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दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ

212 212 212 212 

 

इस तमस में सँभलना है हर हाल में 
दीप के भाव जलना है हर हाल में

  
हर अँधेरा निपट कालिमा ही नहीं
एक विश्वास पलना है हर हाल में 
   
एकपक्षीय प्रेमिल विचारों भरे
इन चरागों को जलना है हर हाल में 
   
निर्निमेषी नयन का निवेदन लिये 
मन से मन तक टहलना है हर हाल में 
   
देह को देह की भी न अनुभूति हो
मोम जैसे पिघलना है हर हाल में 

    
अल्पनाओं सजी गोद में बैठ कर
दीप को मौन बलना है हर हाल में 

*****

(मौलिक और अप्रकाशित)

 

एकपक्षीय - एक तरफा 

निर्निमेषी नयन - अपलक हुई आँखें 

Views: 33

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Comment by Samar kabeer 1 hour ago

जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत समय बाद आपकी ग़ज़ल ओबीओ पर पढ़ने को मिली, बहुत च्छी ग़ज़ल कही आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'निर्निमेषी नयन का निवेदन लिये 
मन से मन तक टहलना है हर हाल में'

ये शे'र ख़ास तौर पर पसंद आया, इस पर अलग से दाद हाज़िर है ।


   

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