आदरणीय साहित्य प्रेमियों
सादर वन्दे,
"ओबीओ लाईव महा उत्सव" के १९ वे अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. पिछले १८ कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने १८ विभिन्न विषयों पर बड़े जोशो खरोश के साथ और बढ़ चढ़ कर कलम आजमाई की. जैसा कि आप सब को ज्ञात ही है कि दरअसल यह आयोजन रचनाकारों के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है, इस आयोजन पर एक कोई विषय या शब्द देकर रचनाकारों को उस पर अपनी रचनायें प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है:-
"OBO लाइव महा उत्सव" अंक १९
.
विषय - "गाँव"
आयोजन की अवधि- ८ मई २०१२ मंगलवार से १० मई २०१२ गुरूवार तक
तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दे डालें अपनी कल्पना को हकीकत का रूप, बात बेशक छोटी हो लेकिन घाव गंभीर करने वाली हो तो बात का लुत्फ़ दोबाला हो जाए. महा उत्सव के लिए दिए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है |
उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है: -
अति आवश्यक सूचना :- "OBO लाइव महा उत्सव" अंक- १९ में सदस्यगण आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही प्रस्तुत कर सकेंगे | नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी |
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो मंगलवार ८ मई लगते ही खोल दिया जायेगा )
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"महा उत्सव" के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
मंच संचालक
धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)
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ऐसा लगा जैसे किसी फिल्म का दृश्य चल रहा हो ! बढ़िया प्रस्तुति !
बाकी सौरभ सर ने कह ही दिया है !
बहुत बढ़िया दृश्य चित्रण किया है आपने इस रबड़ छंद के माद्यम से शन्नो जी, पढ़ कर आनंद आया. बधाई स्वीकार करें.
वाह शन्नो बहन...सच्चाई का वर्णन करता एक प्रभावशाली शब्दचित्र ..बधाई हो
आदरणीया शान्नो जी, बहुत दिनों बाद आप से मुलाकात हो रही है यहाँ. आशा है आप और आपका परिवार कुशल मंगल है...
आपकी इस रचना ने बदलते परिवेश और व्यवहार को बखूबी बाँधा है अपने शब्दों में.....एक चित्र सा उभर आता है है ये रचना पढ़ कर...हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये
//भौजी ने चूल्हे पे है दाल चढ़ाई
बथुये के संग कल जला दी कड़ाई
घर आई ननदिया जूँ रही निकाल
बार-बार कंघी से काढ़ती है बाल
गुड़ के लड्डू और आटे का हलुआ
जब भी बनता खा जाता कलुआ
बरसों से दमे में दम जो लगाया
जर्जर सी हो गयी बुढ़ऊ की काया l//
वाह आदरणीया वाह .......आपने तो गाँव का जीवंत चित्रण ही कर डाला .....बहुत-बहुत बधाई आपको ......|
आदरणीया शन्नो दीदी .. वाह कमाल की प्रस्तुति करण ...बहुत ही मनोरंजक ... हार्दिक बधाई ..
बेशक दीवारें कच्ची,छप्पर टूटे अपने गांव में
लेकिन मस्ती - अपनापन है हरदम अपने गांव में
मीठा ठंडा पानी देता कुआँ साठिया गांव में
कितना सुख है पीपल की उस ए.सी. जैसी छाँव में
हवा चली सब बहा ले गई ठूंठ रह गए गांव में
उन्ही किसी में अटका है मन अब भी अपने गांव में
राम! न देते गाड़ी घोडा कांठी कोठी ठांव रे
मिल जाता सब कुछ जो पाता अपना प्यारा गाँव रे
वाह ब्रिजेश जी बहुत सुन्दर चित्र खींचा है गाँव का ...बहुत सुन्दर बधाई
//कितना सुख है पीपल की उस ए.सी. जैसी छाँव में
हवा चली सब बहा ले गई ठूंठ रह गए गांव में//
आदरणीय ब्रजेश जी ! गाँव को चित्रित करती हुई बहुत ही सशक्त पंक्तियाँ रचीं हैं आपने.... बहुत-बहुत बधाई आदरणीय !
डॉ साहब बहुत ही प्रवाहयुक्त रचना , बधाई हो |
बेशक दीवारें कच्ची,छप्पर टूटे अपने गांव में.....सच्चाई..
लेकिन मस्ती - अपनापन है हरदम अपने गांव में...कोई शक..
मीठा ठंडा पानी देता कुआँ साठिया गांव में...मीठी बात..
कितना सुख है पीपल की उस ए.सी. जैसी छाँव में....कुदरती उपाय...
हवा चली सब बहा ले गई ठूंठ रह गए गांव में....ये भी सही...
उन्ही किसी में अटका है मन अब भी अपने गांव में.....वाह!डॉ. त्रिपाठी बहुत ही लयात्मकता लिये लाजवाब ,लजीज लेखन....
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