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इस तमस में सँभलना है हर हाल में
दीप के भाव जलना है हर हाल में
हर अँधेरा निपट कालिमा ही नहीं
एक विश्वास पलना है हर हाल में
एकपक्षीय प्रेमिल विचारों भरे
इन चरागों को जलना है हर हाल में
निर्निमेषी नयन का निवेदन लिये
मन से मन तक टहलना है हर हाल में
देह को देह की भी न अनुभूति हो
मोम जैसे पिघलना है हर हाल में
अल्पनाओं सजी गोद में बैठ कर
दीप को मौन बलना है हर हाल में
*****
(मौलिक और अप्रकाशित)
एकपक्षीय - एक तरफा
निर्निमेषी नयन - अपलक हुई आँखें
Comment
जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत समय बाद आपकी ग़ज़ल ओबीओ पर पढ़ने को मिली, बहुत च्छी ग़ज़ल कही आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'निर्निमेषी नयन का निवेदन लिये
मन से मन तक टहलना है हर हाल में'
ये शे'र ख़ास तौर पर पसंद आया, इस पर अलग से दाद हाज़िर है ।
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