान हैं,
हो रहे नर पानी ' - पानी ,सोचता हूं आजकल।6
" मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 791

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on August 22, 2020 at 9:40pm

आपका आभार आदरणीय आशीष जी।

Comment by आशीष यादव on August 22, 2020 at 6:54pm

उम्दा बातें कह दी आपने। बेहतरीन ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार कीजिए।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 22, 2020 at 9:57am

जनाब मनन कुमार जी आदाब, माज़रत चाहता हूँ मैं चूक गया। आप बजा फरमाते हैं। "शायरी क्या अब ये होगी, कैसा रहेगा। 

Comment by Manan Kumar singh on August 22, 2020 at 9:24am

लेकिन अमीर जी,वैसा करने पर काफिया बरकरार नहीं रहेगा न।

Comment by Manan Kumar singh on August 22, 2020 at 6:44am

आभार आदरणीय अमीर जी।आपकी सलाह सराहनीय है।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 21, 2020 at 10:56pm

आदरणीय मनन कुमार सिंह जी आदाब, उत्तम चिंतन-मनन के साथ अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ,

आदरणीय समर कबीर साहिब की बात से सहमत हूँ। "शायरी रूठेगीक्या अब,सोचता हूं आजकल," अब ये मिसरा बह्र में है। सादर। 

Comment by Manan Kumar singh on August 21, 2020 at 9:32pm

शुक्रिया आदरणीय समर जी।एक शेर याद आ रहा:

"चांद में है दाग़,देखा जा रहा,
चांदनी क्यूं मुस्कुराती रह गई?"

Comment by Samar kabeer on August 21, 2020 at 6:01pm

आपकी ख़्वाहिश है तो अपने टूटे फूटे विचार रख देता हूँ ।

'शायरी अब क्या रूठेगी,सोचता हूं आजकल'

इस मिसरे में 'रूठेगी' का वज़्न 222 है,इसलिए बह्र गड़बड़ हो रही है, देखियेगा ।

Comment by Manan Kumar singh on August 21, 2020 at 5:38pm

दिली आभार आदरणीय समर जी।गजल की बावत,आप अपने बहुमूल्य विचार न दे सके।

Comment by Manan Kumar singh on August 21, 2020 at 5:35pm

हार्दिक आभार आदरणीया डिंपल जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service