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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-85 (विषय: अहसास)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-85 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। 'अहसास' शब्द के विषय में एक सुह्रदय व संवेदनशील रचनाकार के अलावा और कौन बाखूबी जान सकता है? तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-85
"विषय: 'अहसास'
अवधि : 29-04-2022  से 30-04-2022 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
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5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
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8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

बढ़िया लघुकथा कही है आपने आदरणीया दीपाली ठाकुर जी। बधाई स्वीकारें। बेशक सँवाद अधिक हैं परंतु लघुकथा अच्छी बन पड़ी है।

 

भूख -

 सुभद्रा मेरी  पत्नी पिछले एक -डेढ़  सप्ताह से आईसीयू में हैं,  वृद्धावस्था ,पुराना  मधुमेह और उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं। मैं घर पर अकेला ही हूँ  , अपने आप को काफी थका सा महसूस  कर रहा हूँ। 

 बच्चों की भागदौड़ बदस्तूर जारी है। बेटी भी आयी हुई है । 

50 साल का साथ हैं हमारा , उसके चले जाने पर अकेला हो जाऊँगा । मैं थोड़ा भयभीत हूँ , हालांकि मृत्यु अपरिहार्य है।

पर जब वो नहीं रहेंगी तो क्या होगा मेरा , वह बड़ा ध्यान रखती थी  बहुत अनुशासित । समय पर भोजन, पानी सब कुछ फिर उसे पता है कि मैं  भूख सह नहीं पता हूँ ।अभी ही देखो न अस्पताल के चक्करों के कारण बेटा-बहू व्यस्त है तो  खाने-पीने का समय आगे पीछे हो रहा है और मैं परेशान हो रहा  हूँ ।

आज सुभद्रा  का स्वास्थ्य ज्यादा ख़राब है, इसलिए  अभी तक नाश्ता नहीं हुआ है , घर में उस मूड में कोई नहीं है , लेकिन  शरीर का क्या मुझे तो ...? 

ये  मैं भूख का क्या ले बैठा हूँ ,इतना स्वार्थी सोचने में शर्म भी आ रही  है।

--

" पापा!  ..चलिए अस्पताल जाना हैं "  तभी बहू को रोते मेरे पास आते हुऐ  देख मेरे  हाथ -पैर ढीले पड़ गए .

उसने मुझे उठाने की कोशिश की .

 मेरी आँखों के सामने अब तक का सारा सहजीवन पल भर में  उभर आया और उसी  क्षण  एहसास हुआ कि मुझे  बड़ी  जोर की  भूख लगी है.

मौलिक एवं अप्रकाशित 


आदाब। विषयांतर्गत भूख को भी परिभाषित करती भावपूर्ण रचना। कहा और अनकहा भी। हार्दिक बधाई आदरणीया नयना (आरती) कानिटकर जी।

धन्यवाद सर 

एक बहुत अच्छी लघुकथा के लिए बधाई स्वीकारे नयना जी

आभार दीपा जी

पत्नि के बाद कौन मेरे खाने पीने का ध्यान रखेगा, ये सोच पति का पत्नि के प्रति प्रेम का ही एक भाव है और प्रेम की बहुत सारी अभिव्यक्तियों मे से,एक अभिव्यक्ति है।लघुकथा में पत्नि से बिछड़ जाने के भय ने पति की भूख बढ़ा दी। अक्सर तनाव और भय में भूख बढ़ जाती है। बहुत अच्छी लघुकथा मनोवैज्ञानिक आधार लिये। अंत भी एकदम सटीक। हार्दिक बधाई आदरणीया नयना जी

 

अच्छी मनोवैज्ञानिक लघुकथा कही है आदरणीया नयना ताई। बधाई स्वीकारें।। मुझको पसन्द आयी ।

                                                बड़प्पन

हरद्वारी लाल और रामजी लाल  दो भाई पुश्तैनी गद्दी पर बैठ  पारिवारिक व्यापार करते थे । संयोग से  दोनों के पाँच-पाँच पुत्र थे। दोनों भाईयों के सबसे छोटे  पुत्र  लगभग  समवयस्क थे। आज  ही हरद्वारी लाल के सबसे छोटे बेटे अभिषेक और रामजी लाल के सबसे  छोटे  बेटे शालीन का परीक्षा परिणाम आया था। अभिषेक, जहाँ गिरते-पड़ते  पास हुआ था, शालीन  ने गत वर्षों की  तरह सर्वश्रेष्ठ अंकों के साथ  अपनी  कक्षा  में प्रथम स्थान प्राप्त किया था । दोनों ही भाईयों के पहले चार  -चार  पुत्र  अपनी पसंद के क्षेत्रों में स्थापित हो चुके थे। अब अभिषेक और शालीन की बारी थी ! हरद्वारी लाल जो रामजी लाल से बड़े थे, बोले,  " अभिषेक को कहना, कल से वह दुकान पर बैठेगा । शालीन को हम और पढ़ाकर  बड़ा  अफसर बनाएंगे। 

आज रामजी लाल को विश्वास हो गया कि उनके  बड़े भाई  वय से ही नहीं, मन से भी उनसे बहुत बड़े  थे ।

मौलिक व अप्रकाशित 

कम शब्दों मे अच्छी लघुकथा . बधाइ आपको

नमन आदरणीया, अपना अमूल्य समय देकर आपने रचना को मान ही नहीं दिया, अपितु सराहना भी की, इसके लिए आपका कोटिशः धन्यवाद ! 

अच्छी लघुकथा।हार्दिक बधाई आदरणीय 

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