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ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।
जब  चाहो  तब  प्यार से, खोल सके तारीख।१।
*
मन की गाँठे मत कसो, देकर बेढब जोर
इससे  केवल  टूटती, अपनेपन  की डोर।२।
*
दुर्जन केवल बाँधते, लिखके सबका नाम
लेकिन गाँठें खोलना, रहा संत का काम।३।
*
छोटी-छोटी बात जब, बनकर उभरे गाँठ
सज्जन को वह पीर दे, दुर्जन को दे ठाँठ।४।
*
रिश्तो को कुछ धूप दो, मन की गाँठे खोल
उनको मत मजबूत कर, कड़वी बातें बोल।५।
*
बातें कहकर खोल दे, बाँध न रहकर मौन
मन की गाँठें बाँधकर, सुख पाता है कौन।६।
*
आँगन जाते हैं  सिकुड़, मन की गाँठें देख
मन की गाँठों के लिए, कुछ तो खींचो रेख।७।
*
मन में गाँठें बाँध जो, चला शिखा है खोल
धनानंद सा फिर उसे, मत यूँ हल्का तोल।८।
*
गाँठों को झट खोल मन, ऐसे ही मत छोड़
सम्बंधों का  प्रेम  रस, जो  दें सदा निजोड़।९।
*
भली न होती गाँठ है, पड़े किसी भी ठौर
लेकिन मन में जो  पड़े, करे बुरा हर दौर।१०।
**
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on Tuesday

आदरणीय भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और विस्तार से सुझाव के लिए आभार। इंगित दोहों में कु सुधार किया है मार्गदर्शन करें। सादर..

//ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।
जब  चाहो  तब  प्यार से, खोल सके तारीख।१। ......... खोल सको तारीस् .. //
*
( यहाँ मैंने व्यक्ति को सम्बोधित करके लिखा है। आपके सुझाव में सम्बोधन समय को हो रहा है, मार्गदर्शन करें ।)

*
//छोटी-छोटी बात जब, बनकर उभरे गाँठ
सज्जन को वह पीर दे, दुर्जन को दे ठाँठ।४।  ... ठाँठ कुछ स्पष्ट नहीं हुआ, आदरणीय //

- दुर्जन को दे साँठ।४//
*
//आँगन जाते हैं  सिकुड़, मन की गाँठें देख
मन की गाँठों के लिए, कुछ तो खींचो रेख।७।  ,... तीसरे और चौथे चरण के विन्यास को कुछ और समय दें >..///
*
मन की गाँठों को न कर, लम्बी-चोड़ी रेख


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2025 at 3:37pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, 

ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।
जब  चाहो  तब  प्यार से, खोल सके तारीख।१। ......... खोल सको तारीस् .. 
*
मन की गाँठे मत कसो, देकर बेढब जोर
इससे  केवल  टूटती, अपनेपन  की डोर।२।  .. वाह 
*
दुर्जन केवल बाँधते, लिखके सबका नाम
लेकिन गाँठें खोलना, रहा संत का काम।३। ... सदा संत के काम 
*
छोटी-छोटी बात जब, बनकर उभरे गाँठ
सज्जन को वह पीर दे, दुर्जन को दे ठाँठ।४।  ... ठाँठ कुछ स्पष्ट नहीं हुआ, आदरणीय 
*
रिश्तो को कुछ धूप दो, मन की गाँठे खोल
उनको मत मजबूत कर, कड़वी बातें बोल।५।   ... गाँठें मत मजबूत कर, 
*
बातें कहकर खोल दे, बाँध न रहकर मौन
मन की गाँठें बाँधकर, सुख पाता है कौन।६। ... सही बात ... मन मे गाँठें बाँध कर ...
*
आँगन जाते हैं  सिकुड़, मन की गाँठें देख
मन की गाँठों के लिए, कुछ तो खींचो रेख।७।  ,... तीसरे और चौथे चरण के विन्यास को कुछ और समय दें >..
*
मन में गाँठें बाँध जो, चला शिखा है खोल    ....   चला शिखा को खोल 
धनानंद सा फिर उसे, मत यूँ हल्का तोल।८।  ... घनानंद सा तुम उसे .. 
*
गाँठों को झट खोल मन, ऐसे ही मत छोड़    
सम्बंधों का  प्रेम  रस, जो  दें सदा निजोड़।९।   .... निचोड़ शुद्ध वर्तनी है. 
*
भली न होती गाँठ है, पड़े किसी भी ठौर
लेकिन मन में जो  पड़े, करे बुरा हर दौर।१०। ... बढिया .. 

तनिक और समय दें टो दोहे व्यवस्थित हो जाएँगे 

प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाइयाँ 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 7, 2025 at 8:06am

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति से प्रसन्नता हुई। हार्दिक आभार।

विस्तार से दोष निवारण करने के लिए हार्दिक आभार।

Comment by Chetan Prakash on March 6, 2025 at 9:29am

भाई, सुन्दर दोहे रचे आपने ! हाँ, किन्तु कहीं- कहीं व्याकरण की अशुद्धियाँ भी हैं, जैसे:

( 1 ) पहला दोहा तृतीय  चरण , " जब चाहो तब प्यार से"  पूर दोहे में कर्ता ( यद्यपि अदृश्य ' तुम ) के सापेक्ष  " चाहो" के स्थान पर  'चाहे' आना चाहिए।

( 2 )  चौथे दोहे का द्वितीय चरण "ठाँठ" पर समाप्त हो रहा है, किन्तु वर्तनी  दोष पूर्ण है ।

( 3 )आठवें दोहे का तृतीय चरण,  " धनानंद" से शुरु होता है,  सही वर्तनी, ' घनानंद' है ।

( 4 ) नौवें दोहे में, " निजोड़" के स्थान पर,  ' निचोड़' होना चाहिए।  सादर साभार!

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