For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक ११ (Now Closed with 948 Replies)

सभी साहित्य प्रेमियों को

प्रणाम !

          साथियों जैसा की आप सभी को ज्ञात है ओपन बुक्स ऑनलाइन पर प्रत्येक महीने के प्रारंभ में "महा उत्सव" का आयोजन होता है, उसी क्रम में ओपन बुक्स ऑनलाइन प्रस्तुत करते है ......

 

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक  ११

इस बार महा उत्सव का विषय है "तेरे बिना जिया लागे ना"

आयोजन की अवधि :- ८ सितम्बर २०११ गुरूवार से १० सितम्बर २०११ शनिवार तक

          महा उत्सव के लिए दिए गए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना काव्य विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है |

उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है ...
  1. तुकांत कविता
  2. अतुकांत आधुनिक कविता
  3. हास्य कविता
  4. गीत-नवगीत
  5. ग़ज़ल
  6. हाइकु
  7. व्यंग्य काव्य
  8. मुक्तक
  9. छंद [दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका वग़ैरह] इत्यादि
             साथियों बड़े ही हर्ष के साथ कहना है कि आप सभी के सहयोग से साहित्य को समर्पित ओबिओ मंच नित्य नई बुलंदियों को छू रहा है OBO परिवार आप सभी के सहयोग के लिए दिल से आभारी है, इतने अल्प समय में बिना आप सब के सहयोग से कीर्तिमान पर कीर्तिमान बनाना संभव न था |

             इस ११ वें महा उत्सव में भी आप सभी साहित्य प्रेमी, मित्र मंडली सहित आमंत्रित है, इस आयोजन में अपनी सहभागिता प्रदान कर आयोजन की शोभा बढ़ाएँ, आनंद लूटें और दिल खोल कर दूसरे लोगों को भी आनंद लूटने का मौका दें |

अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन से जुड़े सभी सदस्यों ने यह निर्णय लिया है कि "OBO लाइव महा उत्सव" अंक ११ जो तीन दिनों तक चलेगा उसमे एक सदस्य आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टि ही प्रस्तुत कर सकेंगे | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध और गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकेगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा और जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी | 

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो ८ सितम्बर लगते ही खोल दिया जायेगा )

यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |

( "OBO लाइव महा उत्सव" सम्बंधित किसी भी तरह के पूछताक्ष हेतु पर यहा...

मंच संचालक

धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)

Views: 17831

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

भाई संजयजी, आपने उस बात को रेखांकित किया है जो निगाहों से अक्सर छूट जाया करती है.. इस रचना को आपने मान दिया है, आपका हार्दिक धन्यवाद.

बेहद खूबसूरत रचना ...बधाई सौरभ जी

धन्यवाद लता जी...

बहुत ही ख़ूबसूरत रचना के लिये सौरभ जी को मुबारकबाद।

आपकी सुधी दृष्टि पड़ी, मैं धन्य हुआ, डा. संजयदानी भाईसाहब.

ना तुम कभी नहीं समझोगे.......वाह वह सौरभ सर, बहुत ही खुबसूरत रचना बन पड़ी है, खास करके अंतिम स्टेंजा...वाह क्या कहने, बधाई स्वीकार करे आदरणीय |

ना.. . तुम कभी नहीं समझोगे.
मासूम सा उलाहनों भरा शीर्षक  
गिरह नहीं कहूँ इसे 
ये रात-प्रात, बात भर  
व्यस्त-व्यस्त हो लिये 
अलस्त नींद.. साथ पर !
मैं राह थी, पसर गयी 
ये मोड़ किन्तु क्या कहे
जो सुन सको, तो बोल दूँ
विश्वास के उद्भाष से
तुकांत के उच्छ्वास में
तुम प्रहर, दिनमान तुम
फिर क्यों निरभ्र आकाश में.. 
खड़ी-खड़ी निहारती..?  /  ना..  तुम कभी नहीं समझोगे.
विरहिणी के मनोभावों को इससे बेहतर शब्द क्या मिलेंगे   
विचार दृश्य में ठनी 
मैं सोचती ठिठक बनी  
तुम मुक्त थे, विभोर थी..
गहन-से मंत्र-मंत्र तुम
विमुग्ध मैं तरल-तरल
एक बार  भर  की छुई 
हुलस-परस हिलोरती
निस्सीम तुम विस्तार-से..
मैं, परन्तु, छोर-सी 
क्यों बंद-बंद चुक रही 
नवनीत लेकर तप रही
समझा कभी, क्यों हूँ  भरी ? /  ना.. तुम कभी नहीं समझोगे.
भाषा कि उत्कृष्टता और काव्य कि सुन्दरता का बेहतरीन समावेश है इस भाग में  
तुम चित्त-से, तुम बुद्धि-से
तुम मन-विकल की शुद्धि-से
तुम भीड़ में निस्संग-से  
नियमों सधे तुम ढंग-से 
तुम तथ्य हो  हर कथ्य के  
उद्घोष तुम ही सत्य-के
तुम हो यहाँ, तुम हो वहाँ 
बस तुम ही तुम, देखूँ जहाँ
संगीत तुम, स्वर-गीत तुम.. 
मन-व्योम के जगजीत तुम
उपलब्धियों के मध्य फिर  
इतनी विवश क्यों हो गयी ?  /  ना.. तुम कभी नहीं समझोगे. 
विरहिणी कि वेदना को क्या स्वर दिए हैं हार्दिक बधाई गुरुवर 
जो तुष्ट हो सको कभी 
जो बन सका... अर्पण किया 
पलक-पलक विकल हुई
मैं मूक आँखों की छली  
चुप हेरती, निहारती 
सशंक मैं गुहारती 
चुपचाप ओट में छिपी  
विभोर !  तुमसे हारती 
मैं फूल-फूल रह गयी  
बहार किन्तु ले गये
अब स्नेह रंगहीन मैं 
या, आह मैं थकती हुई..? /  ना.. तुम कभी नहीं समझोगे..  
त्याग को दर्शाती बेहद ख़ूबसूरत पंक्तियाँ ...
...    ...
नाऽऽऽ.. 
तुम  कब्भीऽऽऽऽ .. नहीं..  समझोगे..... ... .. .....
इस कब्भी ने तो असल में सुन्दरता में चार चाँद लगा दिए हैं... वाह वाह लाजवाब है सर....

 इस बार का विषय ऐसा था जहाँ मेरा कवि मौन साध लेता है, किन्तु कल हमारे हाईकोर्ट पर

हुए आतंकी हमले के बाद हताहतों का प्रत्यक्ष दर्शन अत्यन्त वीभत्स था... क्षोभ व वितृष्णा भरे

मन से कुछ पंक्तियाँ अनायास फूट पड़ीं जो यहाँ घनाक्षरी रूप में प्रस्तुत हैं...

 

देश में है लगी आग नेता खेल रहे फाग,

     मोटी खाल वाले इन्हें शर्म कभी आए ना।

आतंकी को पूरी छूट चारों ओर मची लूट,

     मासूमों का आर्त्तनाद कोई सुन पाए ना।

कीड़े औ' मकौड़े जैसे रोज मरते 'प्रमोद',

     देशघातियों की जान सड़कों पै जाए ना।

ऐसे हों हालात जब तुम्हीं बतलाओ प्रिये,

     कैसे कहदूँ कि तेरे बिना जिया जाए ना।।

आदरणीय प्रमोद वाजपेयीजी,  प्रस्तुत रचना वर्त्तमान के कुल संदर्भ-सिरे को पकड़ कर सद्यः घटित एक उज्जड घटना की तीव्रता को उभारती हुई, इस आयोजन के साथ समुचित न्याय करती हुई बढ़ती जाती है. एक सफल रचना के माध्यम से परिलक्षित आपकी संवेदनशीलता के प्रति हम पूर्णतया नतमस्तक हैं. जिस तरह से आपने स्वाभाविक आक्रोश व कुलबुलाती हुई विवशता के बावज़ूद आवश्यक लालित्य का निर्वहन किया है वह अनुकरणीय और स्तुत्य है.   सादर..

 

समादरणीय, आप सरीखे अधिकारी विद्वज्जनों से प्रशंसित प्रयास सार्थक कहलाएगा..... हार्दिक धन्यवाद

सादर ..

 


आदरणीय प्रमोद जी, आपने लीक से हटकर कुछ कहने का प्रयास किया है, बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति है आपकी रचना में. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया दोहा लेखन किया है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। बहुत बहुत…"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । सुझाव के लिए हार्दिक आभार लेकिन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"अच्छे दोहें हुए, आ. सुशील सरना साहब ! लेकिन तीसरे दोहे के द्वितीय चरण को, "सागर सूना…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कामरूप छंद // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"सीखे गजल हम, गीत गाए, ओबिओ के साथ। जो भी कमाया, नाम माथे, ओबिओ का हाथ। जो भी सृजन में, भाव आए, ओबिओ…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion वीर छंद या आल्हा छंद in the group भारतीय छंद विधान
"आयोजन कब खुलने वाला, सोच सोच जो रहें अधीर। ढूंढ रहे हम ओबीओ के, कब आयेंगे सारे वीर। अपने तो छंदों…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion उल्लाला छन्द // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"तेरह तेरह भार से, बनता जो मकरंद है उसको ही कहते सखा, ये उल्लाला छंद है।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion शक्ति छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"शक्ति छंद विधान से गुजरते हुए- चलो हम बना दें नई रागिनी। सजा दें सुरों से हठी कामिनी।। सुनाएं नई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Er. Ambarish Srivastava's discussion तोमर छंद in the group भारतीय छंद विधान
"गुरुतोमर छंद के विधान को पढ़ते हुए- रच प्रेम की नव तालिका। बन कृष्ण की गोपालिका।। चल ब्रज सखा के…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion हरिगीतिका छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"हरिगीतिका छंद विधान के अनुसार श्रीगीतिका x 4 और हरिगीतिका x 4 के अनुसार एक प्रयास कब से खड़े, हम…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion गीतिका छंद in the group भारतीय छंद विधान
"राम बोलो श्याम बोलो छंद होगा गीतिका। शैव बोलो शक्ति बोलो छंद ऐसी रीति का।। लोग बोलें आप बोलें छंद…"
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service