For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- २९ (हम बग़दाद के नहीं, हिन्द के जुनैद हैं)

मर्गोजीस्त के राज़ मेरे सीने में कैद हैं

हम बग़दाद के नहीं, हिन्द के जुनैद हैं

 

खुशी होती तो मर न गए होते कब के

जीरहें है कि गममें मुब्तलाओमुस्तैद हैं   

 

दिल कोई तिफ्लहै पूछे है तेरी तस्वीरसे

इक मुझ को ही तेरे दीदार क्यूँ नापैद हैं  

 

रोज़ेकारेमाशी शामेमैकशी शबेख्वाबीदगी 

न जाने हम कबसे बामशक्कत बाकैद हैं

 

'राज़' की उम्र हुई है, पे अन्वार बाकी है

जुज़ आँखकी पुतली सारे उज़व सुफैदहैं

 

© राज़ नवादवी

भोपाल, ०६.१५ संध्याकाल, १७/०९/२०१२

 

मर्गोजीस्त- मौत और जिन्दगी; जुनैद- बग़दाद के इक बहुत बड़े ऋषी; मुब्तलाओमुस्तैद- डूबे और सावधान; तिफ्ल- बच्चा; दीदार- दर्शन; नापैद- अप्राप्य; रोज़ेकारेमाशी शामेमैकशी शबेख्वाबीदगी- दिन पैसे कमाने के, शाम शराब पीने की, और रात सोने की, अन्वार- नूर का बहुवचन, प्रकाश; जुज़- सिवा; अज्व- अंग   

Views: 567

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on September 20, 2012 at 4:47pm

सीमा जी, बहुत बहुत शुक्रिया!

Comment by राज़ नवादवी on September 20, 2012 at 4:40pm

आदरणीय डाबरे साहेब, हम आपकी इस तारीफ़ के काबिल तो नहीं, मगर आपके लफ़्ज़ों के पीछे छुपे आपके जज़्बात को आपका दिया नायाब तोहफा समझके क़ुबूल करते हैं और दिल से आपका शुक्राना. खास आपके लिए ये शेर फरमाता हूँ जो बेसाख्ता मेरी जुबां पे अभी अभी आया - 

निस्बतें बढ़ीं यूँ हमसे ज़माने की हौले हौले 

खुलती गईं सब तहें अफ़सानेकी हौले हौले 

- राज़ नवादवी 

Comment by प्रमेन्द्र डाबरे on September 20, 2012 at 4:19pm

राज भाई आप इस ज़माने के नहीं सदियों के शायर हैं, मर्गोजीस्त के राज़ मेरे सीने में क़ैद हैं हम बगदाद के नहीं हिंद के जुनैद हैं. एक और बेहतरीन ग़ज़ल जिसे पढ़ कर आदमी सन्न रह जाये........ आप लाजवाब हैं हमें आपकी और ग़ज़लों का इंतज़ार है..................... प्रमेन्द्र डाबरे

Comment by seema agrawal on September 20, 2012 at 12:00am

रोज़ेकारेमाशी शामेमैकशी शबेख्वाबीदगी 

न जाने हम कबसे बामशक्कत बाकैद हैं........वाह के सिवा और क्या कहा जाये 

राज़' की उम्र हुई है, पे अन्वार बाकी है

जुज़ आँखकी पुतली सारे उज़व सुफैदहैं............दिल को छूने वाला शेर 
शब्दों के अर्थ साथ में देने से समझना आसान हो गया इसके लिए शुक्रिया 

Comment by राज़ नवादवी on September 19, 2012 at 11:20pm

शुक्रिया आदरणीया राजेश जी, आपकी दाद का मग्नून हूँ जो हमेशा हम जैसों का हौसला बढाती है. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 19, 2012 at 12:33pm

मर्गोजीस्त के राज़ मेरे सीने में कैद हैं

हम बग़दाद के नहीं, हिन्द के जुनैद हैं

 मतले से ही ग़जब की ग़ज़ल का आग़ाज हुआ

 

रोज़ेकारेमाशी शामेमैकशी शबेख्वाबीदगी 

न जाने हम कबसे बामशक्कत बाकैद हैं

 और ये शेर भी बहुत पसंद आया दिली दाद कबूल करें राज़ नवादवी जी  |

Comment by राज़ नवादवी on September 19, 2012 at 11:03am

आदरणीय योगराज जी, आप जैसे सुधीजनों की प्रशंसा पा कर दिल फूले नहीं समाता. बहुत बहुत धन्यवाद. 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 19, 2012 at 10:57am

//मर्गोजीस्त के राज़ मेरे सीने में कैद हैं
हम बग़दाद के नहीं, हिन्द के जुनैद हैं//
.
वाह वाह वाह - बेहद दिलकश मतला राज़ साहिब, दाद कबूल फरमाएं.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
14 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service