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(सूर घनाक्षरी एक प्रयास)

कानों में रस घोलती, कोयल की मीठी तान,

अमवा पे है बोलती,  मान या ना मान.

                             .

दादीमाँ ने नुस्खे लिखे,ज्यों औषधियों की खान,

घर  में ही  सब मिले,मान या ना मान.

                             .

संकट में जो साथ दे, तू भाई उसे ही जान,

यूँ तो भाई अनेक हैं, मान या ना मान.

                             .

 जीवन पल चार हैं, रखना मन में ध्यान,

पल ही बीत जाएगा, मान या ना मान.

                             .

है ईश्वर सब कहें, पर ना माने विज्ञान,

 प्रभु नाम से ही तरें, मान या ना मान.

                            .

विदा अतिथि ना करें, दिए बिना जलपान,

प्रभु अतिथि एक है, मान या ना मान.

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Comment

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Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 27, 2012 at 11:26pm

धन्यवाद आदरणीय अशोक कुमार जी! छंद का सन्दर्भ देते हुए उसे पोस्ट करने के लिए आपके प्रति हार्दिक आभार, सादर

Comment by Rekha Joshi on July 27, 2012 at 10:23pm

आदरणीय अशोक जी ,सादर

 है ईश्वर सब कहें, पर ना माने विज्ञानं 
 प्रभु नाम से ही तरें, मान या ना मान.,अति सुंदर रचना ,बहुत बहुत बधाई 
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 27, 2012 at 6:57pm

आदरणीय अम्बरीश जी

                          सादर, इसी मंच पर भारतीय छंद विधान  के अंतर्गत आदरणीय शैलेन्द्र कुमार सिंह 'मृदु' द्वारा इसका उल्लेख  किया है उसी में उदाहरण बतौर कवि सूरदास जी का छंद भी प्रस्तुत किया गया है.

परसि परमानंद , सीचि के  कामना कंद,

करहिं प्रगट प्रीति, प्रेम के प्रवाल.

बचन रचन हास, समन सुख निवास,

करहि फलहिं फल,अभय रसाल...     

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 27, 2012 at 6:33pm

आदरणीय अशोक कुमार जी,

जिसे आपने 'सूर घनाक्षरी' कहा है, उससे मैं पूर्व परिचित नहीं हूँ |

फिर भी प्रवाह स्पष्ट करने के उद्देश्य से इससे मिलती जुलती  ८,८,८,६ पर यति वाली डॉ० श्याम गुप्त की घनाक्षरी प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसे उन्होंने 'श्याम घनाक्षरी' नाम दिया है ......जो कि एक उदाहरण मात्र है .......

थर थर थर थर , कांपें सब नारी नर,
आई फिर शीत ऋतु , सखि वो सुजानी |
सिहरि सिहरि उड़े ,जियरा पखेरू सखि ,
उर मांहि उमंगाये , पीर वो पुरानी |
बाल वृद्ध नारी नर, धूप बैठे तापि रहे ,
धूप भी है कुछ खोई, सोई अलसानी |
शीत की लहर तीर भांति तन बेधि रही,
मन उठै प्रीति की वो, लहर अजानी ||  -- डॉ० श्याम गुप्त  

यदि संभव हो तो किसी प्राचीन व स्थापित कवि की ३० वर्ण की ,८,८,८,६ पर यति के साथ अंत में लघु गुरु के बंधन से मुक्त घनाक्षरी प्रस्तुत करें ताकि हम सब इसके सटीक प्रवाह से भली-भांति परिचित हो सकें ! सादर

Comment by AVINASH S BAGDE on July 27, 2012 at 4:42pm

है ईश्वर सब कहें, पर ना माने विज्ञान,

 प्रभु नाम से ही तरें, मान या ना मान.

विदा अतिथि ना करें, दिए बिना जलपान,

प्रभु अतिथि एक है, मान या ना मान...bahut khoob Ashok bhai..मान या ना मान

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 27, 2012 at 2:07pm

दादीमाँ ने नुस्खे लिखे,ज्यों औषधियों की खान,

घर  में ही  सब मिले,मान या ना मान.

विदा अतिथि ना करें, दिए बिना जलपान,

प्रभु अतिथि एक है, मान या ना मान.

प्रिय अशोक भाई ..सुन्दर सीख और सन्देश दे गयी आप की घनाक्षरी प्यारी ....इसके मर्म .रूप के बारे में  तो गुनी जन ही चर्चा  करेंगे 
जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 27, 2012 at 12:31pm

आदरणीय अम्बरीश जी

                           सादर, सूर घनाक्षरी के बारे में मेरी अल्प जानकारी के मुताबिक़ यह वर्णात्मक छंद ३० वर्ण का,८,८,८,६ पर यति के साथ अंत में लघु गुरु के बंधन से मुक्त होता है. अधिक जानकारी सदैव अपेक्षित है. प्रवाह पर भी आपके सुझाव का सम्मान करते हुए इसे ठीक करने का प्रयास करूँगा.आभार.

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 27, 2012 at 12:21pm

आदरणीय अलबेला जी,दीप्ति जी,संदीप जी, राजेश कुमारी जी, अरुण जी आप सभी का छंद रचना सराहने के लिए आभार.

 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 27, 2012 at 11:57am

अशोक जी उम्दा रचना, बहुत-२ बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2012 at 10:58am

बहुत सुन्दर भाव युक्त बेहतरीन छंद 

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