आदरणीय काव्य-रसिको,
सादर अभिवादन !
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह आयोजन लगातार क्रम में इस बार एक सौ बारहवाँ आयोजन है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
22 अगस्त 2020 दिन शनिवार से 23 अगस्त 2020 दिन रविवार तक
इस बार के छंद हैं -
सार छंद और हरिगीतिका छंद
हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
हरिगीतिका छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक ...
सार छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 22 अगस्त 2020 दिन शनिवार से 23 अगस्त 2020 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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हरिगीतिका
......................
खिलते कमल तालाब में कुछ श्वेत है कुछ लाल है।
डंडी कमल की कीच में फैली कि मानो जाल है।
पत्ते हरे हैं थाल सा चारो तरफ हैं फूल के।
दिखता नहीं है जल कहीं रखना कदम ना भूल के॥
.......................
सार छंद
.......................
छन्न पकैया छन्न पकैया, है ईश्वर की माया।
कमल पुष्प की बात निराली, निकल कीच से आया॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, श्वेत कहीं पर पीला।
पुष्प कमल बहुरंगी खिलते, लाल कहीं पर नीला॥
कमल बंद हो या खिल जाए, दिखता कितना न्यारा।
मातु शारदा - लक्ष्मी माँ को, श्वेत - लाल है प्यारा॥
सूर्योदय होते खिल जाए, सबके मन को भाता।
देख ताल में कमल हजारों, हृदय कमल खिल जाता॥
..................................
[मौलिक एवं अप्रकाशित ]
आदरणीय अखिलेश भाईजी,
आयोजन का प्रारंभ आपकी रचना से हुआ, हार्दिक बधाई.
बहुवचन की पंक्तियोंं को हैं के साथ समाप्त करें. बाकी शुभातिशुभ
आदरणीय सौरभ भाईजी
ऐसी भूल / लापरवाही मुझसे अक्सर हो जाती है।
रचना की प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिए हृदय से धन्यवाद आभार आपका।
आदरणीय अखिलेश जी
हरिगीतिका और सार छंद की दोनो प्रस्तुतियाँ चित्रानुकूल और सुन्दर हैं।हार्दिक बधाई।
आदरणीया प्रभाजी
रचना की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार आपका।
दोनों छंदों में अच्छी रचना हुई श्रीमान। सौरभ जी की दृष्टि से कोई चूक चूकती नहीं। :)
आदरणीय अजय भाई
रचना की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार आपका।
आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर नमस्कार, प्रदत्त चित्र पर सुंदर हरिगीतिका और सार छंद रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. बहुवचन पर गुरुवर ने आपको सुझाव दिया ही है. किन्तु मैं अंतिम छंद के विषय में अपने विचार रख रहा हूँ. मैं यह नहीं कह रहा हूँ इस छंद में कोई गलती हुई है. किन्तु मुझे लगता है इस छंद का प्रारम्भ इस छंद की तृतीय पंक्ति से होना चाहिए था. अंतिम पंक्ति तब द्वितीय हो जाती प्रथम पंक्ति तीसरी और द्वितीय पंक्ति अंतिम बन जाती. इसी छंद की द्वितीय पंक्ति में क्रमशः शब्द की आवश्यकता थी, किन्तु जगह नहीं है. इसलिए इसे /श्वेत शारदे, लाल लगे है, माँ लक्ष्मी को प्यारा/.. कुछ इसतरह किया जा सकता है. सादर
आदरणीय अशोक भाईजी
आपका सुझाव उत्तम है।रचना की प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिए हृदय से धन्यवाद आभार आपका।
आ. भाई अखिलेश जी, प्रदत्त चित्रनुरूप सुन्दर छंद हुए हैं । हार्दिक बधाई ।
आदरणीयल लक्ष्मण भाईजी
रचना की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार आपका।
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