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सौम्य शांत सी चली थी
निंद्रा से चिर निंद्रा की ओर
उसे निंद्रा से जगाने की कोशिश थी
थी भाग दौड़ !
उम्र भर की मानसिक यातना से
थी आज मुक्ति की ओर अग्रसर ,
अस्पताल के एक कोने में उसका
शरीर था पड़ा एक बिस्तर पर ,
बैठी थी पास ही उसके
उसकी बिटिया मूक दर्शक बनकर ,
रही थी माँ को एकटुक निहार !
और जैसे कह रही हो बारम्बार...
माँ, तुझे न रोकूंगी आज
ले लो मुझसे मुक्ति का उपहार !

अन्वेषा

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Comment

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Comment by Anwesha Anjushree on December 17, 2012 at 5:25pm

Ajay ji, Avinash ji , Sandeep ji , Shailendra ji, Rajesh Kumari ji....abhar...

Bagi ji..satya ghatit hote dekha..bus kagaj pe utar di, man kuchh itna kunthit tha ki shabdo ko sajane ka khayal nahi aaya....agli baar dhyan rakhungi..Naman


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 17, 2012 at 9:53am

बहुत मार्मिक दर्द ही दर्द 

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on December 16, 2012 at 10:30pm

संवेदना से ओत प्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया अन्वेषा जी |

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 16, 2012 at 11:07am


बहुत भाव पूर्ण रचना हेतु बधाई आपको आदरणीया


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 16, 2012 at 9:27am

बहुत दर्द है इस रचना में, शिल्प पर कमजोर सी दिखी यह रचना , और भी बेहतर हो सकती थी | बधाई अन्वेषा जी |

Comment by AVINASH S BAGDE on December 15, 2012 at 8:50pm

माँ, तुझे न रोकूंगी आज 
ले लो मुझसे मुक्ति का उपहार !

wah..अन्वेषा..

Comment by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 6:04pm

sorry sambedna

Comment by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 6:03pm

behad marmik aapki sambesna ko pranam karta hu anwesh ji aap me mahus karke sach ke blikul kareeb likhti he badhai

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