आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
आ. भाई अतुल जी, सुंदर कथा हुई है । हार्दिक बधाई।
वाह जिस सहज और गहन ढंग से लघुकथा कही गई है वो मुग्ध कर रहा है। हार्दिक बधाई आदरणीय
पता नहीं क्यों, मुझे कथानक ही नहीं समझ आया. लेखक की बात पाठक तक सहज पहुँचे, यह दायित्व तो समझना होगा। सहभागिता हेतु आभार आदरणीय।
मुझे रचना समझने मे दिक्कत हो रही. क्षमा सर
सर्व धर्म समन्वय
फेसबुक पर एक न्यूज एजेंसी के पेज पर नजर पड़ते ही मैं वहीं रूक गई और खबर पढ़ने लगी।
ऑक्सीजन की कमी के कारण होने वाली मौतों का बाजार सजा था और मसालेदार बनाकर खबर परोसी गई थी।
लोगों के तीखे प्रतिक्रिया देख मैं कमेंट्स पढ़ने लगी।हर समुदाय के लोग यहाँ पर अपने विचार लिख रहे थे।
"सरकार मौत की सौदागर है… लाशों पर राज करेगी ...।"एक ने लिखा।
"तेरी माँ की….!"
"कॉरोना के जिम्मेदार जालीदार टोपी वाले हैं।"
"तेरी बहन..की…!"
कुंभ के कारण देश को मुसीबत में डाल दिया...।
"@#$#...!"भद्दी गाली
"किसान आंदोलन के नाम पर दिल्ली को खतरे में ...।"
" साले…!किसान न हो तो भूखे मरोगे…तेरी..।"..फिर एक गाली….।
हर रिप्लाई में एक गाली थी...।
इन कमेंट्स को पढ़कर मेरे मन में एक घृणा पसर गई...मैं समझ गई कि त्रासदी कोई भी हो… गालियाँ औरतें ही खायेंगी...।
मुझे इस बात पर यकीन हो गया कि महिलाओं को दी जाने वाली गालियाँ हर त्रासदी को खत्म करने की शक्ति रखती हैं...तभी तो हर धर्म में ऐसी गालियाँ सम्मानित हैं..।
मन में आई घृणा एकाएक हँसी में बदल गई क्योंकि सभी धर्मों में समानता की असली तस्वीर जो दिखाई दे रही थी।
दिव्या शर्मा
मौलिक व अप्रकाशित
सादर नमस्कार। बहुत ही गंभीर विषय व मुद्दों पर कसावट युक्त सार्थक लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया दिव्या राकेश शर्मा जी। स्त्रिलिंग शब्दों वाली गालियों को सभी वर्गों के लोगों द्वारा गंभीर परिस्थितियों में भी... ओह! विचारोत्तेजक रचना। सकारात्मकता दर्शाता शीर्षक तीखा व्यंग्य करता है। रचना का समापन झकझोरता है। (अभद्र शब्दों हेतु सांकेतिक अभिव्यक्ति के लिए की-बोर्ड के करेक्टर चिह्नों का प्रयोग/ #@$.. मुझे पसंद नहीं हैं... लेकिन विकल्प भी तो नहीं हैं।)
आ. दिव्या जी, उत्तम कथा हुई है । हार्दिक बधाई।
हार्दिक बधाई दिव्या जी। आपकी लेखनी तो हमेशा ही कमाल करती है। बेहतरीन लघुकथा।
आभार सर
आभार सर।
वाह मंच के हीरक जयंती उत्सव मे आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुती ने चार चाँद लगा दिये है आदरणीया दिव्या जी। हार्दिक बधाई। बहुत ही धारदार बात कही है आपने रचना के ज़रिये। धर्म के बदले समाज लिखना ज्यादा सटीक होता शायद। एक सुझाव मात्र।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |