For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हरिगीतिका छंद एक प्रयास.

(चार चरण, १६ + १२ =२८ मात्राएं और अंत में लघु गुरु)

 

हरि जनम हो मन आस  लेकर, भीड़ भई  अपार  है/

हरि भजन गुंजत चहुँ दिसी अरु,भजत सब नर नार हैं//

झांझ बाजै है झन झनक झन , ढोल की  ठपकार  है/

मुरली बाजत  मधुर  शंख  ही,  गुंजाय   दरबार  है//

हरि घन घनन घन आसमा पर, जोर की बरसात है/

मन मेरा पर  आँखे  मीचे, प्रभु दरस  की  आस है//

सजे  द्वार  सुन्दर  घर  सकल, नगर  कारागार  है/

सजे श्याम सुन्दर  हर  हरिहर, सजा हरि दरबार है//

 

Views: 805

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 8, 2012 at 11:45am

आदरणीय अशोक जी इस पहले प्रयास पर बहुत-२ बधाई स्वीकार करें

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 6, 2012 at 11:36pm

संदीप जी

            सादर, आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं.मेरा प्रयास जारी है, मै आदरणीय सौरभ जी द्वारा दी गयी सलाह पर अमल कर आगे छंद को सही बनाने का प्रयास करूँगा. यदि आपने त्रुटियों के बारे में कुछ ज्ञान प्रदान किया होता तो और भी प्रसन्नता होती. आगे भी इसी तरह सहयोग कि अपेक्षा रहेगी. धन्यवाद.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 6, 2012 at 9:48am

इस प्रथम प्रयास को साधुवाद साहब
और प्रयास कीजिये संभवतः कुछ कमियाँ हैं
इससे छंद के प्राण संकट में जान पड़ते हैं
इसे गुरजन की अमोघ संजीवनी की आवश्यकता सी जान पड़ती है 

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 6, 2012 at 8:11am

आदरणीय बाली जी

                   नमस्कार, बहुत खुशी होती है जब एक नायाब गजलकार छंदों कि तारीफ़ करता है. स्नहे बनाए रखें. धन्यवाद.

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 6, 2012 at 8:10am

आदरणीय अलबेला जी, गौरव जी, आदरणीय अरुण जी सादर, आप सभी कि प्रशंसा मुझे अपनी त्रुटीयाँ सुधारने में मदत करेगी. धन्यवाद.

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on August 6, 2012 at 7:38am

अशोक भाई नमस्कार ! प्रभु जनम पर आपका यह सुंदर प्रयाश भक्ति भाव से ओत प्रोत कर दिया। सुंदर छंद पर मेरी तरफ से भी बधाई स्वीकार करें !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 5, 2012 at 11:29pm

झांझ बाजै है झन झनक झन , ढोल की ठपकार है/

हरि घन घनन घन आसमा पर, जोर की बरसात है/

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी, इन पंक्तियों में ध्वन्यात्मकता देखते ही बन रही है. सुंदर हरिगीतिका वातावरण को भक्तिमय कर रही है.

सुंदर छंद सृजन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 5, 2012 at 10:34pm

भक्तिमय प्रस्तुति.......मन को भाती हुई.......प्रभु चरणों में नत है मेरा भी शीश.......

Comment by Albela Khatri on August 5, 2012 at 10:32pm

waah waah kya kahne....

झांझ बाजै है झन झनक झन , ढोल की  ठपकार  है/

मुरली बाजत  मधुर  शंख  ही,  गुंजाय   दरबार  है//

हरि घन घनन घन आसमा पर, जोर की बरसात है/

मन मेरा पर  आँखे  मीचे, प्रभु दरस  की  आस है//

__bahut khub !

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 5, 2012 at 10:49am

आदरणीय सौरभ जी

                       सादर नमस्कार, मै इस साहित्यिक मंच पर जो देखता सीखता हूँ, शैली सुधार कि द्रष्टि से उसे यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ.  आपका मार्ग दर्शन मुझे आगे भी मंच पर नयी विधाओं में लिखने के लिए प्रेरित करेगा.आप से सदा  ऐसे ही सहयोग कि आस रहेगी. आभार.      

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service