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राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ३८ (मेरी पत्नी)

(अंग्रेज़ी की डायरी से हिन्दी में अनूदित)

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मेरी पत्नी,

 

प्रेम सदैव हमारे अंदर है, अपनी गहराई में, बाहर नहीं. ‘मैं’ द्वारा इस तथ्य को आत्मसात कर लिए जाने  तक कि यह ‘मैं’ स्वयं भी इस आतंरिक प्रेम से बाह्य है, यह प्रेम अपने से बाहर नाना रूपों में अभिव्यक्ति की खोज में प्रयत्नशील बना रहता है. जब ‘मैं’ द्रवीभूत और अनन्य हो जाता है, इसके साथ ही वो सब कुछ जो इस ‘मैं’ से बाहर परिलक्षित है. तब प्यार के अतिरिक्त कुछ भी शेष नहीं रहता, यह ‘मैं’ भी नहीं. जब तक यह चरितार्थ नहीं हो जाता, प्रेम तब तक आत्यंतिक रूप से प्रेम नहीं होता, वरण उसका एक प्रछन्न बिम्ब मात्र होता है.  

 

जीवन है क्यूंकि प्रेम रूपी पहेली भी है. अतएव हम किसी का मूल्यांकन न करें. कुछ भी सम्पूर्णतया अच्छा या बुरा नहीं है; अथवा यूँ कहें कि जीवन रूपी संक्रमण में कुछ भी अपनी विशुद्धतम तात्विकता में नहीं है. जीवन एक बीज है जो प्रतिदिन हम सबों के अंदर कुसुमित हो रहा है और उसी अनुपात में हमसे निभृत (छुपा) भी बना रहता है. यह प्रस्फुटन चरात्मक अंशों में सुख और दुःख, सफलता और विफलता, एवं हर्ष और विषाद के एक अनुभवजन्य एवं अनुभव परक प्रहसन (नाटक) जैसा है जिसे हम जीवन कहते हैं.

 

हम प्रार्थना करें कि हम सभी एक न एक दिन उस मौलिक एवं प्रागैतिहासिक अवस्था को वापस प्राप्त हों जहाँ से अब तक हमने इक लंबी यात्रा तय कर ली है!  

 

© राज़ नवादवी

भोपाल, अर्धरात्रि ०२.०९, बुधवार १९/०९/२०१२      

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Comment by राज़ नवादवी on September 19, 2012 at 11:31pm

आदरणीया राजेश जी, अपने गहरे आतंरिक स्पंदनों को हिन्दी में लिखने का मज़ा भी अलग है. हिन्दी ही मेरी मातृभाषा रही जिसके साथ साथ बड़ा हुआ. अपनी गहरी अकायिक अनुभूतियों को इस कारण मेरे लिए हिन्दी में व्यक्त कर पाना ज़्यादा स्वाभाविक भी है. 

आपको रचना पसंद आयी, इसके किए मैं हृदय से आपका आभारी हूँ. 


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Comment by rajesh kumari on September 19, 2012 at 6:52pm

जीवन एक बीज है जो प्रतिदिन हम सबों के अंदर कुसुमित हो रहा है और उसी अनुपात में हमसे निभृत (छुपा) भी बना रहता है. यह प्रस्फुटन चरात्मक अंशों में सुख और दुःख, सफलता और विफलता, एवं हर्ष और विषाद के एक अनुभवजन्य एवं अनुभव परक प्रहसन (नाटक) जैसा है जिसे हम जीवन कहते हैं.---बहुत गहन प्रस्तुति जीवन के प्रति अध्यात्मिकता को दर्शाती हुई आपकी ये रचना एक दम अलग लगी उर्दू जबान से एक दम शुद्ध हिंदी अच्छा लगा पढ़ के 

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