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गरचे तेरे ख़याल का मेयार हम नहीं

नमस्कार अहबाब, तरही मुशायरा २३ में वक़्त पर मैं कोई ग़ज़ल नहीं कह पाया, क्योंकि तब तक मैं इस परिवार का हिस्सा ही नहीं था. अब उस मिसरे पर ख़ामा घिसाई का मन हुआ तो कुछ अश'आर कह दिए. आपकी नज़्र हैं, कोई ग़लती या ऐब दिखाई दे तो बेशक़ इत्तेला करें

****

गरचे तेरे ख़याल का मेयार हम नहीं
तो क्या तेरी तलब से भी दो-चार हम नहीं

वो चारागर है, सोचके मरता है दिल का हाल
आज़ार तो यही है कि बीमार हम नहीं

ऐ जान-ए-जान ग़ौर से देख इन्तहा-ए-शौक़
ख़ून-ए-जिगर है हम पे, हिनाज़ार हम नहीं

मरते हैं, मर नहीं सके, तेरे फ़िराक़ में
कहता है कौन इश्क़ में नाचार हम नहीं

फ़ारिग़ हैं दिलबरी से ब_क़द्र-ए-जूनून-ए-शौक़
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं

जी ने बनाया दर्द को गोर-ए-दिल आख़िरश
कूचा-ए-इश्क़ में किसी पे बार हम नहीं

हैं और भी वबाल यहाँ, बाद-ए-ख़स्तगी
रह्न-ए-जुनूँ हैं कुश्ता-ए-आज़ार हम नहीं

हासिल है दिल को दर्द-ए-ज़माना का साथ भी
लेकिन तेरे ख़याल से बेज़ार हम नहीं

आशिक़ हैं हम तो छेड़ हमें जिस क़दर बने
अब क्या तेरे सितम के भी हक़दार हम नहीं

**********

मेयार = standard ; तलब=हसरत ; हिनाज़ार = मेंहदी लगे हुए ; मरते हैं = दुखी हैं (तड़पते हैं) ; नाचार=मजबूर ; फ़ारिग़.....शौक़ = शौक़ के जूनून में दिलबरी छोड़ दी है ; गोर-ए-दिल = दिल की कब्र ; आखिराश=आखिर में ; बाद-ए-ख़स्तगी = टूट जाने के बाद ; रहन-ए-जुनूँ = जूनून के हाथों गिरवी ; कुश्ता-ए-आज़ार=बीमारी से मारे हुए ;

 

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Comment

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Comment by Vipul Kumar on July 1, 2012 at 6:51pm

Shukriya Raj bhai :)

Comment by Raj Tomar on July 1, 2012 at 6:24pm

 Vipul Bhai, Aap ki ghazal to bahut hi khoobsurat hai..:)

   che khush.. :)

Comment by Vipul Kumar on July 1, 2012 at 5:04pm

Shukriya arun kumar nigam jii.....

aapne zarre ko nawazish ke qabil samjha yahi bahut hai....

aur us misre meN "sochkar" ko "sochke" padheN, phir shayad bikhraav door ho jaaye zehn meN.......:)

Comment by Vipul Kumar on July 1, 2012 at 5:03pm

Shukriya Arun Kumar Pandey 'Abhinav' ji. aapne waqt diya padhne aur samajhne meN uske liye tah-e-dil se shukrguzaar huN.....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 1, 2012 at 2:56pm

प्रिय श्री विपुल कुमार जी, उम्दा गज़ल लिखी है.

आशिक़ हैं हम तो छेड़ हमें जिस क़दर बने
अब क्या तेरे सितम के भी हक़दार हम नहीं.

इस अश'आर के लिये खास तौर पे दाद कबूल कीजिये.

वो चारागर है, सोचकर मरता है दिल का हाल,  हालांकि आपने  सब कुछ समझा दिया है मगर पता नहीं क्यों कुछ अटक सा रहा है. बंधा हुआ सा नहीं लग रहा है, कुछ बिखराव सा लग रहा है.एक बार फिर से गौर करके देखें.

Comment by Abhinav Arun on July 1, 2012 at 2:01pm

थोड़ी कठिन है हम हिंदी वालों के लिए , पर कुछ शेर ध्यान खींचते हैं इस हेतु बधाई आपको \ ये शेर ख़ास लगा -

हासिल है दिल को दर्द-ए-ज़माना का साथ भी
लेकिन तेरे ख़याल से बेज़ार हम नहीं ..!

लिखना और सीखना ओ बी ओ का जिंदाबाद नारा है \ हम सब इसके झंडाबरदार हैं !!शुभकामनाएं !!

Comment by Vipul Kumar on July 1, 2012 at 1:36pm

jee haaN. shukriya


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 1, 2012 at 1:33pm

मेरी उलझन को दूर करने के लिये हृदय की गहराइयों से आपको धन्यवाद कह रहा हूँ.  वैसे यह मिसरा कुछ और खुल सकता था.

इस शेर को दुबारा लिख रहा हूँ --

वो चारागर है, सोच के मरता है दिल का हाल
आज़ार तो यही है कि बीमार हम नहीं

Comment by Vipul Kumar on July 1, 2012 at 1:25pm

बहुत बहुत धन्यवाद सौरभ जी, की आपने इस छोटी सी कोशिश को पढ़ा और सराहा.

वो चारागर है सोचकर मरता है दिल का हाल
आज़ार तो यही है की बीमार हम नहीं
कहने का मा'ना है कि मेरा दिलबर चारागर है. लेकिन मैं बीमार नहीं हूँ. तो यही सोच सोचकर मेरे दिल की हालत ख़राब हो रही है कि अगर मैं बीमार होता तो उससे मिल सकता था. या'नी अब यही मेरी बीमारी(दुविधा) हो गई है कि मैं बीमार क्यों नहीं हूँ.
ग़ज़ल पर आपकी बेशक़ीमती राय के लिए एक बार फिर शुक्रिया अदा करता हूँ. साथ बनाए रखें.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 1, 2012 at 12:55pm

भाई विपुलकुमारजी, आपकी इस ग़ज़ल पर इतना ही कहूँगा कि आपकी कोशिश रंग लायी है. और आपने कमाल किया है. वैसे ग़ज़ल के सभी शेर कहन के लिहाज से कमोबेश एक तरह के भावों के गिर्द घूमते हैं. मग़र जो कुछ आपने कहा है उसका लिहाज मुत्मईन करता है.

इन अश’आर पर मेरी विशेष बधाई लें. हृदय की गहराइयों से महसूस कर रहा हूँ -

मरते हैं, मर नहीं सके, तेरे फ़िराक़ में
कहता है कौन इश्क़ में नाचार हम नहीं

आशिक़ हैं हम तो छेड़ हमें जिस क़दर बने
अब क्या तेरे सितम के भी हक़दार हम नहीं ....   वाह वाह वाह !!

आपने ग़िरह भी क्या खूब लगायी है.  बहुत खूब !

 

वो चारागर है, सोचकर मरता है दिल का हाल 

इस मिसरे ने मुझे उलझा रखा है. आप तकतीह भी करें और मायना भी कहें.  हम शुक़्रगुज़ार होंगे.

 

इस ग़ज़ल का मेयार भाषा के कारण अलहदा है.  अच्छा है आपने कठिन शब्दों के अर्थ दे दिये हैं.

इस ग़ज़ल के लिये पुनः बधाई और हृदय से धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

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