आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार आ.लक्ष्मण भाई।
सादर नमस्कार। बहुत बढ़िया प्रविष्टि। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।
दिली साधुवाद आ.उस्मानी जी।नमन।
हार्दिक बधाई मनन कुमार जी। बेहतरीन लघुकथा।
आपका दिली आभार आ.तेजवीर सिंह जी।
बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन जी
आपका हार्दिक आभार आ. प्रतिभा जी।
प्रिय मनन भाई, सदैव की भाति इसबार भी आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी, कुछ टंकण त्रुटियों और वाक्य विन्यास सुधारने का स्कोप अभी भी रिक्त लगता है. प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें।
" गुड्डो चली गयी है ना "
जब से चुन्नी डालने लगी थी बिटिया तुम्ही बताओ कभी दाल में घी डाली थी /ऑफिस भी पैदल जाने लगे थे रिक्शा का दो रुपया बच जाता था अच्छे से स्वागत सत्कार किया .. समधियाने से कोई शिकायत नही आई
आती भी कैसे देसी घी चुआ रहा था मूंग की दाल के हलवे से .... तुम चखि की नाही ?
खैर कोई नही ... अपना का ? बहुत खाये ... देखि कैसा दप दप चमक रहा था गुड़िया का चेहरा मंगलसूत्र पहिने थी जब ..
कन्यादान के वक़्त हम तो गुड्डो का चेहरा देखे ही नही ..उक्का आंसू हमसे नै देखा जाता ... काजल तो सही कर दिए थे तुम?
हाँ अब तुम कईसे करती अरे रोओ मत हमसे तुम्हारा आंसू भी नै देखा जात है ?
लड़की का गहना गुईया सब अच्छा हुई गया ना … फिर ? … दो हज़ार तो शर्माजी से दो दिन पहिले ही लिए थे ...
मन तो नै था उनका फाइल करने का ..पर का करते ? उसी से तो तो खरीदवाये थे गुड्डो को कानो का बाली कित्ता खुश हो गयी थी ..बहुत मन था गुड्डो का सोने की बाली पहनने का … हमरा भी था …और … खैर सब ठिक्क हो गया नै जाने कौन पुण्य किये थे बाबा ...
तुम्हारा साडी रह ही गया ... सुंनो कुछ बचे बचाये या सब …
बचा कहाँ से होगा सब लिफाफा हम्मी तो खोल हलवाई और टेंट वाले को निपटाये थे।
बच्चन को एक बार तो बुलाना ही पड़ेगा .. कब का कहे ?
अरे .. सुनती ही नही .. काहे सुनेगी अब निपट गयी ना
सोओ .... जा रहे है दरवाजा खुला है
दुर्गा परसाद तेजी से बाहर निकले। सूरज का रौशनी साफ़ का चेहरा पर गिर रहा था ... दुर्गा परसाद सहम ठिठक खड़े हो गये .... कौनो देख ले उनका आंसू तो ?
दुर्गा परसाद चस्मा उतार बांह से आँख पोछ कानो पर चस्मा खोसते हुए बड़बड़ाये - - नाराज़ है उसका साडी ही रह गया ...
अरे सुनो इस महीना पक्का .... गुड्डो चली गयी है -
दुर्गा परसाद फफक के वही दरवाजे की टेक ले बैठ गए ...
सूरज की रौशनी जरा दूर ठिठक के खड़ी हो गयी - थोड़ा रो लेंगे तो जी हल्का हो जाएगा
इनकी गुड्डो चली गयी ना
मौलिक व अप्रकाशित
आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीय अतुल सिंह जी आपकी रचना का। क्षेत्रीय बोली में बढ़िया प्रयास है। टंकण व विराम चिह्नों संबंधित सुधार/सम्पादन की आवश्यकता लग रही है।
हार्दिक बधाई अतुल जी। पहली बार आपकी रचना देखी। अच्छा प्रयास।
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