For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माहिया  (12,10,12)

(1)

अम्बर पे बदरी है

देखो आ जाओ 

तरसे मन गगरी है 

(२)

सागर में नाव चली 

बिन तेरे कुछ भी 

चीजें लगती न भली  

 (३)

 चुनरी पे  नौ बूटे 

सुन तकते- तकते 

कहीं डोरी  न  टूटे 

 (४)

सूरज सिन्दूरी  ना 

मिल न सके कोई   

इतनी भी दूरी ना 

(५)

मैं माँ घर जाउंगी 

 पैर पकड़ लेना

वापस नहीं आउंगी  

 

Views: 660

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 1, 2012 at 12:47pm

अरुन शर्मा जी बहुत बहुत आभार आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 1, 2012 at 12:46pm

बहुत बहुत हार्दिक आभार प्रिय प्राची जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 1, 2012 at 12:45pm

हार्दिक आभार अलबेला जी आपको ख़ुशी हुई तो हमें भी हुई 

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 1, 2012 at 12:24pm

आदरेया राजेश कुमारी जी बेहद खुबसूरत माहिया, बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 1, 2012 at 11:49am
आदरणीया राजेश कुमारी जी,
बहुत सुन्दर, मधुर माहिया लिखने के लिए आपको हार्दिक बधाई.
इस लुप्तप्राय (अतः नयी प्रतीत होने वाली) पंजाबी लोक गीत विधा से अवगत कराने के लिए आपका आभार.
Comment by Albela Khatri on August 1, 2012 at 11:28am

waah waah waah

man khush ho gaya

badhaai


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 1, 2012 at 8:52am

हार्दिक आभार रक्तेला जी आपको ये प्रयास पसंद आया बहुत ख़ुशी हुई 

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 1, 2012 at 8:12am

राजेश कुमारी जी

                    सादर,

चुनरी पे  नौ बूटे 

सुन तकते- तकते 

कहीं डोरी  न  टूटे 

इस विधा पर पहली बार पढ़ रहा हूँ. माहिया  से पंजाबी का आभास हो ही रहा था आपने निचे विस्तार से बताया भी  है, बहुत सुन्दर कलारूप.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 31, 2012 at 5:23pm

हार्दिक आभार संजय हबीब जी आपको माहिया पसंद आया |यह एक बहुत पुरानी पंजाबी लोक गीतों से जुडी विधा है इसमें पति पत्नी या प्रेमी प्रेमिका की  आपसी छेडछाड चुहल बाजी से सम्बंधित शब्द होते थे शादी जैसे मोकों पर उत्सवों में प्रसिद्द होते थे किन्तु आज कल और विषय पर भी माहिया लिखे जाने लगे यह त्रिवेणी से मिलते जुलते हैं पहली और अंतिम पंक्ति तुकांत होती है और मात्राएँ १२,१०,१२ होती हैं|जितना मुझे पता है वो ही आपको सांझा कर रही हूँ बाकी योगराज जी जो पंजाबी भाषी हैं अच्छे से समझा सकते हैं  

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on July 31, 2012 at 3:54pm

विधा नई, हम जाने

हाँ! अपना भी दिल 

बिना रचे नहिं माने

अच्छी भाव भरी रचनाओं के साथ एक सुन्दर विधा से परिचय कराया आपने आदरणीया राजेश कुमारी जी.... सादर बधाई स्वीकारें... पहली बार पढ़ रहा हूँ... 'माहिया' के सम्बन्ध में और भी जानने की इच्छा है...

सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service