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इस बार का तरही मिसरा 'बशीर बद्र' साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई"
वज्न: 212 212 212 212
काफिया: ई की मात्रा
रद्दीफ़: रह गई
इतना अवश्य ध्यान रखें कि यह मिसरा पूरी ग़ज़ल में कहीं न कही ( मिसरा ए सानी या मिसरा ए ऊला में) ज़रूर आये|
मुशायरे कि शुरुवात शनिवार से की जाएगी| admin टीम से निवेदन है कि रोचकता को बनाये रखने के लिए फ़िलहाल कमेन्ट बॉक्स बंद कर दे जिसे शनिवार को ही खोला जाय|

इसी बहर का उदहारण : मोहम्मद अज़ीज़ का गाया हुआ गाना "आजकल और कुछ याद रहता नही"
या लता जी का ये गाना "मिल गए मिल गए आज मेरे सनम"

विशेष : जो फ़नकार किसी कारण लाइव तरही मुशायरा-2 में शिरकत नही कर पाए हैं
उनसे अनुरोध है कि वह अपना बहूमुल्य समय निकाल लाइव तरही मुशायरे-3 की रौनक बढाएं|

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एक और मुक्तिका:
माँ! अधूरी मेरी बन्दगी रह गई
संजीव 'सलिल'
*
ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई.
अब न पहले सी यह ज़िंदगी रह गई..

मन ने रोका बहुत, तन ने टोका बहुत.
आस खो, आँख में पुरनमी रह गई..

दिल की धड़कन बढ़ी, दिल की धड़कन थमी.
दिल पे बिजली गिरी कि गिरी रह गई..

साँस जो थम गई तो थमी रह गई.
आँख जो मुंद गई तो मुंदी रह गई..

मौन वाणी हुई, मौन ही रह गई.
फिर कहर में कसर कौन सी रह गई?.

दीप पल में बुझे, शीश पल में झुके.
ज़िन्दगी बिन कहे अनकही कह गई..

माँ! अधूरी मेरी बन्दगी रह गई.
ज़िन्दगी में तुम्हारी कमी रह गई..

*************************************
वाह ! ख़ूबसूरत ग़ज़ल .....
shukriya.
//माँ! अधूरी मेरी बन्दगी रह गई.
ज़िन्दगी में तुम्हारी कमी रह गई...//

आचार्य जी, दिल भर आया ये पंक्तियाँ पढ़कर ! स्वर्गीय माँ आज बहुत ही शिद्दत से याद आई !
मैंने भी यह रचना अपनी माँ की स्मृतियों में डूबकर ही की है. आपके दिल तक बात पहुँच सकी तो मेरा लेखन कर्म सफल हो गया.
सलिल जी पुनः आपने एक खुबसूरत शे'र कही है| एक बार फिर मन बिना कुछ पूछे वाह वाह कह गया|
माँ! अधूरी मेरी बन्दगी रह गई.
ज़िन्दगी में तुम्हारी कमी रह गई..

बहुत खूब , क्या शब्दों की जादूगरी दिखाई है आपने, बहुत खूब , साथ ही एक ग़ज़ल मे ४ बार मतला और २ बार गिरह, कुछ अलग सी है |
इस रचना का कथ्य, शिल्प, बिम्ब और भाव सभी लीक से कुछ हटकर है. अपनी बात कहें और आप के दिल तक पहुँचाने में कितना सफल हुआ या नहीं हुआ इसका फैसला आप ही करेंगे.
१०० फीसदी सफल है ,
शुक्र है ऊपरवाले और ऊपर वाले के समीप जा पहुँची माँ का जिनके आशीर्वाद से बात कुछ बन गयी.
bahot badhiya ganeshjee.
आर.पी. जी यदि तरही की लाइन 'नयी' हो तो मेरे ख्याल से अच्छा रहेगा. गौर कीजियेगा .इससे बाहर आगे पढ़ने पर किसी से प्रेरणा या नक़ल की बात का मौका नहीं रहेगा.यह मेरा सुझाव है शिकायत नहीं.तरही अच्छा चल रहा है बधाई.

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"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
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"वाह, पद प्रवाहमान हो गये।  जय-जय"
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