आदरणीय साथिओ,
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आदाब। दीमकों के अड्डे और दीमकों के गिरगिटाने तेवर। बस यही परिदृश्य है। चुटीली कटाक्षपूर्ण यथार्थ बताती विचारोत्तेजक लघुकथा। हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी।
हार्दिक आभार शेख़ शहज़ाद जी।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन कथा हुइ है । हार्दिक बधाई।
हार्दिक आभार आ. लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।
TEJ VEER SINGH जी, नमस्कार! " जिस का काम उसी को साजै और नहीं तो ड॔डा बाजै" कहावत एक परम सत्य है, आपने शायद सुनी नहीं ! अन्यथा डाक्टर विषेश के बजाय लघुकथा का सर्वदृष्टा लेखक, प्रश्न नेता से कदापि नहीं पूछता ! क्षमा करें, प्रस्तुति अपनी अस्वाभाविकता के रहते प्रभावहीन है !
शुक्रिया जनाब। आपकी सलाह याद रहेगी।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी आपने लघुकथा के माध्यम से बहुत ही उम्दा प्रश्न हमारे सामने रखा है। यह लघुकथा हमारे लिए चिंतन-मनन का बहुत ही बढ़िया अवसर देती है। यदि सभी इसी दृष्टि से सोचने लगे तो व्यवसाय में एक क्रांति घटित हो सकती है।
इस बहुत ही बेहतरीन लघुकथा के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं।
हार्दिक आभार आदरणीय ।
विचारोत्तोजक सामयिक रचना।हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी
हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा जी।
//"क्या आप एक भी धंधा ऐसा बता सकते हैं जो बिना काम पूरा हुए पैसा लेता हो?”//
अभी दो धंधा याद आ रहे हैं......वकालत, कोचिंग संस्थान,
आदरणीय यदि ईमानदारी से कहूं तो लघुकथा के तौर पर मुझे यह प्रस्तुति कमजोर लगी. आयोजन में सहभागिता हेतु हृदय से आभार।
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