आदरणीय साथियो !
"चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता" अंक-21 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है | इस प्रतियोगिता हेतु इस बार भी ज़रा अलग प्रकार अंदाज़ का चित्र प्रस्तुत किया जा रहा है। भारत जैसे देश में जहाँ लाखों लोग हर रोज़ भूखे सोते हों - जहाँ अन्न को देवता भी कहा जाता हो, उस देश में अन्न की ऐसी बर्बादी ? ऐसा दृश्य देख कर क्या हर देशभक्त भारतीय का ह्रदय खून के आँसू नहीं रोता ? बहरहाल, अब आप सभी को इसका काव्यात्मक मर्म चित्रित करना है !
जहाँ भूख ही भूख हो, सड़ता वहाँ अनाज.
लगी फफूंदी तंत्र में, क्यों गरीब पर गाज..
तो आइये, उठा लें अपनी-अपनी लेखनी, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण, और हाँ.. आपको पुनः स्मरण करा दें कि ओ बी ओ प्रबंधन द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि यह प्रतियोगिता सिर्फ भारतीय छंदों पर ही आधारित होगी, कृपया इस प्रतियोगिता में दी गयी छंदबद्ध प्रविष्टियों से पूर्व सम्बंधित छंद के नाम व प्रकार का उल्लेख अवश्य करें | ऐसा न होने की दशा में वह प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार की जा सकती है |
प्रतियोगिता के तीनों विजेताओं हेतु नकद पुरस्कार व प्रमाण पत्र की भी व्यवस्था की गयी है जिसका विवरण निम्नलिखित है :-
नोट :-
(1) १७ दिसंबर तक तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १८ से २० तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट हेतु खुला रहेगा |
(2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत है, अपनी रचना को "प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करें |
सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना मात्र भारतीय छंदों की किसी भी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओबीओ के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक कृतियां ही स्वीकार किये जायेगें |
विशेष :-यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें|
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-१९ , दिनांक १८ दिसंबर से २० दिसम्बर की मध्य रात्रि १२ बजे तक तीन दिनों तक चलेगी, जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन पोस्ट अर्थात प्रति दिन एक पोस्ट दी जा सकेंगी, नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |
मंच संचालक:
अम्बरीष श्रीवास्तव
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''गायें गाकर ही रचें, दोष बचे तब अल्प.
अति आवश्यक गेयता, फिर जांचें यह शिल्प''
आदरणीय अम्बरीष जी आपने तो टिप्स भी दे दी कि किस तरह से छंद रचे,
बड़े काम की बात यह, गुरु ज्ञान गंभीर
गुरु कथन ही सत्य है, बाकी थोथे तीर
//बड़े काम की बात यह, गुरु ज्ञान गंभीर
गुरु कथन ही सत्य है, बाकी थोथे तीर//
दोहा उत्तम है रचा, पर खटके यह बात.
उच्चारण गुरु का गुरू , करना पड़ता तात..
गुरु में मात्रा दो बने, यहाँ चाहिए तीन.
करनी होगी युक्ति कुछ, बदलेगा तब सीन..
_____________________________
बड़े काम की बात यह, गुरु ज्ञानी गंभीर.
गुरु कथनी ही सत्य है, बाकी थोथे तीर..
_____________________________
उचित जगह पर टिप्पणी, देनी होगी भ्रात.
यह तो थ्रेड है मुख्य ही, तत्सम्बंधित नहिं तात..
सुन्दर समुचित भाव से, हुई तथ्य पर बात
इसी भाव का मंच यह, देता है सौगात.. .
बहुत ही सम्यक कहा आपने, आदरणीय ! साधु-साधु !! .. .
बातचीत हो तथ्य पर, चाहें हम सौगात.
अनुमोदन जो आपका, आभारी हम तात..
(प्रतियोगिता से बाहर)कुण्डलिया और कुछ दोहे ,
खाने को रोटी नहीं,सोते भूखे पेट
रंक बने हैं मेमने ,शासन के आखेट
शासन के आखेट,नहीं सुध लेता कोई
जल ने की बर्बाद ,फसल जो उसने बोई
हाल हुआ बेहाल ,तके दाने दाने को
नष्ट हुए भण्डार, नहीं कुछ है खाने को
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अन्न खुले में सड़ रहा , कुटिल तंत्र मुस्काय
हाल देख भण्डार का ,मुख से निकले हाय
बोरोँ पर बोरे लदे , भीगे बाहर अन्न
संज्ञा शून्य कृषक खड़ा ,देख हो गया सन्न
काली पालीथिन ढकी , जो मिली फटे हाल
कैसा फल मेहनत का,मन में उठा सवाल
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कुंडलिया उत्तम रची. दोहे भी हैं ठीक.
परिभाषित है चित्र भी, बड़ी हो रही लीक..
बहुत बधाई आपको, रच डाले हैं छंद.
हम सबको अच्छा लगा, आया अति आनंद..
//काली पालीथिन ढकी , जो मिली फटे हाल
कैसा फल मेहनत का,मन में उठा सवाल//
कृपया बोल्ड किये गए शब्दों पर एक दृष्टि डाल लें | सादर
मेरे लेखन को सार्थकता मिली हार्दिक आभार आदरणीय अम्बरीश जी आपके बोल्ड किये हुए शब्दों पर विचार करुँगी
धन्यवाद आदरेया राजेश कुमारी जी | सादर
आदरणीया राजेश दी ...नमस्कार
बहुत सुंदर छंद .. विषय की गंभीरता को धारण कर आँखों में तस्वीर उतारती हुयी / मेरी बधाई स्वीकार करें /
प्रिय महिमा श्री आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभारी हूँ
आदरेया राजेश कुमारी जी सादर, चित्र को परिभाषित करते सुन्दर कुंडलिया और दोहा छंद पर आपको हार्दिक बधाई.
खाने को है कुछ नहीं, निर्धन है बेहाल,
निज जेबें मुटिया रही,शासन है कंगाल,
शासन है कंगाल, नहीं समझें पर ज्ञानी,
सुरक्षित नहि अनाज,रुके ना पर मनमानी,
आदरेया स्वदेश, तरसता दाने दाने,
कोई पियें शराब,तरसता कोई खाने/
आदरणीय अशोक रक्ताले जी हार्दिक आभार आपका मेरी कलम को आपकी प्रतिक्रिया से संबल मिला |
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