दोहा मुक्तक
1
मिट्टी का घर ढूँढते, भटक रहे हैं पाँव।
कहाँ गई पगडंडियाँ, कहाँ गए वो गाँव ।
पीपल बूढ़ा हो गया, मौन हुए सब कूप -
काली सड़कों पर हुई, दुर्लभ ठंडी छाँव ।
2.
कच्चे घर पक्के हुए, बदल गया परिवेश ।
छीन लिया हल बैल का, ट्रेक्टर ने अब देश ।
बदले- बदले अब लगें , भोर साँझ के रंग -
वर्तमान में गाँव का, बदल गया है पेश ।
(पेश =रूप, आकार )
सुशील सरना / 14-3-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत सुन्दर झांकी बदले परिवेश की, जय श्री राधे
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