आदरणीय साथियो,
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डालियां
भयंकर झंझावात से खंडित हुए पेड़ के एक हिस्से के रिक्त स्थान से कोंपलें निकलीं।बढ़ती गईं।शाखें हुईं।फिर पहले की डालियों से नई डालियां टकराने लगीं।माद्दा कि हम ही असली जड़ की उपज हैं।पुरानी डालें, पातें सूखेंगी।झड़ेंगी।डालें कट जाएंगी। रहेंगी तो हम ही,एकछत्र।
जब टकराव ज्यादा बढ़ा,तो पंछी -युगल मंद दबी जुबान में बुदबुदाये, " मिलजुलकर रहें,तो हमारे आसरे भी महफूज हों।लड़ाई -झगड़े से क्या हासिल होगा?"
"हां, हां।मंद पवन में अच्छा लगता हिलना - डुलना बस मंद -मंद", पेड़ की कोमल पत्तियां एक साथ बोल पड़ीं।
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
सादर नमस्कार। एक बेबस कटे पेड़ की सन्तानों (ओल्ड व न्यू जनरेशन) मानसिकता और पंछियों का विमर्श एक उम्दा कथानक में कहे व अनकहे में बुने कथ्य उभारते हुए बढ़िया प्रतीकात्मक मानवेतर लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई जनाब मनन कुमार सिंह साहिब। सभी पात्र प्रतीक बन पड़े हैं व्यापक सम्प्रेषण करते हुए। लेकिन रचना अभी और समय माँग रही है बेहतरीन होने बावत। शीर्षक ठीक है।
आपका हार्दिक आभार मोहतरम ,उस्मानी जी।
आदाब, भाई मनन कुमार सिंह, बधाई। बहुत अच्छी लघुकथा लिखी आपने, विषयानुकूल और दो पीढ़ियों के अंतराल प्रतीकों के माध्यम से !
आपका आभार भाई, चेतन प्रकाश जी।
अच्छी लघुकथा है आ० मनन कुमार सिंह जी. इस पर थोड़ी मेहनत और करें, स्पष्टता और सरलता लाने का प्रयास करें, कथातत्त्व का प्रतिशत बढ़ाएं, लघुकथा दीर्घजीवी बनेगी.
//फिर पहले की डालियों से नई डालियां टकराने लगीं।माद्दा कि हम ही असली जड़ की उपज हैं।पुरानी डालें, पातें सूखेंगी।झड़ेंगी।डालें कट जाएंगी। रहेंगी तो हम ही,एकछत्र।//
इन पंक्तियों को चुस्त बनाएँ. वर्णन की बजाय चुटीले संवाद लिखें, रचना का प्रभाव बहुगुणित होगा.
आपका आभार आदरणीय योगराज जी।आपकी सलाह अनुकरणीय है।
हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।
जी आपका आभार।
नये और पुराने का संघर्ष। बहुत अच्छा कथ्य। संप्रेषण भी मुझे कथ्य अनुसार सटीक लगा। बधाई स्वीकार कीजिये आदरणीय मनन जी। शीर्षक थोड़ा और समय माँगता है
आपका आभार आदरणीया प्रतिभा जी।
"जननीजन्मभूमिस्वर्गादपि गरीयसी"
तीन बहनों में इकलौता और सबसे छोटा बचपन से ही प्रतिभाशाली राजेश ने एम. बी. बी एस की परीक्षा गोल्ड मैडल लेकर इसी वर्ष पास की थी। जिला मुख्ययालय के सूदूर छोटे से अपने गाँव का राजेश लाड़ला बेटा था सो ग्राम प्रधान ने राजेश के गाँव लौटने पर चौपाल में एक सभा आयोजित कर राजेश को सम्मानित किया ।
राजेश के माता-पिता चाहते थे कि राजेेश एम. डी. करे और स्वयं राजेश भी यही चाहता था । लेकिन
प्रधान जी ने राजेश का स्वागत करते हुए साल दर साल गाँव में सही चिकित्सा उपलब्ध न होने और गाँव के जिला मुख्यालय से बहुत दूर होने के कारण कई लोगों की असामयिक मौत पर उसका ध्यान आकृष्ट किया था। झौला-छाप डाक्टरों के भरोसे पूरे गाँव के नौनिहालों, नौजवानों वृद्ध लोगों की जिन्दगी अब मुश्किल हो गयी थी। अनेक बार गंभीर मरीज जिला अस्पताल ले जाते रास्ते में ही काल कवलित हो जाते अथवा ओ. पी. डी. में लम्बा इंतिजार करते ।
डाॅक्टर राजेश को पहली बार अपने गाँव की दुर्दशा का अहसास हुआ और उसे याद आया किस तरह उसकी दादीजी की गाँव में हैजे का संक्रमण होने पर असामयिक मृत्यु हो गयी थी और दादाजी को अकेल उसके पिता के शहर में सरकारी सेवा में रिटायर होकर लौटने तक गाँव में अपना बुढ़ापा निराश्रित होते उन्होंने अकेले काटा था। मानो कोई निर्वासन भोग रहे होँ अथवा जेल में किसी अपराध की सजा।
प्रधान जी के स्वागत भाषण का उत्तर देते हुए डाॅक्टर राजेश ने अपना निर्णय सुनाया, "मेरे सम्मानीय बुजुर्गों, माताओ भाईयों बहनों , अब मैं शहर लौटकर नहीं जाऊँगा और गाँव में ही अपना क्लीनिक खोलकर जीवन-पर्यन्त आपकी करूँगा।"
मौलिक एवम् अप्रकाशित
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