हमने कब यह सोच कर लिखा कि जो लिखा वो कोई गज़ल है
चलनेवालेकी मंजिलपे नज़र है, नकि वो हवाओं में या पैदल है
अंदाज़ेतसव्वुर ने बदले हैं तरीकाए-तालीम-ओ-फहम दौरेके दौर
कल जोकोई होगा बढ़के असद वो आज फकत बाशक्लेहमल है
बंदिशेबह्र-ओ-रदीफ़ोकाफिए के बगैर भी हो सकते हैं कलामेपाक
अल्लाहने जो बनाई है ये कायनात वो इक वाहिद सौतेअज़ल है
शह्रमें होती हैं बसाहटें मकानोकस्बाओबाजारोशाहराह, क्याक्या
पे जाँ पे दिललगे मेरा वो मुकामेमजनूँ, वो नहीं तमद्दुन, जंगल है
मैं मानता हूँ राज़ मेरे अंदाज़ेसुखनमें हो सकती हैं कई खामियां
पे जो तू समझ जाए मेरा जज़्बा और मैं तेरा, ये बात अव्वल है
© राज़ नवादवी
भोपाल, ०५.४७ संध्याकाल
गुरुवार, २०/०९/२०१२
अंदाज़ेतसव्वुर- सोचने का तरीका; शिक्षाप्राणाली और समझाने का तरीका; असद- शेर, बाघ; बाशक्लेहमल- भेड़ के मेमने की शक में; बंदिशेबह्र-ओ-रदीफ़ोकाफिए – बह्र, रदीफ और काफिए के बंधन; वाहिद- अकेली; सौतेअज़ल- प्रारब्द्ध/ सृष्टि की ध्वनि; मुकामेमजनूँ – मजनूँ के रहने का स्थान; तमद्दुन- संस्कृति; अंदाज़ेसुखन- शायरी कहने का अंदाज़;
Comment
भाई वीनस जी, समझाने का शुक्रिया. वक्त दर्ज इसलिए भी करता हूँ कि जब आगे किसी औकात पीछे मुड़कर इन्हें कभी फिर से देखूं, पढूं, या निहारूं तो ये जान सकूं कि अपनी ज़िंदगी का वो कौन सा लम्हा था जब इन्हें कलम किया. इतना ही....
'बीती बातों से बेहतर ज़िंदगी का आइना क्या हो सकता है.
दिलकी बातोंसे कमतर खुदीका मुआइना क्या हो सकता है'
राज़
राज साहिब आपने पोस्ट में रचना के साथ समय विशेष को भी टंकित किया है मेरा इशारा उस जानिब था
आप समय का विशेष ख़याल रखते हैं इसे देख कर दिल खुश हुआ तो खुशी का इज़हार कर दिया .....
जनाब उमा शंकर जी, इक अरसे के बाद आप से मुखातिब होते अच्छा लग रहा है. आपको हमारा कलाम भाया, ये जानकार हैं बेहद खुशी हुई. आपकी बधाई का शुक्रिया.
-राज़
वाह राज़ साहब ...मान गये
बहेतरीन अंदाज़ में आपने उम्दा बात कही है
दिल को छू गई.... मायने लिखने के लिए धन्यवाद
हार्दिक बधाई
भाई वीनस जी, आपके अल्फाज़ पढ़कर बेसाख्ता ये कहने को जी चाहा-
'आपको मज़ा आ जाता है तो हम भी गुनगुना लेते हैं
जैसे गुलाबी जाड़े में बराएगुस्ल पानी गुनगुना लेते हैं'
अरे साहेब, ये तो सौरभ भाई की दिलदारी है जो उस्ताद कह दिया, और हमने भी खाक्सारी में सर झुका दिया क्यूंकि मुहब्बत में सर झुक ही जाते हैं. मगर ये बताएं कि मिनट मिनट के हिसाब का मुद्दआ क्या है जो हम ही से वाबस्ता है और हम ही आपसे पूछते हैं.?
सादर!
वाह वाह वा
राज साहिब तुसी तो मज़ा ला दित्ता
रचना की तो तारीफ़ ही क्या करूं अलबत्ता मिनट मिनट के आपके हिसाब ने अत्यंत प्रभावित किया
और जब सौरभ जी ने आपको उस्ताद कह कर संबोधित कर दिया है तो मेरे पास कहने को तो वैसे ही कुछ नहीं बचता है ,,,,
प्रिय प्रमेन्द्र जी, मैं आपकी भावनाओं की क़द्र करता हूँ, और शुक्र गुज़ार हूँ कि आपको मेरी ये रचना पसंद आई.
मगर आजिज़ाना गुजारिश है, मैंने कोई जवाब देने के लिए नहीं लिखा, बस अपनी बात रखने के लिए और वो भी कैसे, खुद मालूम नहीं. चुनांचे किसी का दिल दुखा के मेरी तारीफ़ मेरा भी दिल दुखाएगी.
आपका राज़
राज़ भाई क्या खूब जवाब है, कोई नहीं ग़र कोई चाँद को नहीं पहचानता तो उसकी आँखें ख़राब है........ प्रमेन्द्र डाबरे
बहुत खूब ! .. . समझ गया उस्ताद समझ गया.. .
सादर
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