For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल कहने की कोशिश जारी है-

मोटी-चमड़ी पतला-खून ।
नंगा भी पहने पतलून ।

भेंटे नब्बे खोखे नोट -
भांजे दर्शन अफलातून ।

भुना शहीदी दादी-डैड
*शीर्ष-घुटाले लगता चून ।
*सिर मुड़ाना / चोटी के घुटाले

पंजा बना शिकंजा खूब-
मातु-कलेजी खाए भून ।

मिली भगत सत्ता पुत्रों से
लूटा तेली लकड़ी-नून ।

दस हजार की रविकर थाल
उत फांके हों दोनों जून ।

Views: 482

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Arun Sri on November 6, 2012 at 12:50pm

दस हजार की रविकर थाल
उत फांके हों दोनों जून । ...... वाह ! क्या कहने ! खूब कहा आपने !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 5, 2012 at 10:48am

//मुझे तो समझ ही नहीं आती है यह विधा-
पर आकर्षक लगती है-//

आजकल गंगा अविरल धार में है. आप अवश्य हाथ माँज लें, प्रभु.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 5, 2012 at 10:39am
मोटी-चमड़ी पतला-खून । नंगा भी पहने पतलून । 
मिली भगत सत्ता पुत्रों से लूटा तेली लकड़ी-नून । 
फाके मारे दो जून, शायरी का चढ़ा जूनून,रविकर भैया बहुत खूब 
Comment by रविकर on November 5, 2012 at 10:33am

पता नहीं आदरणीय सौरभ जी -
मुझे तो समझ ही नहीं आती है यह विधा-
पर आकर्षक लगती है-
अपनी तरफ से कुछ आशीष देने का कष्ट करें-
कृपा होगी ||


मैंने आ. वीनस जी से भी यह निवेदन किया हुआ है-
सादर ||


आदरेया सीमा जी का आभार ||
बहन शालिनी का आभार ||
आदरणीय बागी जी आभार |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 5, 2012 at 10:20am

ग़ज़ब का सटायर भाई रविकर जी. इस तंज पर अब क्या कहूँ, शक्करपारे में आपने गोया निबौरी भर दिया है.

लेकिन ग़ज़ल की शिल्प पर अभी बहुत कुछ करना है, प्रभु.  ग़ज़ल की बह्र क्या रखा है या मिसरों को आपने किस वज़्न में बाँधने की कोशिश की है, यदि आप साझा करें तो आगे कुछ कहना संभव हो सके.

Comment by shalini kaushik on November 4, 2012 at 3:01pm

भुना शहीदी दादी-डैड 
*शीर्ष-घुटाले लगता चून ।

very nice presentation 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 4, 2012 at 11:13am

छोटी बहर पर अच्छी ग़ज़ल , बधाई आदरणीय रविकर जी ।

Comment by seema agrawal on November 4, 2012 at 10:43am

आपका विशेष  तीखा अंदाज़ आपकी ग़ज़ल में भी बरकरार है 

पंजा बना शिकंजा खूब- 
मातु-कलेजी खाए भून ।

दस हजार की रविकर थाल 
उत फांके हों दोनों जून ।

बधाई रविकर जी 

Comment by रविकर on November 4, 2012 at 9:47am

आदरणीय भाई वीनस जी -
आपकी गजल कक्षा से भी सीखने की कोशिश कर रहा हूँ-
कुछ टिप्स इस रचना पर भी मिले तो अच्छा -
गजल के हिसाब से इसमें क्या क्या कमी है-
हमेशा जानना चाहूँगा -
और अगली बार उस पर भी काम करूँगा -
कृपया--
सादर |

Comment by वीनस केसरी on November 3, 2012 at 11:42pm

दस हजार की रविकर थाल
उत फांके हों दोनों जून ।

वाह वा वा ....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
10 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
13 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service