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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - २४ (Now Closed)

परम आत्मीय स्वजन, 

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा के चौबीसवें अंक मे आपका स्वागत है | पिछले दो मुशायरे हमने एक ही बह्र पर आयोजित किये, जिसका उद्देश्य बह्र को समझना और उस पर अभ्यास करना था | यह बहुत प्रसन्नता की बात है कि हमें दोनों मुशायरों मे बहुत ही ख़ूबसूरत गज़लें मिलीं जो ओ बी ओ की धरोहर हैं | इस बार हम एक दूसरी बह्र पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करेंगे | यह बह्र भी मुशायरों की सरताज बह्र है जिसे तमाम शायर बड़ी खूबी के साथ प्रस्तुत करते हैं | इस बह्र की खासियत है कि यहाँ पर मात्राओं के साथ साथ गेयता ही प्रमुख है | इस बह्र मे दो अकेली मात्राओं(११)को  भी जोड़कर २(गुरु) पढ़ा जा सकता है साथ ही साथ अगर गेयता मे कोई समस्या नहीं है तो कुल मात्राएँ जोड़कर भी पढ़ी जा सकती है, जैसे कि ३० मात्राएँ | इस बार का मिसरा मेरे महबूब शायर कतील शिफाई की गज़ल से लिया गया है | पकिस्तान मे जन्मे कतील शिफाई की कई ग़ज़लों को हिन्दुस्तान मे जगजीत सिंह और पकिस्तान मे गुलाम अली जैसे गायकों ने अपनी आवाज़ से नवाजा है| मिसरा -ए- तरह है :

"पूछे कौन समन्दर से तुझमें कितनी गहराई है"

२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २

फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फा

बह्र: बहरे मुतदारिक की मुजाहिफ सूरत

रदीफ: है 

काफिया: आई (गहराई, रुसवाई, दानाई, लगाई, हरजाई, बीनाई, अंगड़ाई आदि)


विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें, तरही मिसरे को मतला के साथ गिरह  न लगाये । अच्छा हो यदि आप बहर में ग़ज़ल कहने का प्रयास करे, यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी की कक्षा में यहाँ पर क्लिक
 
 कर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें |


मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 जून 2012 दिन गुरूवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३० जून   2012 दिन शनिवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |


अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २४ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगाजिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |


मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है 

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २८ जून २०१२ दिन गुरूवार लगते ही खोल दिया जायेगा )

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मंच संचालक 

राणा प्रताप सिंह 

(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन 

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Replies to This Discussion

bahut khoob arun ji bahut hi umda ghazal he badhai kubool karein

अरुण जी ,होल्री मनती रोज यहाँ पर, पिचकारी में खून भरा

चीख रहे हैं ढोल -नंगाड़े, मातम की शहनाई है.,बहुत बढ़िया गजल ,मुबारक हो 

बहुत खूब। अच्‍दा दायरा है सोच का। 

दीवाली में दिल जलता है , भूल गये त्यौहारों को
दूर पहुँच से हाट हो गये , चारों सूँ महंगाई है.//////

दिल को मिह लिया आपकी  इन पंक्तियों ने .... दिली दाद क़ुबूल करे  भाई जी ..:))

भाई अरुणजी,  ग़ज़ल पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें. 

कब तक खैर मनाये अम्मा, बकरे की तू ही बतला
जिसका दामन थाम खड़ा है, वो भी एक कसाई है.

इस शेर पर मैं दिल से दाद दे रहा हूँ.  इस वैचारिक प्रौढ़ता पर मेरा सादर नमन

अरुण जी सुन्दर शेर कहे हैं ....
गिरह का मिसरा बहुत सुन्दर कहा है

चारों सूँ      >>>>>  यह शब्द "चार सू" होना चाहिए

शन्नो अग्रवाल जी नमस्कार ! बहुत सुंदर प्रस्तुति इस ग़ज़ल के माध्यम से .....एक से बढ़कर एक शेर आपने पिरोये हैं इस ग़ज़ल में । लेकिन एक बात ये खटक रही है की ग़ज़ल की शुरुआत मतले से होती है लेकिन आपने शेर से शुरू की। वैसे तो ये मतला है...

ऊपर से है शांत मगर अंदर हर बात दबाई है 

पूछे कौन समुन्दर से तुझमें कितनी गहराई है l

लेकिन तरही मिसरे को मतले में नहीं बाँधना है....फिर भी एक अच्छा प्रयाश है। बधाई हो !!

सूरज जी, आपका बहुत शुक्रिया. मतले वाली मेरी गलती पर रोशनी डालने के लिये आपकी आभारी हूँ.  

ආදර්නීය්

आदरणीय शन्नोदी की गजल कहाँ गई.... ???

शन्नोजी की ग़ज़ल दीख भी रही है क्या ??

नहीं ही दिख रही गुरुवर....

जाने क्या बात है...

यही हाल भाईजी, अविनाश भाई की पहली ग़ज़ल की है.

अब इस अद्भुत तकनीक को क्या कहें जो कहने/ लिखने वालों की मेहनत पर पानी ही फेर दे. ..

:-)))

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