परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के शानदार चौबीस अंक सीखते सिखाते संपन्न हो चुके हैं, इन मुशायरों से हम सबने बहुत कुछ सीखा और जाना है, इसी क्रम में "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २५ मे आप सबका दिल से स्वागत है | इस बार का मिसरा हिंदुस्तान के उस अज़ीम शायर की ग़ज़ल से लिया गया है जिन्होंने ग़ज़ल विधा को हिंदी में लोकप्रियता की बुलंदियों पर पहुँचाया. जी हां आपने ठीक समझा मैं बात कर रहा हूँ विजनौर उत्तर प्रदेश में १९३३ में जन्मे मशहूर शायर जनाब दुष्यंत कुमार का। इस बार का मिसरा -ए- तरह है :
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"यह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है"
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाएलुन
(रदीफ़ : है)
(क़ाफ़िया : आन, बान, शान, तूफ़ान, मेहमान, आसान इत्यादि)
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मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 जुलाई 2012 दिन शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३० जुलाई 2012 दिन सोमवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २५ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगा, जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी | मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है:
( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 28 जुलाई 2012 दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा )
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन
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मजाज साहब नमस्कार ... बहुत ही खूबसूरत अशआर कहे हैं आपने इस ग़ज़ल में।
इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए मेरी दाद क़ुबूल कीजिये ॥
भूल बैठा है ख़ुदा को किस क़दर नादान है ,
कितना पागल कितना अहमक आज का इंसान है ..
भूख से और मुफलिसी से हर कोई हैजान है ,
ये हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है ...
जो भी आया है यहाँ जाना है उसको एक दिन ,
कौन है जिसको यंहा अमृत्व का वरदान है ...
पत्ती -पत्ती में है जीवन ज़र्रा ज़र्रा जान दार ,
सूफियों की फ़िक्र में तो राम ही रहमान है ...
इसके आगे और भी हैं मंजिलें ए दोस्तों ,
सब किताबो में यही अल्लाह का फरमान है ..
तुम नुमाइश कर रही हो अपने उरियां जिस्म की ,
रेम्प की ए लड़कियों ये कौन सा परिधान है ...
जिसको जन्नत का दरोगा कहता है सारा जहाँ ,
उस मलक का नाम भी मेरी तरह "रिज़वान" है ...
वाह वाह मोहम्मद रिजवान साहेब..........बहुत ख़ूब
खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई
पत्ती -पत्ती में है जीवन ज़र्रा ज़र्रा जान दार ,
सूफियों की फ़िक्र में तो राम ही रहमान है ...
इसके आगे और भी हैं मंजिलें ए दोस्तों ,
सब किताबो में यही अल्लाह का फरमान है ..
____क्या कहने..........मुबारक !
वाह भाई वाह। खूबसूरत शेर।
//
वाह रिज़वान भाई वाह, क्या जोरदार अशआर कहे हैं आपने .....बहुत बहुत मुबारक हो ....
बहुत ही बढ़िया शेर कहे है जनाब रिजवान जी
रिज़वानभाई, आदाब कुबूल फ़रमायें. आपकी ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद कह रहा हूँ.
जो भी आया है यहाँ जाना है उसको एक दिन ,
कौन है जिसको यंहा अमृत्व का वरदान है ..umda Rizwan bhai.
पत्ती -पत्ती में है जीवन ज़र्रा ज़र्रा जान दार ,
सूफियों की फ़िक्र में तो राम ही रहमान है umda...
इसके आगे और भी हैं मंजिलें ए दोस्तों ,
सब किताबो में यही अल्लाह का फरमान है ...kahta sahi Rizwan hai..
वाह वाह रिजवान भाई इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए लाखों दाद क़ुबूल कीजिये साहब
पत्ती -पत्ती में है जीवन ज़र्रा ज़र्रा जान दार ,
सूफियों की फ़िक्र में तो राम ही रहमान है ...
इसके आगे और भी हैं मंजिलें ए दोस्तों ,
सब किताबो में यही अल्लाह का फरमान है ..
शानदार गजल के लिए सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय रिजवान भाई जी...
वाह वाह वाह मो. रिजवान जी बहुत शानदार कलाम कहा है, ढेरों ढेर दाद हाज़िर है.
वाह वाह रिजवान भाई क्या खूबसूरत अशआर निकाले है आपने। इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद क़ुबूल हो !
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