२१२२/२१२२/२१२२
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आग में जिसके ये दुनिया जल रही है
वह सियासत कब तनिक निश्छल रही है।१।
*
पा लिया है लाख तकनीकों को लेकिन
और आदम युग में दुनिया ढल रही है।२।
*
क्लोन का साधन दिया विज्ञान ने पर
मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है।३।
*
मान मर्यादा मिटाकर पाप करती
(भूल जाती मान मर्यादा सदा वह)
भूख दौलत की जहाँ भी पल रही है।४।
*
गढ़ लिए मजहब नये कह बद पुरानी
पर न सीरत एक की उज्वल रही है।५।
*
दौड़ती नफरत हमेशा फिर रही जब
प्रीत क्यो अभिशाप सी निश्चल रही है।६।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थित और मार्गदर्शन के लिए आभार। कुछ सुधार किया है देखिएगा।
आग में जिसकी ये दुनिया जल रही है
वह सियासत भी कभी निश्छल रही है।१।
*
लाख तकनीकें नयी अपनायी जग ने
फिर भी आदिम युग में दुनिया ढल रही है।२।
*
क्लोन का साधन दिया विज्ञान ने पर
मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है।३।
*
भूल जाती मान मर्यादा सदा वह
भूख दौलत की जहाँ भी पल रही है।४।
*
धर्म नूतन तो रचे बदलाव कहकर
किन्तु सीरत कौन सी उज्वल रही है।५।
*
दौड़ती नफरत सदा हर ओर है तब
प्रीत क्यों अभिशप्त सी निश्चल रही है।६।
आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।
आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थित और मार्गदर्शन के लिए आभार। कुछ सुधार किया है देखिएगा।
आग में जिसकी ये दुनिया जल रही है
वह सियासत भी कभी निश्छल रही है।१।
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लाख तकनीकें नयी अपनायी जग ने
फिर भी आदिम युग में दुनिया ढल रही है।२।
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क्लोन का साधन दिया विज्ञान ने पर
मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है।३।
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भूल जाती मान मर्यादा सदा वह
भूख दौलत की जहाँ भी पल रही है।४।
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धर्म नूतन तो रचे बदलाव कहकर
किन्तु सीरत कौन सी उज्वल रही है।५।
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दौड़ती नफरत सदा हर ओर है तब
प्रीत क्यों अभिशप्त सी निश्चल रही है।६।
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आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपके सकारात्मक प्रयास के लिए हार्दिक बधाई
आपकी इस प्रस्तुति पर कुछेक सुझाव वाकई मननीय हैं. विश्वास है, आप तदनुरूप अभ्यासरत होंगे.
आपके माध्यम से सभी अभ्यासी सदस्य-मित्रों को मेरी एक सलाह जरूर होगी, कि किसी प्रस्तुति की पंक्तियों को उसके विन्यास के क्रम में कई-कई ढंग से लिखें. ताकि जबतक आपकी सोच को उचित शब्द न मिलें और पंक्ति जबतक आवश्यक संप्रेषणीय न हो जाय, उस पर काम चलता रहे. हो सकता है, इसमें कुछ दिन ही क्यों न लग जाएँ. इसके बाद प्रस्तुतियों पर जो सुझाव आते हैं ए भाव-दशा को संतुष्ट करते हुए होते हैं. व्याकरण सम्बन्धी चर्चाओं से उक्त प्रस्तुति एक तरह से स्वतंत्र हो जाती है.
शुभ-शुभ
बड़ी ही अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय धामी जी बहुत-बहुत धन्यवाद और बधाई....
आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, वाह ! उम्दा ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकारें. उज्वल/उज्ज्वल. सादर
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।... मतले पर आदरणीय भंडारी जी से सहमत हूँ।
आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार।
पाँचवें शेर में कुछ बदलाव किया है। अगर बात न बनी हो तो अपनी ओर से कुछ सुझाएँ। सादर
कह पुरातन को बुरा मजहब बने नव
पर न सीरत एक की उज्वल रही है।५।
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