For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बन के काफ़िर जिसको पूजें कोई मूरत ही नहीं,

झेल ली है इतनी मुश्किल कुछ ये आफ़त ही नहीं;

*
साथ मेरे रह न पाया अजनबी ही तू रहा,
साफ़ कहना था तुम्हें मुझसे मुहब्बत ही नहीं;

*

सब के सब ख़ुशबाश हो जाएँ न ग़म कोई रहे,

काश ऐसा हो सके पर ऐसी सूरत ही नहीं;

*
भूल जा हर रंज उर ग़म माफ़ कर दे तू इसे,
रह गई बस कुछ की अब ये सब की सीरत ही नहीं;

*
हाँ ये मुफ़लिस था सही, लेकिन शराफ़त थी बहुत,
खेलता लाखों में है लेकिन शराफ़त ही नहीं;

*
उसने थामी राह वो के आज ऊंचाई पे है,
रास्ता मुझको मिला जो उस पे शुहरत ही नहीं;

*

जख़्म माज़ी के हैं ताज़ा, हाँ रखे हैं नोच कर,

ज़ह्र मुझको दे दवाओं की ज़रूरत ही नहीं;

*

हम कभी थे हमनवा पर दूर कैसे हो गए,

तेरे मेरे बीच कोई भी अदावत ही नहीं;

*
है पशीमाँ इस वतन का आम इंसाँ देखिये,
हल हो ये मसले यहाँ इसकी इजाज़त ही नहीं;

*
बस मुहब्बत बांटता चल और लग सबके गले,
इस जहाँ में इससे बढ़ कोई इबादत ही नहीं;

*
जब ऐ वाहिद हर जगह होगा अमन ओ चैन बस,
इब्तिदा इसकी हो ऐसा इक महूरत ही नहीं;

(सुधारे या नए जोड़े गए हिस्सों को लाल रंग में रखा है)

Views: 494

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 19, 2012 at 12:20pm

हार्दिक आभार प्रदीप जी! ऐसी ही सोच रखता हूँ| वैसे 'शठे शाठ्यं समाचरेत' पर गहन विश्वास रखता हूँ| :))

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2012 at 11:19pm

बस मुहब्बत बांटता चल और लग सबके गले,
इस जहाँ में इससे बढ़ कोई इबादत ही नहीं;

snehi sandip ji, sadar

pyar bantte chalo. badhai.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 18, 2012 at 3:02pm

आदरणीय सौरभ जी,

मैं जानता था कि ऐसी कोई बात आ सकती है| अतः आपके कथनानुसार मैं इस अदना सी ग़ज़ल में कुछ परिवर्तन करके कुछ ही देर में प्रस्तुत करता हूँ| मुक्तकंठ से सराहना हेतु आपका कृतज्ञ हूँ| सादर, :-)

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 18, 2012 at 3:01pm

प्रिय भ्रमर जी,

आपने तो हमेशा से ही सराहा है और सीखने को उद्यत किया है| ये चित्र वास्तव में मेरे ही बनाये हुए हैं मगर मैं चित्रकार नहीं हूँ| :-) आपका हार्दिक आभार,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 18, 2012 at 2:59pm

आपकी बधाई सहर्ष स्वीकार है सरिता जी!! :-)

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 18, 2012 at 2:59pm

आदरणीय अभिनव भईया,

सादर, आपके प्रोत्साहन से निश्चय ही और बेहतर करने का संबल प्राप्त हुआ है| हार्दिक आभार आपका,

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 17, 2012 at 11:26pm

भूल जा हर रंज उर ग़म माफ़ कर दे तू इसे,
रह गई बस कुछ की अब ये सब की सीरत ही नहीं;

बस मुहब्बत बांटता चल और लग सबके गले,
इस जहाँ में इससे बढ़ कोई इबादत ही नहीं;

काशी वासी भाई ..गजब के शेर ..गंभीर... सुन्दर सन्देश ....ये छवियाँ चित्र नायाब क्या आप चित्रकार भी हैं ?
भ्रमर ५ 



सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 17, 2012 at 10:40pm

लाललाला लाललाला लाललाला लालला

और ग़ज़ल अपने शेरों के अंतर्निहित कहन को सँवारती हुई ऊँची होती चली गयी है. 

लेकिन एक मूल बात जो पकड़ से छूट गयी है वह है, काफ़िया का निर्धारण. 

आपके मतले के अनुसार काफ़िया ऊरत   होता है. अब इसके बाद सभी शेर ऐसे ही निर्धारित होने चाहिये.

बस मुहब्बत बांटता चल और लग सबके गले,
इस जहाँ में इससे बढ़ कोई इबादत ही नहीं;

बहुत सुन्दर कहन,  बधाई ........

Comment by Sarita Sinha on April 17, 2012 at 9:59pm

संदीप जी नमस्कार, बहुत खूब..हर शेर अपने आपमें अलग अंदाज़ लिए...बधाई स्वीकार कीजिये...

Comment by Abhinav Arun on April 17, 2012 at 1:31pm

है पशीमाँ इस वतन का आम इंसाँ देखिये,
हल हो ये मसले यहाँ इसकी इजाज़त ही नहीं;

*
बस मुहब्बत बांटता चल और लग सबके गले,
इस जहाँ में इससे बढ़ कोई इबादत ही नहीं;

आदरणीय श्री वाहिद जी एक से बढ़कर एक शेर शानदार मुकम्मल ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई  आपको ! !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वैशाख अप्रैल में आता है उसके बाद ज्येष्ठ या जेठ का महीना जो और भी गर्म होता है  पहले …"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल और बेहतर करने में योगदान देने के लिए आ कुछ सुधार किये हैं गौर फ़रमाएं- मेरी…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई जयनित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service